राजस्थान की सियासत के वो 3 जाट दिग्गज, जिनके हाथ मुख्यमंत्री की कुर्सी आते-आते रह गई
Rajasthan Jaat CM Demand : राजस्थान की राजनीति में जाटों का वर्चस्व रहा है, लेकिन कोई भी जाट नेता मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने में कामयाब नहीं हो सका है. नाथूराम मिर्धा, परसराम मदेरणा, शीशराम ओला और चौधरी कुंभाराम सरीखे नेता मुख्यमंत्री की रेस में रहे, लेकिन कभी कोई चौधरी मुख्यमंत्री की कुर्सी तक नहीं पहुंच पाया.
Rajasthan Jaat CM Demand : राजस्थान की सियासत में जाटों का दशकों से वर्चस्व रहा है, जाट प्रदेश ही नहीं बल्कि देश के भी सर्वोच्च पदों पर रहे हैं, लेकिन कभी राजस्थान के मुख्यमंत्री नहीं बन पाए. जाटों के अर्सों से हसरतें रही हैं कि सत्ता की कुर्सी पर कोई चौधरी बैठे. आजादी के बाद जाटों का सियासी उदय 1952 के बाद हुआ जब कांग्रेस ने पहले विधानसभा चुनाव में जमकर जाटों को टिकट दिया.
नाथूराम मिर्धा
नाथूराम मिर्धा राजस्थान की सियासत में उन पहले जाट नेताओं में शुमार हैं. जिन्होंने सूबे की सियासत में राज किया. मारवाड़ के दिग्गज जाट नेताओं में शुमार रहे नाथूराम मिर्धा नागौर से साल 1971 से नाथूराम मिर्धा ने पहला चुनाव जीता और 1980 तक लगातार तीन बार कांग्रेस से सांसद रहे. इसके बाद वह 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सहानुभूति लहर में कांग्रेस उम्मीदवार और भतीजे रामनिवास मिर्धा से चुनाव हार गए थे. इसके बाद उन्होंने फिर कांग्रेस प्रत्याशी के रुप में चुनाव लड़ा और साल 1989 से 1996 तक फिर लगातार तीन बार चुनाव जीत हांसिल की. नाथूराम मिर्धा ने छह बार लोकसभा चुनाव जीतने का रिकॉर्ड भी अपने नाम किया. नाथूराम मिर्धा प्रदेश सरकार में 1952 में वित्त मंत्री भी रहे हैं, लेकिन वो कभी मुख्यमंत्री की कुर्सी तक नहीं पहुंच पाए.
परसराम मदेरणा
मिर्धा परिवार के बाद राजस्थान में मदेरणा परिवार का दबदबा रहा है. जोधपुर से ही आने वाले परसराम मदेरणा प्रदेश के दिग्गज जाट नेता रहे हैं. 1998 के विधानसभा चुनाव के वक्त परसराम मदेरणा नेता प्रतिपक्ष थे, जबकि अशोक गहलोत प्रदेश अध्यक्ष, लिहाजा ऐसे में परसराम मदेरणा प्रबल दावेदार थे, चुनाव में कांग्रेस 200 में से 153 सीटें जीती. जो कि आज भी कांग्रेस के लिए रिकॉर्ड है.
प्रदेश में प्रचंड जीत के बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मुख्यमंत्री पद के फैसले के लिए दिल्ली से चार नेताओं का दल भेजा. जहां विधायक दल की बैठक में अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री चुना गया, जबकि परसराम मदेरणा सीएम बनने से चूक गए, उन्हें विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी से ही संतोष करना पड़ा.
शीशराम ओला
मारवाड़ के बाद शेखावाटी से जाट सियासत में ओला परिवार का उदय हुआ. शीशराम ओला 8 बार विधायक और 5 बार सांसद रहे. साल 2008 में शीशराम ओला मुख्यमंत्री की दौड़ में सीपी जोशी और अशोक गहलोत के साथ शामिल थे, यहां तक उन्होंने धमकी भी दे दी थी कि अगर जाट मुख्यमंत्री नहीं बना तो लोकसभा चुनाव में जाट समुदाय कांग्रेस के खिलाफ वोट करेगा, लेकिन अंतः फैसला कांग्रेस आलाकमान ने लिया और अशोक गहलोत दूसरी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने.
राजस्थान की राजनीति में जाटों का वर्चस्व रहा है, लेकिन कोई भी जाट नेता मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने में कामयाब नहीं हो सका है. हालांकि जाट घराने बहू यानि कि वसुंधरा राजे प्रदेश की दो बार मुख्यमंत्री रही हैं.
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