झुंझुनूं: भारत समेत पूरा विश्व इस समय चिप की कमी से जूझ रहा है. सेमी कंडक्टर या चिप की कमी से मोबाइल, लैपटॉप और कंप्यूटर बनाने में कंपनियों के पसीने छूट रहे हैं. ऐसे में रेगिस्तान की रेत कंपनियों के लिए राहत भरी खबर लेकर आई है. राजस्थान की रेत सोना उगल रही है. वैज्ञानिक ने दावा किया है कि राजस्थान की रेत में सिलिकॉन पाया जाता है. पिलानी के वैज्ञानिक डॉ. मनीष खंडेलवाल ने दावा किया है कि 95 फीसदी सिलिकॉन पाया जाता है. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

राजस्थान की मिट्टी में सिलिकॉन के भंडार 
राजस्थान की रेत यानि कि मिट्‌टी भी सोने से कम नहीं है. इस मिट्‌टी में सिलिकॉन के भंडार भरे पड़े हैं. केमिकल एनालिसिस में यह बात साबित हुई है कि इस रेत में 95 फीसदी प्योर सिलिका है. जो सिलिकॉन बनाने के काम आ सकती है. सिलिकॉन ही सेमी कंडक्टर व छोटी सी चिप बनाने के काम में आता है.


कंप्यूटर, मोबाइल, कार, एसी, बल्ब आदि सभी में सेमी-कंडक्टर का प्रयोग किया जाता है. मोबाइल से पेमेंट करते, गाड़ी चलाते या फिर फ्लाइट से चंद घंटों में हजारों किलोमीटर की दूरियां नापते हुए हमें शायद ही इस आधे इंच की चीज का ख्याल आता है, लेकिन तेजी से डिजिटल होती हमारी दुनिया में हर तरफ इसका ही दखल है. लैपटॉप से लेकर फिटनेस बैंड तक और छोटी से छोटी कंप्यूटिंग मशीन से लेकर मिसाइल तक में आज यह चीज धड़क रही है.


यह भी पढ़ें: चुनाव से पहले बड़ा झटका, कांग्रेस और बीजेपी छोड़कर 25 नेताओं ने किया AAP ज्वाइन


दुनिया इसे ही सेमीकंडक्टर या माइक्रोचिप कहती है. बिट्स पिलानी के पूर्व छात्र व सिलिकॉन इंडस्ट्री के जाने माने वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. मनीष खंडेलवाल कहते हैं कि हमारे देश में इसकी उपयोगिता इसलिए भी अधिक है क्योंकि हमारे पास सिलिकॉन के भंडारे होने के बावजूद हम दूसरे देशों पर निर्भर हैं. क्योंकि हम इसका प्रोसेस नहीं करना जानते. इसी कारण सिलिकॉन मेटल उत्पादन में देश का योगदान एक फीसदी भी नहीं है. देश में सिलिका के प्रोडक्शन के मामले में हरियाणा नंबर वन स्टेट है. वह भी सारा सिलिका राजस्थान से ही उठाता है. राजस्थान में सिलिका की पहचान करने की दिशा में सरकार सोचे तो इससे इंडस्ट्री डवलेप होगी और लाखों युवाओं को रोजगार मिल सकते हैं.



पिलानी के डॉ. मनीष ने हासिल किए 150 से ज्यादा पेटेंट


बिट्स पिलानी के पूर्व छात्र व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. मनीष खंडेलवाल ने सिलिकॉन एक्सपर्ट के तौर पर जाने जाते हैं. उन्होंने सिलिकॉन से जुड़े 100 पेटेंट हासिल कर रखे हैं. जबकि 50 से ज्यादा के लिए फाइल लगा रखी है. वे कहते हैं कि चिप तैयार करने में काम आने वाले 450 तरह के केमिकल उनकी कंपनी बनाती है. इनके बिना चिप तैयार नहीं होती. वे दावा करते हैं कि ऐसा कोई आइकॉन नहीं होगा, जिसने उनके बनाए केमिकल काम में नहीं लिए होंगे. सेमसंग गलेक्सी की टेबलेट में लगी चिप में भी उनका केमिकल यूज होता है. देश में बिना सिलिकॉन के चिप नहीं बनती. इसलिए इसका आयात करना पड़ता है. बैंगलोर आईटी इंडस्ट्री है, लेकिन वहां पर आयातित सामग्री के बाद ही चिप तैयार की जाती है.


यह भी पढ़ें: ब्रिटेन: लिज ट्रस बनीं नई प्रधानमंत्री, भारतीय मूल के ऋषि सुनक को इतने मतों से दी मात


सेमी कंडक्टर के बाद सोलर पैनल दूसरी बड़ी इंडस्ट्री
डॉ. खंडेलवाल बताते हैं कि सेमी कंडक्टर के बाद सोलर पैनल इंडस्ट्री दूसरी बड़ी इंडस्ट्री है. वर्तमान में देश में सोलर पैनल का फ्यूचर ब्राइट है. क्योंकि यहां सालभर में 300 दिन सूर्य चमकता है. फिर भी हम सोलर पैनल आयात करते हैं. इसका 60 से 70: तक मार्केट शेयर चाइना के पास है. देश में खुद का सौलर पैनल बनाने के लिए सिलिकॉन बनाना पड़ेगा. इसमें कोई समस्या नहीं है, क्योंकि राजस्थान में सिलिकॉन का भंडारा पड़ा है. सिलिकॉन ऑक्साइड मतलब रेत.


राजस्थान में हाई क्वालिटी की इतनी अधिक रेत है कि हमें कहीं से कुछ आयात नहीं करना पड़ेगा. जबकि वर्तमान में सिलिकॉन से प्रोडक्ट बनाने का देश का योगदान महज एक फीसदी भी नहीं है. राजस्थान की रेत का केमिकल एनालिसिस करने पर यह बात सामने आई है कि इसमें 95 फीसदी प्योर सिलिका है. फिर भी हमारे यहां न प्रोसेज की जानकारी है और न ही सिलिकॉन मैटल प्रोडक्शन किया जाता है.


Reporter- Sandip Kedia


अपने जिले की खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें