जैसलमेर: सरहद के गांवों में आज भी जीवित है परंपरागत होली, वीडियो देखने को आपको कर देगा मजबूर
Jaisalmer Gair holi dance Video: जैसलमेर जिले के सरहदी गांवों के साथ ही कोटडी व खियां गांव में होली पर गैर खेलने की परंपरा बीती कई शताब्दियों से आज भी जीवित हैं. यहां ग्रामीण बड़े ही शौक से होली पर गैर खेलते हैं. और होली का स्वागत बड़े ही धूमधाम से मनाते है.
Jaisalmer Gair holi dance Video: अपने अनूठे अतिथि सत्कार व मेहमानजवाजी के नाम से जाना जाने वाला सरहदी जैसलमेर जहां आज भी लोक परंपराएं जीवित हैं.आज के भागदौड़ भरे दौर में जहां सभी व्यस्त है और लोक संस्कृति को सजोने वाली परंपराएं लुप्त होती जा रही है, वहीं सरहदी जिले जैसलमेर के वाशिंदे अपनी परम्पराओं को सजोए हुए हैं.
जैसलमेर जिले के सरहदी गांवों के साथ ही कोटडी व खियां गांव में होली पर गैर खेलने की परंपरा बीती कई शताब्दियों से आज भी जीवित हैं. यहां ग्रामीण बड़े ही शौक से होली पर गैर खेलते हैं.
सिर्फ पुरूष ले सकते है हिस्सा
राजस्थानी वेशभूषा में धोती-कुर्ता व साफा पहने हाथों में डांडिया लिए एक ही ताल पर ये राजस्थानी झूमते नजर आते हैं. इस गैर (Gair holi dance) की एक खास बात यह है कि यह पुरुषों के जरिए ही किया जाता है . इसमें महिलाएं सम्मिलित नहीं होती जहां ढोलक की चाप की आवाज और घेरे के बीच बैठा एक व्यक्ति राजस्थानी भाषा में गैर गीत गाता है और गेरिये थिरकते (Gair holi dance) हुए घेरे में चक्कर लगाते हुए गैर खेलते है.
ढोलक की ढाप पर थिरकते हैं पांव
वहीं, दूसरी खास बात ये कि इसमें कोई म्यूजिक सिस्टम नहीं बजता बल्कि ढोलक की ढाप पर ही गैरियों(गैर नर्तक) के पांव थिरकते हैं और एक ही साथ डांडियों के टकराने की आवाज गूंजती है. वहीं, तीसरी बात इस गैर नृत्य में गुलाल का प्रयोग नहीं किया जाता.
बता दें कि गेरिये अपनी खुशी का इजहार और होली का स्वागत गैर नृत्य से ही करते हैं. गैर की शुरुआत यहां फाल्गुन सुदी एकम से शुरू होती है जो होलिका दहन पूर्णिमा तक जारी रहती है. लगभग 15 दिन तक यहां गैर खेली जाती है. इस गैर नृत्य का अगर आनंद लेना है तो ऊपर लगे वीडियो को देखें.