Shani Dev Ki Kahani : वैदिक ज्योतिष में सभी ग्रहों और नक्षत्रों की चाल बदलती रहती है.  ये परिवर्तन निश्चित हैं और इनसे होने वाले प्रभाव भी निश्चित है. वहीं बात अगर शनिदेव की करें तो शनि की दशा और महादशा में किसी के जीवन में कितने बदलाव आ सकते हैं, ये बात से समझा जा सकता है कि शनिदेव ने दशा आने पर अपने गुरु पर भी प्रकोप दिखाया था. आज एक रोचक कहानी जो आपने कभी नहीं सुनी होगी...


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कहानी कुछ ऐसे शुरू होती है. कि एक दिन शनिदेव अपने गुरु के पास गए और कहा कि मैं आपके चंद्रमा के ऊपर से गुजरने वाला हूं. इसका अर्थ था कि गुरु जी की साढ़ेसाती शुरू होने वाली थी. गुरु ने शनि देव से कहा कि ऐसा मत करो. 


लेकिन शनिदेव ने कहा कि अगर मैं आप को छोड़ दूंगा तो ये कर्तव्य से विमुख होना होगा. इसलिए मैं ये नहीं कर सकता हूं. गुरु ने पूछा की तुम कितने समय के लिए मुझ पर दृष्टि डालोगे ? तो शनिदेव ने जवाब दिया कि साढ़े सात साल के लिए.


गुरु जी शनिदेव से नाराज हो गये. शनिदेव ने कहा कि ठीक है मैं आप पर सिर्फ सात महीने के लिये दृष्टि डालूंगा, लेकिन गुरु फिर भी तैयार ना हुएं. शनिदेव अपने गुरु को नाराज नहीं करना चाहते थे तो बोले कि सात दिन दृष्टि की अनुमति मांगी लेकिन फिर भी गुरू जी नहीं मानें.


गुरु ने कहा कि शनि तुम मुझ पर दृष्टि कभी मत डालो. ऐसा सुनते ही शनिदेव ने कहा कि अगर मैं ऐसा करता हूं तो फिर मेरा कोई सम्मान नहीं रहेगा, कोई भी धर्म का पालन नहीं करेगा कोई मुझसे नहीं डरेगा. 


शनिदेव ने अपने गुरु से कहा कि मैं केवल साढ़े सात पहर के लिए आपके चंद्र नक्षत्र में रहूंगा यानि की साढ़े बाईस घंटे तक. लेकिन गुरु जी कहा कि मैं तुम्हे सिर्फ पौने चार घंटे यानि कि सवा पहर की अनुमति दे सकता हूं. शनिदेव इसके लिए तैयार हो गये.


गुरु ने सोचा कि सवा पहर तो वो स्नान आदि में ही बिता देंगे,शनिदेव उन्हे परेशान नहीं कर पाएंगे.  शनि देव अपने गुरू के मन की बात को जान चुके थे. उन्होंने सोचा कि चूंकि गुरु ने अपने मन में मुझे धोखा देने के बारे में सोचा है तो अब मुझे ये बताना ही पड़ेगा की मैं कितना निष्पक्ष हूँ.


अब गुरु जी गंगा नदी में स्नान कर बहार निकले तो एक तरबूज का व्यापारी (शनिदेव खुद ही भेष बदलकर आये थे )मिला. व्यापारी ने गुरु को तरबूत काटकर बताया कि वो कितने रसीले और मीठे हैं. जिन्हे देखकर गुरुजी का मन तरबूज खाने को आतुर हो गया. गुरु जी ने तरबूत खरीद लिए और अपने झोले में डालकर निकल पड़े. 


गुरु जी जिस शहर के तरफ चल दिए थे. वहां के राजा और प्रधानमंत्री के बेटे शिकार के दौरान जंगल में खो गये थे. रात तक जब वो वापस नहीं आए तो राजा ने उनकी खोज के लिये सैनिकों को भेजा था. इन सैनिकों ने गुरुजी को आते दिखा. जिनके हाथ में झोला था


इस झोले में से लाल रंग का द्रव्य निकल रहा था. सैनिकों ने गुरुजी को रोका और झोला खोलकर देखा तो वो सन्न रह गये. गुरु जी के झोले में राजा और प्रधानमंत्री के बेटों के सिर थे और रक्त बह रहा था . सैनिक गुरु जी को पकड़कर राजा के पास ले गये. जहां गुरु जी को मृत्युदंड की सजा सुनाई गयी.


गुरु जी समझ चुके थे कि शनि का प्रकोप वो झेल रहे हैं और अब कुछ ही समय बाकी है. अब सैनिक राजा के आदेश के बाद गुरु जी को लेकर उस स्थान पर पहुंचे जहां पहले से जल्लाद तैनात थे. जल्लादों ने जैसे ही गुरु जी को मारने कोशिश की तो गुरु ने उन्हे लालच दिया. और कुछ समय के बदले चांदी के सिक्के देने की बात कहीं.


जल्लादों ने लालच में आकर गुरुजी की बात मान ली. थोड़ी देर के बाद राजा के दरबार में उसके और प्रधानमंत्री के बेटे सकुशल पहुंच गये. सकुशल बच्चों को देख राजा को गुरुजी का ध्यान आया और तुरंत मृत्युदंड को रूकवाकर सम्मान से उन्हे दरबार में लाने को सैनिकों से कहा गया.


गुरुजी को सम्मान से दरबार में लाया गया . सम्मानित किया गया. चांदी की मुद्राएं दी गयी. जिनमें से कुछ गुरु जी ने जल्लादों को अपने वचन के अनुरूप दे दी. जब शनिदेव की दृष्टि पड़ेने का समय समाप्त हो गया तो गुरुजी के सामने शनिदेव आये और पूछा कि आप कैसे हैं.


गुरुजी ने कहा कि जब सिर्फ सवा चार घंटे में मैं मृत्यु शय्या पर पहुंच सकता हूं. मुझ पर कलंक लग सकता है तो फिर आम लोगों का क्या होगा जिन पर तुम साढ़े साती और ढैय्या लगाते हो. गुरुजी ने शनिदेव से वचन लिया किया इतना विचलित किसी को नहीं करोगें. 


इस पर शनिदेव ने कहा कि मैं वचन देता हूं कि अगर मेरी दशा और महादशा में किसी ने अंहकार नहीं किया तो मैं भी उसे परेशान नहीं करूंगा लेकिन अगर किसी ने अहंकार दिखाया तो उसे दंड दूंगा.


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