Jaipur: राजस्थान के अलवर जिले में डकैती करने के आरोपी चार पुलिस कांस्टेबलों के मामले में अब नया मोड़ आ गया हैं. आरोपी पुलिस कांस्टेबलों के खिलाफ दायर एफआईआर को रद्द करने के हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में राजस्थान सरकार ने एसएलपी दायर कर हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी है. गौरतलब है कि राजस्थान हाईकोर्ट ने इन आरोपी कांस्टेबलों के खिलाफ दायर एफआईआर को रद्द करने के आदेश दिए थे.


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राह चलते की थी पुलिस कांस्टेबलों ने लूट
राजस्थान के अलवर जिले में 27 जुलाई 2021 को गोविंदगढ़ थाना क्षेत्र में राहुल मेव, दो कांस्टेबल नरेन्द्र जाटव, गंगाराम और उनके एक अन्य साथी अनीश एसयूवी कार में सवार थे. इस दौरान इन चारों आरोपियों ने मोटरसाइकिल पर जा रहे  साहिल  खान से पैसे की मांग की. साहिल के मना करने पर चारों आरोपियों ने उसका अपहरण कर 27 हजार रुपये लूट लिए और मोबाइल वॉलेट में 13000 रुपये भी ट्रांसफर करवाए.


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समझौते के लिए भी धमकी
घटना के संबंध में पीड़ित साहिल ने प्राथमिकी दर्ज करवाई और जांच के बाद पुलिस ने अनीश मेव की पहचान की और उसकी तलाश शुरू कर दी. इसी बीच गोविंदगढ़ थाने के एक सिपाही रामजीत ने शिकायतकर्ता को धमकी दी और मामले को लेकर आरोपी से समझौता करने को कहा. आरोपियों के दबाव में खान ने एक पत्र के माध्यम से पुलिस स्टेशन को सूचित किया कि उसने आरोपी के साथ मामला सुलझा लिया है और उसे आगे की कार्रवाई की आवश्यकता नहीं है.


12 अगस्त 2021 को अलवर की तत्कालीन पुलिस अधीक्षक तेजस्वी गौतम ने शिकायर्ता को समझौते के लिए धमकाने वाले एक पुलिस कांस्टेबल के साथ ही लूट में शामिल तीन कांस्टेबलों को निलंबित कर दिया था. चारों कांस्टेबल ने अपने खिलाफ दायर पुलिस एफआईआर को रद्द करने के लिए राजस्थान हाईकोर्ट में याचिका दायर की.


कांस्टेबलों और शिकायतकर्ता के बीच समझौता


राजस्थान हाई कोर्ट में जस्टिस फरजंद अली की एकलपीठ ने 22 फरवरी 2022 को आरोपी कांस्टेबलों और शिकायतकर्ता के बीच समझौता होने की जानकारी के आधार पर एफआईआर को रद्द करने का आदेश दिया. हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि इस मामले में किया गया अपराध हालांकि कंपाउंडेबल नहीं हैं. लेकिन पार्टियों ने विवाद को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लिया हैं. और यह अनिवार्य रूप से उन पक्षों के बीच है जो सार्वजनिक शांति को प्रभावित नहीं कर रहे हैं. इसलिए सद्भाव बनाए रखने और विवाद को अंत में हल करने की दृष्टि से पक्षों के बीच दायर की गई एफआईआर और एफआईआर के चलते की गई आगे की सभी कार्यवाही को रद्द करना उचित समझा जाता हैं.



हाईकोर्ट ने आरोपी कांस्टेबलों की ओर से दायर याचिकाओं को अनुमति देते हुए गोविंदगढ़ थाने में दर्ज हुई लूट की एफआईआर को रद्द करते हुए आगामी सभी कार्यवाही को भी निरस्त करने के आदेश दिये थे. हाईकोर्ट ने संबंधित थानाध्यक्ष को आदेश की प्रति प्राप्त होने की तिथि से एक माह की अवधि के भीतर संबंधित न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करने का भी निर्देश दिया गया.


सरकार ने क्या कहा
राजस्थान सरकार ने इस अपील के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए कहा कि राजस्थान हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के ज्ञान सिंह केस में दिए गए निर्णय को गलत तरीके से लागू किया हैं. सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में माना हैं कि गैर शमनीय अपराध भी धारा 482 के तहत रद्द किये जा सकते हैं. लेकिन इस शर्त के साथ कि विचाराधीन अपराध के सामाजिक प्रभाव को व्यक्तिगत प्रभाव के रूप में माना जाना चाहिए.


पुलिस की ईमानदारी को कमजोर किया


सरकार ने कहा कि इस मामले में आरोपी पुलिस कर्मियों के व्यवहार ने पुलिस बल की ईमानदारी और सत्यनिष्ठा को गंभीर रूप से कमजोर किया हैं. सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को लेकर कहा की वर्तमान मामले में पुलिसकर्मियों ने अपने पद का दुरुपयोग किया और एक सामान्य नागरिक से धन की जबरन वसूली की हैं. यह कदाचार हाईकोर्ट द्वारा सीआरपीसी की धारा 482 के तहत मिली शक्तियों के प्रयोग और कार्यवाही को रद्द करने के लिए किसी भी तरह से सहानुभूति का पात्र नहीं हैं.


इस मामले में समझौता भी पुलिस के दबाव में किया गया था, इसलिए जिन पुलिस कर्मियों पर प्रथम दृष्टया जबरन वसूली के गंभीर अपराध में लिप्त होने के आरोप तय हुए उन्हे पुलिस विभाग द्वारा सेवा से बर्खास्त कर दिया गया हैं. उन्हे एफआईआर रद् कर जांच से छूट नहीं दी जा सकती.


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