झुंझुनूं: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ करेंगे अपने ही स्कूल का शिलान्यास, प्रिंसिपल ने जुटाए 35 लाख
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आज से करीब 66 साल पहले झुंझुनूं के पिलानी की जिस स्कूल में प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की थी, उसी के नए भवन की आधारशीला रखने 8 सितंबर को वे पैतृक गांव झुंझुनूं के किठाना आ रहे है.गांव के चौक में इन दिनों उनके बचपन के किस्से कहानियों की ही चर्चा चलती हैं, चर्चाओं में यह बात भी निकलकर आई कि धनखड़ संकल्प के धनी हैं वे जो ठान लेते हैं करके ही दिखाते हैं.
Jhunjhunu: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आज से करीब 66 साल पहले जिस स्कूल में प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की थी, उसी के नए भवन की आधारशीला रखने 8 सितंबर को वे पैतृक गांव झुंझुनूं के किठाना आ रहे है. स्कूल के जर्जर हो चुके भवन की मरम्मत के लिए ग्रामीणों ने मिलकर 35 लाख रुपए जुटाए, इनमें राज्यपाल के पद पर रहते हुए जगदीप धनखड़ की ओर से दिए गए 11 लाख रुपए भी शामिल हैं. जनसहभागिता योजना के तहत समसा की ओर से 70 लाख रुपए में आठ कक्षा कक्ष मय बरामदे का निर्माण कराया जाएगा. इसकी आठ सितंबर को नींव रखी जाएगी, जिसे लेकर ग्रामीण उत्साहित हैं और तैयारियों में बढ़ चढ़कर भाग ले रहें हैं, क्योंकि उनके गांव के सपूत अब उपराष्ट्रपति बन चुके हैं और उपराष्ट्रपति के रूप में पहली बार वे अपने गांव आ रहें हैं. ऐसे में ग्रामीण उनके स्वागत के लिए पलक पांवड़े बिछाए हुए हैं. स्कूल में उनके सहपाठी रहें बुजुर्गों में भी उत्साह है.
गांव के चौक में इन दिनों उनके बचपन के किस्से कहानियों की ही चर्चा चलती हैं, चर्चाओं में यह बात भी निकलकर आई कि धनखड़ संकल्प के धनी हैं वे जो ठान लेते हैं करके ही दिखाते हैं. पढ़ाई के दौरान वे कमजोर बच्चों की मदद करते, सबसे पहले होमवर्क करते और उनके होमवर्क को देखकर ही बाकी बच्चे अपना गृह कार्य करते थे. स्कूल में पढ़ाई के दौरान गलत जानकारी देने पर उन्होंने शिक्षक को भी टोक दिया था, उनके सहपाठी रहें बुजुर्ग कहते हैं कि वे सत्य बात बोलने से कभी नहीं डरते और आज भी वे ऐसे ही है.
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ग्रामीणों ने घर-घर जाकर जुटाए 35 लाख रुपए
स्कूल के जर्जर भवन को लेकर प्रिंसिपल सुमन थाकन ने सबसे पहले सरपंच प्रतिनिधि हरेंद्र धनखड़ के सामने चिंता जताई, फिर ग्रामीणों से चर्चा की गई. जर्जर भवन से हादसे की चिंता जताई तो, ग्रामीण नया स्कूल भवन बनवाने के लिए आर्थिक मदद देने को तैयार हो गए. सभी ने तय किया कि चाहे जो हो जाए, घर-घर जाकर चंदा जुटाना पड़े, लेकिन स्कूल का नया भवन बनवाएंगे इसलिए दूसरे ही दिन से सरपंच प्रतिनिधि हरेंद्र, ग्रामीण विजयपाल धनखड़ व महेंद्र धनखड़ आदि ने टीम बनाई और गांव में डोर टू डोर सहयोग राशि एकत्रित करनी शुरू कर दी. ग्रामीणों ने भी अपनी इच्छा से सहयोग देना शुरू किया. उस समय गांव के सपूत जगदीप धनखड़ बंगाल के राज्यपाल थे और ग्रामीणों ने उन तक जब यह बात पहुंचाई तो उन्होंने तत्काल 11 लाख रुपए दिए और जरूरत पड़ने पर हर संभव मदद का भरोसा दिया. उन्होंने देखते ही देखते 35 लाख रुपए एकत्रित कर लिए.
