Navratri 2024: भारत-पाक सीमा से सटे व जैसलमेर से 120 किलोमीटर दूर तनोट माता का मंदिर देश भर के श्रद्धालुओं का भी श्रद्धा का भी केन्द्र है. देश भर से श्रद्धालु नतमस्तक होने पहुंचते हैं. नवरात्रि के मौके पर तनोट मंदिर में आस्था का ज्वार उमड़ा रहा है. विख्यात माता तनोट के मंदिर में होने वाली तीनों आरतियों में समूचा मंदिर परिसर श्रद्धालुओं से भर जाता है और मंदिर में आरती के बाद परिसर माता रानी के जयकारों से गूंज जाता है. तनोट राय मन्दिर आमजन की आस्था का केन्द्र भी बनता जा रहा है. 


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इस मंदिर को तनोट राय माता मंदिर के नाम से जाना जाता है. बताया जाता है कि यहां से पाकिस्तान बॉर्डर मात्र 20 किलोमीटर है. भारत-पाकिस्तान बॉर्डर पर स्थि‍त है. तनोट माता को देवी हिंगलाज माता का एक रूप माना जाता है. हिंगलाज माता शक्तिपीठ वर्तमान में पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के लासवेला जिले में स्थित है. भाटी राजपूत नरेश तणुराव ने तनोट को अपनी राजधानी बनाया था. उन्होंने विक्रम संवत 828 में माता तनोट राय का मंदिर बनाकर मूर्ति को स्थापित किया था. 



भाटी राजवंशी और जैसलमेर के आसपास के इलाके के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी तनोट माता की अगाध श्रद्धा के साथ उपासना करते रहे. कालांतर में भाटी राजपूतों ने अपनी राजधानी तनोट से जैसलमेर ले गए, लेकिन मंदिर वहीं रहा. तनोट माता का य‍ह मंदिर स्थानीय निवासियों का एक पूजनीय स्थान हमेशा से ही रहा है, लेकिन 1965 में भारत-पाक युद्ध के दौरान जो चमत्कार देवी ने दिखाए. उसके बाद तो भारतीय सैनिकों और सीमा सुरक्षा बल के जवानों की भी गहरी आस्था बन गई. 



तनोट माता के मंदिर से भारत-पाकिस्तान युद्ध की कई चमत्कारिक यादें जुड़ी हुई हैं. यह मंदिर भारत ही नहीं बल्कि पाकिस्तानी सेना के फौजियों के लिए भी आस्था का केन्द्र रहा है. 



कहते हैं कि 1965 के भारत-पाक युद्ध में पाक सेना ने हमारी सीमा में भयानक बमबारी करके लगभग 3 हजार हवाई और जमीनी गोले दागे थे, लेकिन तनोट माता की कृपा से किसी का बाल भी बांका नहीं हुआ. पाकिस्तानी सेना 4 किलोमीटर अंदर तक सीमा में घुस आई थी लेकिन युद्ध देवी के नाम से प्रसिद्ध इस देवी के प्रकोप से पाक सेना को उल्टे पांव लौटना पड़ा. 


पाक सेना को अपने 100 से अधिक सैनिकों के शवों को भी छोड़ कर भागना पड़ा. कहा जाता है कि युद्ध के समय माता के प्रभाव ने पाकिस्तानी सेना को इस कदर उलझा दिया था कि रात के अंधेरे में पाक सेना अपने ही सैनिकों को भारतीय समझ कर उन पर गोलाबारी करने लगे. 



नतीजा ये हुआ कि पाक सेना ने अपने ही सैनिकों का अंत कर दिया. इस घटना के गवाह के तौर पर आज भी मंदिर परिसर में 450 तोप के गोले रखे हुए हैं. इस चमत्कार को लेकर हर वर्ष मां के दर्शन करने लाखों श्रद्धालु तनोट पहुंचकर मां से अपनी मनत मांगते हैं. इन दिनों शारदीय नवरात्रि चल रहे हैं और इस नवरात्रि को लेकर पूरे देश भर में लाखों से लाल तनोट माता के दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं. 


पाकिस्तानी ब्रिगेडियर ने चढ़ाया था चांदी का छत्र 
बताया जाता है कि 1965 के युद्ध के दौरान माता के चमत्कारों को देखकर पाकिस्तानी ब्रिगेडियर शाहनवाज खान नतमस्तक हो गया था. युद्ध हारने के बाद शाहनवाज ने भारत सरकार से मंदिर में दर्शन की परमिशन मांगी थी. करीब ढाई साल में उन्हें अनुमति मिली. बताया जाता है तब शाहनवाज खान की ओर से माता की प्रतिमा पर चांदी का छत्र भी चढ़ाया गया था. 


1971 युद्ध के बाद BSF ही संभालती है मंदिर की व्यवस्था 
बीएसएफ जवान ही अब मंदिर की पूरी देखरेख करते हैं. मंदिर की सफाई, पूजा अर्चना और यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए सुविधाएं जुटाने तक का सारा काम बीएसएफ बखूबी निभा रही है. साल भर यहां आने वाले श्रद्धालुओं की जितनी आस्था इस मंदिर के प्रति है, उतनी ही आस्था देश के इन जवानों की भी है.