किरोड़ी Vs पुलिस : जब मरा समझ कर पुलिस ने छोड़ा, लेकिन चमत्कार ने मीणा को बचाया
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किरोड़ी Vs पुलिस : जब मरा समझ कर पुलिस ने छोड़ा, लेकिन चमत्कार ने मीणा को बचाया

Kirodi Lal Meena : किरोड़ी लाल मीणा का पुलिस से भिड़ने का इतिहास 35 साल पुराना. तीन दशक पहले एक आंदोलन के चलते पुलिस ने किरोड़ी को अधमरा होने तक मारा था. जिसके दंश किरोड़ी आज भी झेल रहे हैं.

किरोड़ी Vs पुलिस : जब मरा समझ कर पुलिस ने छोड़ा, लेकिन चमत्कार ने मीणा को बचाया

Kirodi Lal Meena : किरोड़ी लाल मीणा बनाम राजस्थान पुलिस की तकरार का इतिहास आज का नहीं बल्कि 35 साल पुराना है. पुलवामा अटैक में शहीदों की वीरांगनों को लेकर पुलिस से किरोड़ी लाल मीणा की हुई टक्कर भले ही आज सुर्खियों में है, लेकिन किरोड़ी का पुलिस से भिड़ने का इतिहास 35 साल पुराना. हर कुछ महीनों में प्रदेश के किसी न किसी हिस्से से किरोड़ी और पुलिस के बीच तकरार की तस्वीरें सामने आ ही जाती है. लेकिन तीन दशक पहले एक आंदोलन के चलते पुलिस ने किरोड़ी को अधमरा होने तक मारा था. जिसके दंश किरोड़ी आज भी झेल रहे हैं.

दरअसल आज से 35 साल पहले जब किरोड़ी लाल मीणा ( Kirodi Lal Meena ) विधानसभा चुनाव जीत कर महुआ से विधायक बने थे, तो सवाई माधोपुर का सबसे बड़ा मुद्दा सीमेंट फैक्ट्री ( Cement Aandolan ) को लेकर था, छात्र राजनीति से ही संघर्ष करने में आगे रहने वाले युवा किरोड़ी को यह मुद्दा अपनी ओर खिंच लाया. हजारों की संख्या में फैक्ट्री मजदूर आंदोलन में जुटे हुए थे, हर रोज सरकार से वार्ता होती और उसके बाद उन्हें आश्वासन भी मिलता, लेकिन आंदोलन कर रहे हजारों मजदूरों को आश्वासन नहीं त्वरित करवाई चाहिए थी. किरोड़ी लाल मीणा का भी पूरा समर्थन मजदूरों के साथ था.

12 दिसंबर 1988 के दिन सरकार के इशारे पर पुलिस ( Rajasthan Police ) ने कड़ा रुख अपनाते हुए आंदोलनकारियों पर लाठीचार्ज कर दिया. पुलिस ने आंदोलन में शामिल बच्चे से लेकर बुजुर्ज और महिलाओं तक को नहीं छोड़ा गया. जो सामने आया वो लाठीचार्ज का शिकार हो गया. आंदोलन का नेतृत्व कर रहे किरोड़ी लाल मीणा लाठीचार्ज रोकने की गुहार लेकर पुलिस अधीक्षक के पास पहुंचे तो पुलिस ने किरोड़ी को पकड़ के जमकर पीटा. कहा जाता है कि जब पुलिसकर्मियों को लगा की किरोड़ी की मौत हो गई तब उन्हें छोड़ा. 

बेहद गंभीर हालात में किरोड़ी को जयपुर लाने की बजाए पुलिस अलवर के जिला अस्पताल ले गई. जहां बेहतर इलाज ना मिलने की वजह से किरोड़ी की हालत और बिगड़ गई. जिसके बाद डॉक्टर ने उन्हें दिल्ली के AIIMS रेफर कर दिया. जहां कई महीनों किरोड़ी का इलाज चला. यह चमत्कार ही था कि किरोड़ी बच गए थे. इतने सालों में किरोड़ी के जख्म तो भर गए लेकिन लेकिन आज भी उस मार के दंश उनके शरीर पर मौजूद हैं. कई हड्डियां चकनाचूर हो गई थी, जो किसी तरह जुड़ तो गई, लेकिन आज भी उन हड्डियों में असहनीय दर्द उठता है. चोट के चलते कई सालों बाद आज दिन में कई दफा किरोड़ी को चक्कर आ जाते हैं. 

इस घटना के बाद भी निर्भीक और निडर किरोड़ी पुलिस की चुनौती स्वीकार में गुर्रेज नहीं करते हैं. आज भी जहां भी कोई व्यक्ति बैठ कर न्याय की गुहार लगा रहा होता है किरोड़ी उसके पास पहुंच जाते हैं. आज 35 साल बाद भी किरोड़ी प्रदेश के एक मात्र नेता हैं जिनके आगे अच्छा से अच्छा युवा नेता भी बेअसर है.

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