जयपुर: पति-पत्नी का कुर्सी का किस्मत कनेक्शन, निलंबन-बर्खास्त के बाद फिर मिली कुर्सी
राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश के बाद जयपुर में मेयर उपचुनाव में आए बड़े टि्वस्ट ने एक बार फिर जयपुर नगर निगम ग्रेटर की सत्ता की चाबी सौम्या गुर्जर के हाथ थमा दी. जयपुर मेयर के अपने 730 दिन के कार्यकाल में 309 दिन के संघर्ष में निकालने के बाद आखिरी सौम्या गुर्जर की किस्मत ने उनका एक बार फिर एनवक्त पर साथ दिया. ऐसा नहीं है कि सौम्या के मेयर बनने के बाद ही उन्हें सत्ता में रहने के लिए संघर्ष करना पड़ा. इस कुर्सी तक पहुंचने से पहले भी उन्हें अपनों का ही विधायकों का विरोध भी झेलना पड़ा था.
Jaipur News: जयपुर नगर निगम ग्रेटर शायद प्रदेश का पहली ऐसी नगरीय निकाय होगी, जिसमें दो साल के अंतराल में इतनी बार मेयर पद पर चेहरों में बदलाव हुआ हो. किस्मत की धनी मानी जानी वाली सौम्या गुर्जर आज दो साल में तीसरी बार यहां मेयर का पदभार ग्रहण करेंगी. एक बार जीतकर जबकि दो बार कोर्ट के आदेशों पर मेयर की कुर्सी संभालने वाली सौम्या गुर्जर के लिए पिछले साल का वक्त बड़े कठिन दौर से गुजरा.
सरकार की ओर से दो बार पद से हटाए जाने के बाद भी वे हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई लड़ते हुए सरकार को आइना दिखाती रही. ये तीसरा मौका था, जब सौम्या ने सरकार को कोर्ट के जरिए झटका दिया. कुछ इसी तरह की कहानी उनके पति राजाराम गुर्जर की है. जब 2019 में स्वास्थ्य निरीक्षक से विवाद के बाद राजाराम गुर्जर को करौली सभापति के पद से निलंबित कर दिया था लेकिन 7 माह 23 दिन बाद फिर से हाईकोर्ट के आदेश के बाद शहरी सरकार को चलाने की चाबी मिली थी.
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राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश के बाद जयपुर में मेयर उपचुनाव में आए बड़े टि्वस्ट ने एक बार फिर जयपुर नगर निगम ग्रेटर की सत्ता की चाबी सौम्या गुर्जर के हाथ थमा दी. जयपुर मेयर के अपने 730 दिन के कार्यकाल में 309 दिन के संघर्ष में निकालने के बाद आखिरी सौम्या गुर्जर की किस्मत ने उनका एक बार फिर एनवक्त पर साथ दिया. ऐसा नहीं है कि सौम्या के मेयर बनने के बाद ही उन्हें सत्ता में रहने के लिए संघर्ष करना पड़ा. इस कुर्सी तक पहुंचने से पहले भी उन्हें अपनों का ही विधायकों का विरोध भी झेलना पड़ा था लेकिन तमाम परिस्थितियों से लड़कर वे मेयर भी बनी. डॉ. सौम्या गुर्जर फ्लैशबैक में जाये तो 10 नवंबर 2020 को जब जयपुर नगर निगम ग्रेटर में मेयर का चुनाव हुआ था. तब सौम्या को टिकट देने पर जयपुर के मौजूदा और पूर्व विधायकों ने विरोध जताया था लेकिन मेयर के पति राजाराम की संगठन में अच्छी पकड़ होने और भाजपा पदाधिकारियों का सपोर्ट मिलने के बाद उन्हें एनवक्त पर विधायकों के विरोध को नजरअंदाज करते हुए मेयर का 2020 में प्रत्याशी बनाया गया.
