Jodhpur: जसवंत सागर बांध के अस्तित्व पर संकट, शुरू हुई किसानों की दुर्भाग्य की कहानी
जोधपुर: जिले का सबसे बड़ा जसवंत सागर बांध पिछले पंद्रह सालों से आखिरी सांसे ले रहा है. साल 2007 में पाळ टूटने के साथ शुरू हुए इसके दुर्दिन अब भी बरकरार है। इतने बरसों में बारिश के बावजूद न बांध भरा और न ही सरकारी अफसरों ने दम तोड़ रहे इस बांध को जीवन के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है.
Jodhpur News, jaswant sagar dam: जिले का सबसे बड़ा जसवंत सागर बांध जिससे किसी जमाने में कमांड क्षेत्र के 13 गांव के सैकड़ों किसानों की 30 से 40 हजार बीघा जमीन की सिंचाई होती थी, इसी प्रकार क्षेत्र के अनेकों एनीकट भी पानी से लबालब भरे रहते थे इस कारण कुओं का जल स्तर काफी ऊपर रहा करता था और क्षेत्र के परंपरागत जल स्रोतो से लोगों को मीठा पानी मिल जाता था, लेकिन वर्ष 2007 में जसवंत सागर बांध का एक हिस्सा टूट जाने एवं वर्षों बाद तक पाल की मरम्मत नहीं होने से बांध में पानी ठहरा ही नहीं.
हजारों परिवार की रोजी रोटी का आधार जसवन्त सागर बांध
कभी इतनी घनघोर बारिश हुई ही नहीं कि क्षेत्र के बांध और एनीकट लबालब भर सके. स्थिति यह की वर्ष 2007 के बाद से परंपरागत जल स्रोत बहुत ही गहरे होते गए और वर्तमान में 6 सौ से 7 सौ फीट तक नलकूप खोदे जाने पर खारा पानी मिलता है. यही कारण है कि पिचियाक बांध की पॉल के पास खुदे विभागीय नलकूपों का पानी फ्लोराइड युक्त है जो पीने योग्य नहीं रहा. उसी खारे पानी की वर्तमान में जलापूर्ति यहां बिलाड़ा कस्बे में, एवं अन्य गांवो में खुदे नलकूपों का पानी ग्रामीणों को पीने के लिए मिल रहा है.
वर्ष 2007 तक भरा रहता था बांध
पश्चिमी राजस्थान को हरा- भरा करने के लिए भूगोलवेत्ताओ एवं वैज्ञानिकों ने राजस्थान सरकार को ग्रीन प्रोजेक्ट परियोजना तैयार करके दी थी. उसे समय रहते व्यवहारिक रूप दिया होता तो मारवाड़ का एक बड़ा हिस्सा पानी से शरसब्ज रहता और सभी बांध एनीकट मीठे पानी से भरे रहते हैं. भूगोलवेत्ता डॉ नरपतसिंह राठौड़ द्वारा तैयार की गई घग्गर- यमुना- जोजरी-लूणी- साबरमती नदी संगम परियोजना को सरकार गंभीरता से ले लेवे तो हर दूसरे तीसरे वर्ष पड़ने वाले सूखे एवं अकाल से निजात मिल जाती तथा भूमिगत जल का कम होना, पेयजल संकट, चारागाह में आई कमी का स्थाई हल हो सकता था.
प्रतिवर्ष कुआं का जलस्तर घटता गया और शुरु हो गया पलायन
इस क्षेत्र के विकास के लिए हिमाचल एवं उत्तराखंड से निकलने वाली नदियों का व्यर्थ बहने वाला पानी कच्ची नहरों से जोजरी- लूणी नदी में छोड़कर गुजरात क्षेत्र को भी निहाल किया जा सकता है ओर यह ग्रीन प्रोजेक्ट मारवाड़ के लिए मीठे पानी का बड़ा सहारा बन सकता है.
जोधपुर जिले का सबसे बड़ा जसवंत सागर बांध बिलाड़ा विधानसभा क्षेत्र में स्थित हैऔर इस बांध की रपट से गिरने वाली जल राशि से उद्भव होता है लूनी नदी का. दशक पूर्व इस बांध की पाल टूट जाने और कई वर्षों बाद हुई मरम्मत के पश्चात यह बांध एक बार भी नहीं भरा ।बांध से जिन 13 गांवों की हजारों बीघा भूमि में पिलाई होती थी, वह अब बीते जमाने की बात हो गई. बांध से जुड़ी लिंक नहर वर्षों से टूटी पड़ी है. सरकार कांग्रेस की भी आई बाद में भाजपा की भी आई, लेकिन क्षेत्र के 50- 50 कोस में आबाद हजारों किसानों की रोजी रोटी से जुड़े इस बांध के पुनर्भरण की किसी ने नहीं सोची.
