Jhalawar News: दशहरा महोत्सव है, तो इस अवसर पर रावण का पुतला तो दहन के लिये हर शहर और गांव मे बनाया जाता है. लेकिन झालावाड जिले के झालरापाटन शहर में रावण दहन स्थल पर रावण का पूरा कुनबा पूरा साल मौजूद रहता है. क्योंकि वर्षों पुरानी  रियासतकालीन परम्परा के अनुसार रावण, मन्दोदरी, विभिषण, सोयी मुद्रा मे कुम्भकरण, मेघनाथ और रावण के सेवक द्वारपाल यानि पूरा का पूरा रावण दरबार ही पूरे साल मौजूद रहता है.


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आपको बता दें कि झालरापाटन शहर की रावण परिवार के इन पुतलो का निर्माण रियासत काल से मिट्टी से किया जाता था. लेकिन आधुनिकता के दौर में,अब नगर पालिका ने इन्हे सीमेंन्ट से बनवा कर मजबूती दे दी है. और रंगीन पेन्टीगं से इसे और भी आकर्षित बना दिया हैं. जो कि झालावाड के झालरापाटन शहर के इन्दौर मार्ग पर स्थित रावण दरबार के ये विशाल पुतले इंदौर हाइवे से निकलने वाले राहगीरो के लिये वर्ष भर कोतूहल का केन्द्र बने रहते है. 



स्थानीय नागरिकों ने बताया कि रावण दरबार और उसके परिवार के पुतले झालावाड़ के तत्कालीन रियासत के महाराजा ने ही बनवाए थे. उस समय कागज के पुतलों का दहन नहीं किया जाता था. मिट्टी के पुतले से बने रावण की नाभि में रंग से भरा एक मटका रखा जाता था, जिस पर बाण चलाकर रावण वध की परंपरा निभाई जाती थी. देश के हर शहर गांव कस्बों में दशहरे के दिन रावण के पुतलों का दहन हो जाता है, लेकिन झालरापाटन के मेला मैदान में रावण का यह पूरा परिवार साल भर ऐसे ही स्थाई रूप से खड़ा रहकर लोगों को बुराई से दूर रहने की प्रेरणा देता है. 


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इन पुतलों के पास ही कागज के दूसरे पुतले बनाकर दशहरे के दिन दहन किए जाते हैं.  लेकिन इन स्थाई पुतलों को इसी प्रकार बरसों से सुरक्षित रखा गया है. पूरे वर्ष भर कुछ लोग यहां मन्नत मांगने भी आते है. वही दूसरी ओर बच्चो को बुरी नजर लगने पर भी यहां लाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि रावण परिवार के सामने बच्चो का शीश झुकवाने से बुरी नजर उतर जाती है. इसके साथ ही कुंवारे युवक भी यहां मन्नते लेकर आते है.