Jaipur News: लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियां अपने-अपने तरीके से तैयारी कर रही हैं. फिलहाल प्रत्याशी चयन के लिए मंथन की कवायद हो रही हैं. कांग्रेस ने प्रदेश चुनाव समिति के नेताओं के पर्यवेक्षक के रूप में अलग-अलग संसदीय क्षेत्र में भेज रखा है तो बीजेपी कोर ग्रुप की बैठक में आगामी चुनाव की रणनीति पर मंथन करती दिखी है. बीजेपी में जहां कई नये चेहरे उतारे जाने की संभावना दिख रही है तो वहीं कांग्रेस में वरिष्ठ नेताओं को लोकसभा के रण में उतारने की मांग कार्यकर्ताओं की तरफ से आ रही है और इसका कारण है जीत की दरकार.


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बीजेपी कोर ग्रुप में मंथन कर रही है और प्रतिस्पर्द्धी कांग्रेस ने लोकसभा क्षेत्रों में पर्यवेक्षक के रूप में पार्टी नेताओं को भेज रखा है. हर किसी की अपनी अलग रणनीति है लेकिन लक्ष्य एक ही है. कुछ लोग इसे येन-केन-प्रकारेण जीत की कवायद मानते हैं लेकिन पार्टियां इस पर ज्यादा बात नहीं करती. हां जीत के अपने-अपने दावे जरूर है. बीजेपी तो इस बार भी 25 सीट पर जीत दोहराने का दावा कर रही है.


इधर बीजेपी 25 सीट पर जीत दोहराने की बात कह रही है तो दूसरी तरफ कांग्रेस भी प्रत्याशी चयन की कवायद में जुटी है. पर्यवेक्षक के नाते कांग्रेस नेता अधिकांश सीटों पर दौरे कर चुके हैं. पीसीसी चीफ गोविन्द डोटासरा, नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली और प्रदेश प्रभारी सुखजिन्दर रंधावा भी पश्चिमी राजस्थान के साथ उत्तरी राजस्थान के कई जिलों का दौरा कर चुके हैं. कार्यकर्ताओं की नब्ज टटोली जा रही है.


वहीं, कई कार्यकर्ताओं ने अपने फीडबैक में वरिष्ठ नेताओं को चुनाव लड़वाने की मांग की है. पर्यवेक्षक ममता भूपेश कहती हैं कि धौलपुर-करौली और अलवर के साथ ही अन्य जगहों से भी वरिष्ठ नेताओं को चुनाव लड़वाने की मांग आई है. भूपेश कहती हैं कि वरिष्ठ नेताओं का सम्मान ज्यादा रहता है और उनके साथ काम करना सबको अच्छा लगता है. वे मानती हैं कि सीनियर नेता को टिकट मिलने से सब मेहनत करके उनके साथ काम कर लेंगे और चुनाव जीतेंगे इसलिए कार्यकर्ता उम्मीद करते हैं कि वरिष्ठ नेता चुनाव लड़ेंगे. 


कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने वरिष्ठ नेताओं को चुनाव लड़ाने की मांग कर डाली और ममता भूपेश भी उनकी मांग से कुछ हद तक सहमत दिख रही हैं लेकिन सवाल यह भी है कि क्या कांग्रेस में अशोक गहलोत, सीपी जोशी, भंवर जितेन्द्र, सचिन पायलट, महेन्द्रजीत सिंह मालवीय, प्रमोद जैन भाया, गोविन्द डोटासरा और बृजेन्द्र ओला जैसे नेता चुनाव लड़ने के लिए तैयार होंगे, जो अभी विधायक नहीं हैं. उनके लड़ने की संभावना मान भी ली जाए तो क्या? सिटिंग एमएलए छह महीने के अन्तराल में ही फिर से चुनावी मैदान में जाने के लिए जन और धन समर्थन के साथ अपने मन का हौंसला जुटा पाएंगे क्या?


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