Jaipur: फीस पर फसाद को लेकर ज़ी राजस्थान (ZEE Rajasthan) की अभिभावकों (Parents) को राहत देने के उद्देश्य से चलाई जा रही मुहिम की पहले की दो कड़ी में बात की गई थी, फीस को लेकर निजी स्कूलों की मनमानी और सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के आदेशों की कैसे निजी स्कूल धज्जियां उड़ा रहे हैं?


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आज तीसरी कड़ी में बात हो रही है उन अभिभावकों की पीड़ा की, जिन्होंने इस कोरोना काल में अपनी प्राइवेट नौकरी खो दी है या जिनके छोटे-मोटे व्यापार धंधे चौपट हो गए हैं. ऐसे में निजी स्कूलों द्वारा फीस (Fees Dispute) को लेकर जो दबाव इन पर बनाया जा रहा है, वो अब इन अभिभावकों को मानसिक और आर्थिक पीड़ा दे रहा है.


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बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के लिए भीलवाड़ा (Bhilwara) से जयपुर (Jaipur) आए राजेंद्र प्रसाद के पास पिछले 1 साल से नौकरी नहीं है. राजेन्द्र का कहना है कि "बच्चों को अच्छी शिक्षा देने के उद्देश्य से जयपुर में किराए के मकान में रहकर प्राइवेट कंपनी में नौकरी करता था. कोरोना काल में नौकरी भी चली गई है. अब निजी स्कूल वाले लगातार फीस को लेकर दबाव बना रहे हैं जबकि इस समय घर का खर्च चलाना भी बड़ी समस्या का विषय बना हुआ है" 


ट्यूशन पढ़ाकर निकाल रहे घर का खर्चा
छोटी मोटी ट्यूशन पढ़ा कर अपने परिवार का पेट पालने वाले नितिन गुप्ता का कहना है कि "पिछले डेढ़ साल से कोचिंग और ट्यूशन सेक्टर बंद है, ऐसे में जो भी जमा पूंजी जी वह भी खत्म हो चुकी है. अब परिवार का पेट पालने में भी काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. 2 बच्चों की फीस को लेकर स्कूल लगातार दबाव बना रहे हैं. अप्रैल से ही बच्चों को ऑनलाइन क्लास से भी बाहर कर दिया गया है."


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मानसिक तनाव से गुजर रहे पैंरेट्स
जयपुर की रहने वाली सरिता स्कूलों द्वारा फीस को लेकर बनाए जाने वाले दबाव को लेकर इस समय गहरे मानसिक तनाव से गुजर रही है. जयपुर में ही रेस्टोरेंट चलाने वाली सरिता पिछले डेढ़ साल से कोरोना महामारी में अपना सब कुछ खो चुकी हैं. हालात यह बने कि सरिता को अपना रेस्टोरेंट बंद करना पड़ा और अब सरिता के आर्थिक हालात बिगड़ चुके हैं. सरिता का कहना है कि "कोरोना में आर्थिक रूप से लोगों को बहुत ज्यादा तोड़ दिया है और इसके ऊपर निजी स्कूलों द्वारा फीस को लेकर जो दबाव बनाया जा रहा है, उसके चलते बच्चों के भविष्य को लेकर चिंता भी सताने लगी है." 


अभिभावकों को मानसिक रूप से तोड़ता जा रहा फीस का दबाव 
कैमरे का काम करने वाले युवराज हसीजा की भी कुछ ऐसी ही कहानी है. युवराज हसीजा के तीन बच्चे हैं, जिनमें से 2 बच्चे मोती डूंगरी स्थित एक निजी स्कूल में पढ़ते हैं. युवराज हसीजा का कहना है कि "1 साल से कैमरे के व्यापार में करीब 80 फीसदी की गिरावट होने के चलते अब हमारा व्यापार धंधा चौपट होने की स्थिति में है. व्यापार पूरी तरीके से बर्बाद हो चुके हैं.  निजी स्कूलों द्वारा शत-प्रतिशत फीस का दबाव अब अभिभावकों को मानसिक रूप से तोड़ता जा रहा है." 


फीस में नहीं दी जा रही रियायत
इंश्योरेंस सेक्टर का हाल भी कोरोना काल से कोई खासा अच्छा नहीं है. इंश्योरेंस सेक्टर में काम करने वाले अरविंद अग्रवाल का कहना है कि "पिछले डेढ़ साल से कोरोना ने काफी परेशान किया तो अब पिछले दिनों नौकरी जाने से परिवार के लालन-पालन का भी संकट गहराने लगा है. अभी तक कोई नौकरी भी नहीं मिली है. फीस में रियायत के लिए स्कूलों के सामने कई बार गिड़गिड़ा चुके हैं लेकिन न तो निजी स्कूल सुन रहे हैं और न ही सरकार अभिभावकों की ओर देख रही है."