बाबू जी जरा धीरे चलना, बड़े-बड़े गड्ढे हैं इन राहों पर, सड़कें दे रही हादसों को न्यौता
बगरू कस्बे की कुछ सड़कों से जब आप गुजारेंगे तो वे कुछ इसी अंदाज में अपनी बदहाली का दर्द बयां करती हुई नजर आयेगी.वैसे तो हर बार बरसता के मौसम के बाद प्रदेश की अधिकांश सड़के सरकारी उदासीनता की शिकार होकर क्षतिग्रस्त हो जाती है और वाहन चालकों -राहगीरों के लिए परेशानी का सबब बन जाती है. म
जयपुर: बगरू कस्बे की कुछ सड़कों से जब आप गुजारेंगे तो वे कुछ इसी अंदाज में अपनी बदहाली का दर्द बयां करती हुई नजर आयेगी.वैसे तो हर बार बरसता के मौसम के बाद प्रदेश की अधिकांश सड़के सरकारी उदासीनता की शिकार होकर क्षतिग्रस्त हो जाती है और वाहन चालकों -राहगीरों के लिए परेशानी का सबब बन जाती है.
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने हालही में विभिन्न सड़क परियोजनाओं के एक शिलान्यास समारोह के दौरान अधिकारियों को बरसात के क्षतिग्रस्त हुई सड़कों के हालात सुधरने को लेकर संबंधित विभागों के अधिकारियों को निर्देश दिए थे, लेकिन प्रदेश की नौकरशाही सालों से क्षतिग्रस्त पड़ी सड़कों की सुध नहीं ले रही तो फिर ऐसे अधिकारियों से बारिश में क्षतिग्रस्त हुई सड़कों की हालत सुधारने की उम्मीद कैसे की जा सकती है.
अधिकारियों की उदासनीता बनी मुसीबत
बगरू कस्बे को आसपास के ग्रामीण इलाकों और औधोगिक क्षेत्रों से जोड़ने वाली कई महत्वपूर्ण मुख्य सड़के पिछले कई वर्षों से अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही है. ये सभी सड़के जयपुर विकास प्राधिकरण और सार्वजनिक निर्माण विभाग के अधीन आती है. दोनों विभागों के अधिकारियों की उदासीनता आमजन के लिए परेशानी का सबब बनी हुई है. सड़कों पर बने बड़े-बड़े गड्ढे हादसों का कारण बन रहे हैं, लोग दुर्घटनाओं के शिकार हो रहे हैं पर हमारी नौकरशाही और जनप्रतिनिधियों की नींद टूटती नहीं है.
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ऊबड़ खाबड़ राहों से गुजरना बना मजबूरी
प्रदेश के औधोगिक क्षेत्र की स्थापना करते समय सरकार उद्यमियों को सभी आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध करवाने का आश्वासन देती है, जिसमें आवागमन के लिए सुगम रास्ते उपलब्ध करवाना भी सरकार की जिम्मेदारी होती है. बगरू रीको औधोगिक क्षेत्र और महिंद्रा वर्ल्ड सिटी स्पेशल इकॉनोमिक जोन को जोड़ने वाली करीब 2 किलोमीटर लंबी एक सड़क जो जयपुर विकास प्राधिकरण के अधीन आती है, पिछले करीब 5 साल से बदहाल पड़ी है, जिससे सड़क में गड्ढे कितने है ये गिनने से सड़क कितनी बची है इसका हिसाब लगाना आसान है, रोजाना हजारों कर्मचारी और उद्योगपति अपनी जान जोखिम में डालकर इस ऊबड़ खाबड़ रास्ते से गुजरने को मजबूर है, बाहर से आने वाले बायर्स को भी लंबा चक्कर लगाकर इन औधोगिक क्षेत्रों में आना पड़ता है.
मुख्यमंत्री के निर्देशों के बावजूद नही टूटी नौकरशाही को नींद
जिन उद्योगपतियों की औधोगिक इकाइयों बगरू रोको औधोगिक क्षेत्र में उनने से कई लोगों का कारोबार महिंद्रा वर्ल्ड सिटी सेज में भी जिसके लिए उन्हें रोजाना इधर से उधर जाना पड़ता है, जिससे लिए यह सड़क मार्ग सबसे सुगम पड़ता है, लेकिन सड़क हालत देखकर किसी की यहां से गुजरने की हिम्मत ही नहीं होती, मजबूरन दूसरे रास्तों का रुख करना पड़ता है, जिसमे समय की बर्बादी तो होती है, अन्य आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है, सड़क का पुनः निर्माण और सुदृढ़ीकरण को लेकर बगरू इंडस्ट्रियल एसोसिएशन के अध्यक्ष राजकुमार अग्रवाल ने जेडीए, रीको और स्थानीय विधायक तक को अवगत करवाया है, लेकिन आज तक किसी ने इस सड़क की सुध लेने को जहमत नहीं उठाई है.
उद्योगपति ही नहीं किसान और ग्रामीण भी इन टूटी सड़कों से बेहद परेशान हैं, बगरू को फागी तहसील से दर्जनों गांवों से जोड़ने वाली बगरू - चकवाड़ा सड़क भी कई सालों से अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही है, ग्रामीण और किसान पीडब्ल्यूडी और स्थानीय जनप्रतिनिधियों से इस सड़क को सुधारने को लेकर कई बार गुहार लगा चुके है, रोजाना आने जाने वाले राहगीरों ओर वाहन चालकों की तो अब आदत सी बन गई है, ज्यादा तकलीफ तो तब होती है जब गांव में कोई व्यक्ति हार्ट अटैक जैसी गंभीर बीमारी का शिकार हो जाता है या फिर किसी गर्भवती महिला को इमरजेंसी में प्रसव के लिए बगरू लाना हो, इस स्थिति में कई बार क्षतिग्रस्त सड़क इन लोगों के लिए अभिशाप बन जाती है, ओर अस्पताल पहुंचने में हुई देर कभी कभी मरीज के लिए जानलेवा साबित होती है.
जनप्रतिनिधि भी नहीं दे रहे ध्यान
खस्ताहाल सड़कों से केवल उद्योगपति, किसान और ग्रामीण ही परेशान नही है, बड़े शिक्षण संस्थानों में अच्छी शिक्षा के लिए बगरू कस्बे में आने वाले हजारों विद्यार्थी भी इस लचर सरकारी व्यवस्था का दंश झेल रहे है, बरसात के मौसम में टूटी सड़कों पर पानी भरने से कभी खुद विद्यार्थी हादसे का शिकार हो जाते है तो कभी यूनिफॉर्म गंदी हो जाती है, अपने वाहनों से आने वाले विद्यार्थी और या फिर स्कूल वाहन से आने वाले विद्यार्थी हो, घर से स्कूल तक का 8 से 10 किलोमीटर का सफर तय करने में 30 से 40 मिनिट का समय लगता है, कभी कभी तो स्कूल पहुंचने में भी देरी हो जाती है.
जब सरकार और सरकार के नुमाइंदे राजधानी के से महज 30 किलोमीटर की परिधि में खस्ताहाल सड़कों की सुध नहीं ले रही है तो फिर दूर दराज के देहाती इलाकों में सड़को की सूरत बदलने की तो उम्मीद ही क्या की जा सकती है, अब देखने वाली बात यह है कि प्रदेश के मुखिया के दिशा निर्देश के बाद कब इन अधिकारियों की नींद टूटेगी और कब इन बदहाल सड़कों की दशा सुधरेगी.
Reporter- Amit Yadav
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