जयपुर: रोजगार के घटते सरकारी अवसर के बीच शहर के युवाओं में खुद का काम या रोजगार लेने वाला नहीं रोजगार देने वाला बनने की चाह हिलोरें मार रही हैं.शहर के युवाओं ने कई ऐसे उद्यम खड़ा कर दिया है जिसके न सिर्फ वो मालिक हैं बल्कि औरों को रोजगार भी दे रहे हैं.स्टार्टअप की दुनिया जितनी चमकदार है उससे कई गुना ज्यादा मेहनत भरी भी है


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कोरोना महामारी के दौरान कई ऐसे शब्द रहे जो लोगों की जुबां पर आए. इनमें से एक है 'स्टार्टअप'.आपने भी इन दिनों ये शब्द खूब सुना होगा. जैसे- मेरा स्टार्टअप, उसका स्टार्टअप, इसका स्टार्टअप. स्टार्टअप का मतलब होता है किसी नए बिजनेस या काम की शुरुआत. जिंदगी में जोखिम उठाना जरूरी है. खुद के साथ समाज के लिए कुछ अच्छा और बेहतर करना जरूरी है. इन शब्दों को अपने जीवन में उतारकर जिले के कुछ लोगों ने स्टार्टअप की दुनिया में अपनी सोच का लोहा मनवा रहे हैं.


मामला किसी भी क्षेत्र से जुडा हो वे अपने स्टार्टअप से एक अलग छाप छोड़ रहे हैं. किसी के स्टार्टअप से लोग सेहतमंद हो रहे हैं तो किसी का स्टार्टअप लोगों को ओल्ड इन गोल्ड का एहसास करा रहा है.न सिर्फ वे अपना नाम कमा रहे हैं. बल्कि अच्छी आमदनी भी कर रहे हैं.कुछ ही समय में इन्होंने अपने स्टार्टअप को एक अच्छे मुकाम पर पहुंचा दिया है.कुछ ही समय में इन्होंने लोगों का दिल जीत लिया है.बड़ी बात यह है कि ये न सिर्फ खुद आत्मनिर्भर हुए हैं बल्कि कई लोगों को रोजगार देकर आत्मनिर्भर बना दिया है. इन्होंने सिद्ध किया है कि ईमानदारी और व्यवसाय में टिके रहने से एक न एक दिन सफलता जरूर हासिल होती है.


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 नौकरी बांटने में भरोसा रखते हैं आज के युवा


स्टार्टअप का कहना हैं की आमतौर पर नौकरी के पीछे भागने वाले युवाओं की पहचान अब तेजी से बदल रही है..अपना भविष्य खुद तय कर रहे हैं...बिजनेस में सफलता का मंत्र सीखकर अपने उत्पाद को ग्लोबल मार्केट तक पहुंचाने की जोर आजमाइश के तहत ऐप जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म का भी सहारा ले रहे हैं...बदलाव की इबारत लिखते हुए जयपुर शहर के युवाओं ने स्टार्टअप की राह चुनी...आइए आपको मिलवाते कुछ ऐसे ही स्टार्टअप से


14 किलो की साइकिल को फोल्ड कर कहीं भी ले जा सकते


स्टार्टअप कार्तिकेय गुप्ता बताते हैं कि कॉलेज, इंटर्नशिप और कोटा कोचिंग के लिए गया तो मुझे व्हीकल की जरूरत महसूस हुई. मगर मेरे पास कोई ऐसा व्हीकल नहीं था, जिसे मैं आसानी से कहीं भी ले जा सकूं.घर से बाहर पढ़ रहा था इसलिए घर से साइकिल, स्कूटी या बड़ी गाड़ी नहीं मिली थी.वहीं से आइडिया आया मेरी उम्र के युवाओं को कई स्थानों पर जाना पड़ता है, तब सोचा उनके लिए खास तरह का फोल्डेबल व्हीकल बनाऊं.समाधान ऑटोमोबिल इंजीनियरिंग के बाद मैंने 2019 में फोल्डेबल व्हीकल का प्रोटोटाइप प्रोफेसर व सीनियर्स की मदद से बनाना शुरू किया.ब्रेन स्टॉर्मिंग सेशन में मां और छोटे भाई शिवांश ने साथ दिया.एक साल 4 महीने में इलेक्ट्रिक व्हीकल बनाकर तैयार कर लिया.जिसे ट्रॉली बैग की तरह रोल करके कहीं भी ले जाया जा सकता है.इसे मोड़कर कर इसपर बैठा भी जा सकता है.अधिकतम स्पीड 25 किलोमीटर प्रति घंटा होने की वजह से लाइसेंस की आवश्यकता भी नहीं..3 घंटे में फुल चार्ज हो जाएगी। वजन 14 किलो, कीमत 29999 है. अचीवमेंट्स अभी अपनी ऑफिशियल वेबसाइट की मदद से 4 यूनिट बेच चुके हैं..पिछले साल जनवरी में सेंट्रल गवर्नमेंट से 10 लाख और मार्च में प्रदेश सरकार के आई स्टार्ट से 5 लाख के फंड मिला हैं.


