जोधपुर: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान IIT जोधपुर के शोधकर्ताओं ने डायरेक्ट एनर्जी डिपोजिशन डीईडी तकनीक पर आधारित एक मेटल 3डी प्रिंटर स्वदेशी रूप से विकसित किया है. इस मेटल 3डी प्रिंटर के सभी पार्टस, लेज़र और रोबोट सिस्टम को छोड़कर, भारत में डिज़ाइन और निर्मित किए गए हैं. इससे प्रिंटर से प्रिंट की लागत कम होगी.


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भारत में बने मेटल पाउडर से 3डी पार्ट्स प्रिंट


यह मशीन भारत में बने मेटल पाउडर से 3डी पार्ट्स प्रिंट कर सकती है. अब तक मेटल पाउडर भारी कीमत पर विदेशों से आयात करने पड़ते थे. इसके अलावा, इस मशीन में लेजर क्लैडिंग और एडिटिव निर्माण के लिए लेजर बीम समरूपता से समझौता किए बिना भारत का पहला अत्याधुनिक वेरिएबल स्पॉट साइज लेजर ऑप्टिक्स उपलब्ध है. IIT जोधपुर की टीम ने इस मशीन का टूल पाथ प्लानिंग सॉफ्टवेयर और समाक्षीय नोजल विकसित किया है.


इसमें इन-सीटू निगरानी प्रौद्योगिकीय भी हैं जो एडिटिव निर्माण प्रक्रिया के दौरान पिघले हुए पूल तापमान और क्लैड मोटाई की लगातार निगरानी करती हैं. स्वदेशी रूप से विकसित इस 3डी प्रिंटर के बारे में बात करते हुए, डॉ. रवि के. आर., एसोसिएट प्रोफेसर, मेटलर्जिकल एंड मैटेरियल्स इंजीनियरिंग विभाग, आईआईटी जोधपुर ने कहा कि इस शोध की छोटी सी सफलता ने हमारी टीम को नए इनोवेशन के लिए प्रेरित किया है. उन्होंने कहा कि हमारे शोध में सहायक फंडिंग एजेंसियां और इंडस्ट्री का भरोसा हमारी टीम पर और बढ़ा है.


इन कॉलेजों का भी रहा सहयोग


पूर्ण रूप से स्वदेशी होने पर लागत और कम होगी. उन्होंने आगे कहा कि हमारे अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि अगर मेटल प्रिंटिंग मशीन बनाने के लिए आवश्यक सभी हिस्सों को स्वदेशी रूप से निर्मित किया जा सकता है, तो मेटल 3D प्रिंटिंग मशीन की लागत दो से तीन गुना कम होगी. इस परियोजना को प्रौद्योगिकी विकास और हस्तांतरण (टीडीटी) प्रभाग, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा फायनेंस किया गया है. शैक्षणिक और औद्योगिक सहयोग पीएसजी कॉलेज ऑफ टेक्नोलॉजी, कोयंबटूर, पीएसजी इंडस्ट्रियल इंस्टीट्यूट कोयंबटूर और वेक्ट्राफॉर्म इंजीनियरिंग सॉल्यूशंस, कोयंबटूर का रहा .


सामान्य भाषा में इसे समझ सकते हैं कि अगर किसी के स्कल्प का एक हिस्सा टूट जाता है और उसे वापिस सिर्फ उस हिस्से को नहीं बनाया जा सकता. ऐसे में 3d प्रिंटर द्वारा उस हिस्से को बनाया जा सकता है और रिप्लेस किया जा सकता है. जिस से किसी भी हिस्से या मशीन के पूरे हिस्से को रिप्लेस करने से बचा जा सकता है. कई बार ऐसा देखा गया है कि बड़ी से बड़ी मशीन का एक छोटे से हिस्से के खराब हो जाने से वो इस्तमाल से बाहर हो जाती है ऐसे में उस हिस्से को पूर्ण रूप से पहले के हिस्से जैसा बना कर रिप्लेस किया का सकता है. 5 से 6 करोड़ की कीमत की यह मशीन आईआईटी ने सिर्फ 1.3 करोड़ में बनाने में सफलता हासिल की है. इसमें 12 से 15तरह के पाउडर मटेरियल द्वारा प्रोडक्ट बनाए जा सकत है.


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Reporter- Bhawani bhati