कुर्सी के लिए वर्तमान गहलोत सरकार से संघर्ष
यही कारण रहा कि जब मेयर को 6 जून 2021 को सरकार ने निलंबित किया था. तब संगठन के पदाधिकारी तो मेयर के पक्ष में उतरे थे, लेकिन विधायकों ने चुप्पी साध ली थी. डॉक्टर सौम्या ने नगर निगम की संचालन समितियों को भंग करने के मामले में लड़ाई लड़ी और उसके बाद अपने मेयर पद को बचाने के लिए. ऐसा नहीं की सौम्या को ही अपनी कुर्सी के लिए वर्तमान गहलोत सरकार से संघर्ष करना पड़ा. उनके पति राजाराम को भी करौली सभापति रहते हुए कुछ ऐसा ही संघर्ष करना पड़ा था. स्वास्थ्य निरीक्षक से हुए एक विवाद के बाद सरकार ने साल 2019 में राजाराम को सभापति के पद से निलंबित कर दिया था, जिसके बाद वे भी करीब 8 माह तक निलंबित रहे. हालांकि बाद में कोर्ट के आदेशों के बाद वे फिर से सभापति की कुर्सी पर बैठने में कामयाब रहे थे
10 तारीख का अलग ही किस्मत कनेक्शन
उधर डॉक्टर सौम्या गुर्जर के लिए 10 तारीख का अलग ही किस्मत कनेक्शन है. जयपुर में जब वे मेयर बनी तब भी 10 नवंबर 2020 का ही दिन था और दोबारा उन्हें हाईकोर्ट के आदेश पर मेयर की कुर्सी मिली और वो भी 10 नवम्बर की तारीख है. दोनों ही मौके पर एनवक्त पर सौम्या ने जीत हासिल कर सभी को चौंकाया है. हालांकि सौम्या की किस्मत में राजयोग पूरा नहीं है शायद. यही कारण रहा कि वे जब महिला आयोग की सदस्य रही तो विवाद के चलते उन्हें कार्यकाल पूरा करने से पहले इस्तीफा देना पड़ा और अब मेयर बनी तो नगर निगम कमिश्नर से विवाद के चलते पद से हटाया गया.
यूं समझिए डॉ. सौम्या कैसे आई चर्चा में...
- डॉ. सौम्या सबसे पहले राज्य महिला आयोग की सदस्य रहते चर्चा में आई. उन्होंने एक रेप विक्टिम के साथ सेल्फी ली थी, जो बाद में सोशल मीडिया पर वायरल हो गई थी. इसके बाद उन्हें 30 जून 2016 को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था.
- सौम्या गुर्जर के पति राजाराम करौली नगर परिषद में सभापति रह चुके हैं, वे तब से चर्चाओं में हैं. सौम्या की तरह राजाराम को भी इसी गहलोत सरकार ने सभापति के पद से निलंबित किया था. नगर परिषद आयुक्त की ओर से की गई शिकायत और थाने में दर्ज रिपोर्ट के आधार पर सरकार ने उन्हें पद से हटा दिया था. करीब 8 महीने सस्पेंड रहने के बाद कोर्ट के आदेश पर उन्हें वापस सभापति की कुर्सी मिली थी.
- राममंदिर निर्माण के लिए राजाराम ने 1 करोड़ रुपए चंदा दिया और करौली में जो पिछले साल दंगे हुए उनमें सरकार ने उनको आरोपित माना तब से ये ज्यादा चर्चाओं में आए.
- राजाराम और BVG कंपनी के प्रतिनिधि के साथ ऑडिया वायरल होने के बाद से वे सुर्खियों में ज्यादा रहने लगे.
मामले को हाईकोर्ट की डबल बेंच में चुनौती दे सकती सरकार
स्वायत्त शासन विभाग और जयपुर नगर निगम में विधि निदेशक के पद पर रहे अशोक सिंह (सेवानिवृत) के मुताबिक राजस्थान हाईकोर्ट के आज के आदेश के बाद सरकार के पास अब दो विकल्प है. सरकार या तो इस मामले को हाईकोर्ट की डबल बेंच में चुनौती दे सकती है. इसमें सरकार ये आधार बना सकती है कि हमने न्यायिक जांच और सुप्रीम कोर्ट के डायरेक्शन के बाद बर्खास्ती के आदेश जारी किए है, जो ठीक है. हम दोबारा अब कोई सुनवाई या आदेश नहीं जारी करना चाहते. दूसरा सरकार न्यायिक जांच के आधार पर सौम्या गुर्जर को अपने समक्ष (सरकार के मंत्री या मंत्री द्वारा अधिकृत अधिकारी) के यहां पक्ष सुनने का मौका दे. ये सुनवाई न्यायिक जांच करने वाले ज्युडिशियल अधिकारी के समक्ष नहीं की जाएगी. इस सुनवाई के बाद सरकार तर्क-वितर्क के आधार पर युक्तियुक्त ऑर्डर जारी करे.
सरकार अपनी कम्पलाइंस रिपोर्ट कोर्ट में पेश करेगी
इस सुनवाई के आधार पर सरकार या तो अपने पुराने आदेश (27 सितंबर 2022) को बरकरार रख सकती है या सौम्या गुर्जर को बरी भी कर सकती है. इस आदेश के बाद सरकार अपनी कम्पलाइंस रिपोर्ट कोर्ट में पेश करेगी. एक्सपर्ट्स के मुताबिक ये राज्य निर्वाचन आयोग और हाईकोर्ट के फैसले पर निर्भर करेगा. अगर सौम्या गुर्जर को सरकार दोबारा से बर्खास्त करती है और हाईकोर्ट सरकार के उस आदेश को ठीक मानता है तो वह दोबारा नए सिरे से चुनाव करवाने के लिए आदेश भी दे सकता है. अथवा सरकार 10 नवंबर को हुई वोटिंग के बाद सील हुई मतपेटियों को खुलवाकर उसकी काउंटिंग करवाकर चुनाव का रिजल्ट जारी करने के लिए कह सकता है. दूसरा अगर हाईकोर्ट की सिंगल एकलपीठ दोबारा चुनाव के लिए राज्य निर्वाचन आयोग को आदेश देती है तो आयोग इस मामले पर डबल बेंच में भी जा सकता है. आयोग डबल बेंच में अपना पक्ष रख सकता है कि चुनाव की सभी प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और नियमों के तहत वोटिंग करवाई जा चुकी है ऐसे में रिजल्ट जारी करने के लिए आयोग मांग कर सकता है.