3 साल में 3 लाख से ज्यादा जुराब बेची,  3 करोड़ का हुआ कारोबार


अनोखे नाम 'ठेला गाड़ी' के साथ जयपुर के कपिल गर्ग ने 2019 में स्टार्टअप की शुरुआत की..वे कहते हैं. बड़ी संख्या में चाइना व थाइलैंड से फैशनेबल, स्टाइलिश जुराबें व रुमाल आ रहे हैं.वे 18 से 35 एज ग्रुप के लिए जुराबों में टॉप एंड जैरी, स्कूबी डू, शिनचैन, पावर पफ गल्स, डेक्सटर लेबोरेट्रीज की कई वैरायटी लाए हैं.प्रॉडक्ट्स को सूती धागों से तैयार कर रहे हैं. बीते 3 सालों में 3 लाख से ज्यादा जुराबों के जोड़े बेच चुके हैं. पिताजी सरकारी नौकरी में थे तो मना किया इतना अच्छा जॉब छोडकर क्या कर रहा है, लेकिन मन में कुछ करने का जज्बा था.


शुरुआती दौर में थी कई चुनौती


शुरुआत दौर में कुछ दिक्कतों का सामना करना पडा, लेकिन आज बिजनेस अच्छा चल रहा हैं.कपिल बताते हैं की स्टार्टअप अकेले चलाना नामुमकिन तो नहीं, लेकिन अगर आपके पास कोई अच्छा को-फाउंडर और अच्छी टीम नहीं है तो उसे बड़ा कर पाना नामुमकिन है.बहुत से लोग यहीं गलती कर जाते हैं.वो सब कुछ खुद करना चाहते हैं.और एक समय के बाद आपका स्टार्टअप आगे बढ़ना बंद कर देता है या उसमें नए आइडियाज आने बंद हो जाते हैं. स्टार्टअप एक लाइफस्टाइल है, उसे हर दिन जीना पड़ेगा.आपको अपने जैसे क्रेजी लोगों की जरुरत पड़ती है.जो आपके आइडियाज में भरोसा करते हैं और एनर्जी से भरपूर हों.एक फाउंडर के तौर पर आपको ऐसे लोगों को खोजना और उन्हें इनेबल करना आपका प्राइम फोकस होना चाहिए.


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भारत में डॉग फूड मार्केट का बढ़ रहा कारोबार


जयपुर बेस्ड फ्रेशवुक स्टार्टअप के को-फाउंडर तेजविंदर सिंह कहते हैं. दुनिया में डॉग फूड मार्केट 57 बिलियन का है.जबकि भारत में 0.1% भी नहीं है. हमारे डॉग रूबी को मीट से एलजी हुई.डॉक्टर ने कहा इसे वीगन मील दो.जुलाई 2021 में घर पर डॉग के लिए बिना कैमिकल व प्रिजर्वेटिव वाला डॉग फूड घर में बनाना शुरू किया.28 बार अलग और नया बनाते हुए शाकाहारी व ग्लूटन फ्री 'चिकपीज व ओट्स' डॉग फूड बनाया.महीने में 9 हजार पाउच बेच रहे हैं. तेजविंदर सिंह कहते हैं की किसी भी स्टार्टअप में सबसे पहला और अहम् स्टेज है ये, यानी जितना अच्छा आपका आइडिया होगा उतना ही बेहतर आपका स्टार्टअप.केवल आइडिया का होना ही एक सफल स्टार्टअप की गारंटी नहीं होती है. बेहतर आइडिया के लिए एक बेहतर प्रॉब्लम का होना जरूरी है.यानी आप अपने बिज़नेस से जितनी बड़ी समस्या सॉल्व करेंगे, उसके बड़े होने का चांस उतना ही बड़ा होगा.