जनवरी 2021 में 185 नामांकन था, आज 425 से ज्यादा, प्रवेश परीक्षा लेकर ही एडमिशन
ग्रामीणों का कहना है कि स्कूल भवन जर्जर होने के कारण लगातार नामांकन कम होता जा रहा था. बच्चों की सुरक्षा को लेकर चिंतित ग्रामीणों ने बच्चों को स्कूल भेजना बंद कर दिया था. इस बीच जनवरी 2021 में प्रिंसिपल सुमन थाकन ने यहां ज्वॉइन किया, उस समय महज 185 का नामांकन था. जर्जर भवन को देखकर प्रिंसिपल ने सरपंच प्रतिनिधि हरेंद्र धनखड़ व ग्रामीणों से चर्चा की, उन्हें मोटिवेट किया तो ग्रामीण नया स्कूल भवन बनवाने के लिए आर्थिक मदद देने को तैयार हो गए. पौधरोपण से लेकर मिड डे मिल तक में ग्रामीणों ने सहयोग किया. एसडीएमसी की नियमित बैठकें होने लगीं, अभिभावकों को विश्वास में लिया गया की उनका बच्चा सुरक्षित रहेगा. इन सब का परिणाम यह निकला कि महज एक साल में ही स्कूल का नामांकन 185 से बढ़कर 426 हो गया और अब यहां पर 10वीं से 12वीं तक की कक्षा में प्रवेश के लिए प्रवेश परीक्षा से गुजरना पड़ता है.
स्कूल भवन की छत से गिरता चूना और टूटी पट्टियों से डरते थे बच्चे, स्कूल प्रिंसिपल ने अपनी बेटी को दिलाया प्रवेश
किठाना गांव के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय भवन की छत से गिरता चुना और टूटी पट्टियों से न जाने कब हादसा हो जाए, इसी डर से ग्रामीण अपने बच्चों को स्कूल भेजने से कतराते थे. स्कूल की जर्जर बिल्डिंग को देखकर अभिभावकों ने अपने बच्चों का निजी स्कूलों में दाखिला कराना शुरू कर दिया था. वर्ष 2021 में चूरू के राजलदेसर से स्थानांतरित होकर आई प्रिंसिपल सुमन थाकन ने न केवल स्कूल की तस्वीर बदली बल्कि अभिभावकों के सोचने का नजरिया भी बदल दिया. प्रिंसिपल सुमन थाकन ने स्कूल के जर्जर भवन को देखकर यह ठाना की ग्रामीणों की मदद से इस भवन को नए भवन में तब्दील करना है, साथ ही स्कूल का नामांकन बढ़ाने को लेकर भी प्रयास किए. उन्होंने सबसे पहले अपनी बेटी को स्कूल में दाखिला दिलाया, इसके बाद वे डोर टू डोर स्कूल के लिए निकल पड़ी. जिसके बाद देखते ही देखते स्कूल की तस्वीर बदलनी शुरू हो गई.
जिस स्कूल में बच्चों को भेजने से डरते थे, उसमें अब टेस्ट लेकर ही दिया जाता है प्रवेश
जिस स्कूल के भवन को देखकर ग्रामीण बच्चों को भेजने से डरते थे, आज उसमें प्रवेश पाने के लिए टेस्ट देना पड़ता है. प्रिंसिपल कहती हैं कि ग्रामीणों के सहयोग से स्कूल की तस्वीर बदलने के प्रयास किए जा रहें हैं. ग्रामीण विजयपाल धनखड़ ने बताया कि स्कूल के जर्जर भवन की वजह से ग्रामीणों का रुझान स्कूल की ओर नहीं था, इस वजह से लगातार नामांकन कम हो रहा था, लेकिन जब उन्हें विश्वास हो गया कि स्कूल स्टाफ इमानदारी से स्कूल की तस्वीर बदलने में जुटा है तो ग्रामीणों ने अपने बच्चों का पुन प्रवेश कराना शुरू कर दिया. स्कूल का नया भवन बनेगा, इससे भी बड़े गौरव की बात तो यह है कि जिस किठाना स्कूल में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ पढ़े उसी स्कूल के भवन की नींव वे अपने हाथों से रखेंगे.
Reporter - Sandeep Kedia
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