क्या कहना है राजनीति से जुड़े जानकारों का
राजनीति से जुड़े जानकारों की माने तो इस मामले को सरकार अब ठंडे बस्ते में भी डाल सकती है. उसके पीछे सबसे बड़ा कारण माली समाज का वोटबैंक है. सरकार नहीं चाहेगी कि सौम्या गुर्जर को दोबारा बर्खास्त करने के बाद रश्मि सैनी को मेयर बनने का मौका दे. सैनी अगर मेयर बनती है तो जयपुर जिले के सैनी वोटर्स कांग्रेस से खिसक सकता है क्योंकि अगले एक साल के अंदर राज्य में विधानसभा के चुनाव होने हैं. उधर भले ही सौम्या के दोबारा मेयर की कुर्सी संभालने जा रही हों लेकिन उनसे जयपुर शहर के विधायक अब भी नाखुश है. यही कारण रहा कि जयपुर शहर के किसी भी विधायक का हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है हालांकि संगठन की तरफ से प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया और उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ने कहा हाईकोर्ट के आदेश से राजस्थान की कांग्रेस सरकार के चेहरे पर तमाचा पड़ा है. सरकार ने जयपुर ग्रेटर नगर निगम की चुनी हुई मेयर को हटाने की साजिश की.
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2 साल का कार्यकाल यूं चला सौम्या का सरकार से संघर्ष
-3 नवंबर 2020 को चुनाव जीतकर जयपुर में पार्षद बनी. 10 नवंबर को मेयर का चुनाव जीता और जयपुर ग्रेटर की पहली मेयर बनी.
-28 जनवरी 2021 को साधारण सभा करके नगर निगम में संचालन समितियों का गठन किया, लेकिन राज्य सरकार ने 25 फरवरी को एक आदेश जारी सभी कमेटियों को भंग कर दिया.
-सौम्या ने सरकार के इस आदेशों के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका लगाई और 26 मार्च को कोर्ट ने सरकार के आदेश पर रोक लगा दी.
-4 जून 2021 को मेयर सौम्या का तत्कालीन कमिश्नर यज्ञमित्र सिंह देव से एक बैठक में विवाद हुआ. इस विवाद के अगले दिन यानी 5 जून को सरकार ने सौम्या को मेयर पद से निलंबित कर दिया और मामले की न्यायिक जांच शुरू करवा दी.
-सरकार के निलंबन के फैसले को सौम्या ने राजस्थान हाईकोर्ट में चुनौती दी, लेकिन 28 जून को हाईकोर्ट ने मेयर को निलंबन आदेश पर स्टे देने से मना कर दिया.
-जुलाई में सौम्या ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाकर न्यायिक जांच रूकवाने और निलंबन आदेश पर स्टे की मांग की. इस पर 3 बार से ज्यादा बार सुनवाई हुई और 1 फरवरी 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने निलंबन ऑर्डर को स्टे दे दिया, जिसके बाद 2 फरवरी को सौम्या ने वापस मेयर की कुर्सी संभाली.
-11 अगस्त 2022 को सौम्या के खिलाफ न्यायिक जांच की रिपोर्ट आई, जिसमें उनको दोषी माना गया.
-इसके बाद सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाकर न्यायिक जांच की रिपोर्ट पेश की और मामले की जल्द सुनवाई करवाई. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने 23 सितम्बर को मामले की सुनवाई के बाद सरकार को कार्यवाही के लिए स्वतंत्र करते हुए याचिका का निस्तारण कर दिया.
-27 सितम्बर को सरकार ने एक आदेश जारी करते हुए सौम्या गुर्जर को मेयर पद और पार्षद की सदस्यता से बर्खास्त कर दिया था.
-21 अक्टूबर को सौम्या गुर्जर फिर हाईकोर्ट पहुंची और उन्होंने न्यायिक जांच में सुनवाई का मौका नहीं दिए जाने, बर्खास्तगी के आदेशों को रद्द करने और उपचुनाव पर रोक लगाने के संबंध में याचिका लगाई.
-कोर्ट ने 10 नवंबर को सौम्या को बड़ी राहत देते हुए उनके बर्खास्तगी आदेशों को रद्द करके चुनाव प्रक्रिया को रोक दिया.