नतीजतन सैकड़ों किसान परिवार शहरों में मजदूरी के लिए पलायन कर गए. कुछ ऐसा ही हाल जालीवाड़ा,बिसलपुर बांध का है। यह बांध भी अरसे से खाली पड़े हैं. काश कोई प्रतिनिधि किसी योजना से इन बांधों का पुनर्भरण करवा दे, तो उसे फिर कभी कहीं वोट मांगने की जरूरत नहीं होगी और गांव, गरीब, किसान उसे घर बैठे जितवा सकने का मादा रखते हैं.
सूखा और अकाल से इस मरू प्रदेश को निजात मिल सकती
भूगोलवेत्ता डॉक्टर नरपत सिंह राठौड़ द्वारा तैयार की गई प्रस्तावित घग्घर- यमुना-जोजरी-लूणी- साबरमती नदी संगम परियोजना को जल शक्ति मंत्रालय व्यवहारिक रूप दे दे, तो हर दूसरे तीसरे वर्ष पड़ने वाला सूखा और अकाल से इस मरू प्रदेश को निजात मिल सकती है. साथ ही भूमिगत जल का कम होना ,पेयजल संकट, चारागाह में आई कमी का स्थाई हल हो सकता है. इस क्षेत्र के विकास के लिए हिमाचल एवं उत्तराखंड से निकलने वाली नदियों का व्यर्थ बहने वाले पानी को कच्ची- पक्की नहरों से जोजरी- लूणी नदी में छोड़कर न केवल मरू प्रदेश का बल्कि गुजरात क्षेत्र को भी निहाल किया जा सकता है.
इस परियोजना को मरूगंगा का भी रूप दिया जा सकता- नरपत सिंह राठौड़
भूगोलवेत्ता डॉ नरपत सिंह राठौड़ द्वारा तैयार इस प्रस्तावित परियोजना को भारत सरकार द्वारा नदियों से नदियां जोड़ें जाने वाली प्रोजेक्ट समिति को भी सौंपा जा चुका है. भूगोलवेत्ता का मानना है कि इस परियोजना को मरूगंगा का भी रूप दिया जा सकता है. हिमालय से निकलने वाली नदियां वर्षा काल में बाढ़ के रूप में उपलब्ध पानी को घग्गर नदी में छोड़कर राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले से एक कच्ची नहर का निर्माण कर हजारों क्यूबिक मीटर पानी व्यर्थ में पाकिस्तान में बहकर जाने वाले इस बरसाती पानी को नापासर, देशनोक, चाडी, डावरा ,जोधपुर या पुलु, सरदारशहर, तालछापर, डेगाना, नागौर, आसोप, भोपालगढ़ ,जोधपुर या नागौर से मेड़ता के निकट जोजरी नदी में हिमालय का पानी लाया जा सकता है.
जोधपुर या मेड़ता के निकट जोजरी (मीठड़ी) बरसाती नदी में छोड़ा गया हिमालय के पानी को खेजड़ली खुर्द, सालावास के पास लूणी नदी में भी डाला जा सकता है. भूगोलवेत्ता ने यमुना नदी पर बने तेजावाला फीडर से वर्षा के दौरान छोड़े जाने वाली अतिरिक्त जल राशि को हरियाणा में सोनीपत के निकट कच्ची नहर बनाकर रोहतक, महेंद्रगढ़ से पिलानी, झुंझुनू, मंडवा ,मुकुंदगढ़ ,सीकर, डीडवाना ,डेगाना से निकालकर नागौर जिले के मेड़ता के समीप निकलने वाली मीठड़ी (जोजारी) नदी में छोड़ा जा सकता है.
यमुना का यह जल मीठड़ी नदी में प्राकृतिक रूप से बहता हुआ घघराना ,घोड़ावट, पीपाड़ तथा बीसलपुर के नजदीक जोधपुर से 25 किलोमीटर स्थित खेजड़ली खुर्द के निकट लूनी नदी में पहुंच जाएगा. इस नदी में छोड़ा गया घग्गर - यमुना जल प्राकृतिक रूप से बहता हुआ समदड़ी, बालोतरा, सिणधरी, धोरीमन्ना तथा गुड़ा होता हुआ सांचौर तक पहुंचेगा।परियोजना में सुझाए गए जल राशि के मार्ग के अनुसार घग्गर एवं यमुना का पानी मेड़ता से होकर आगे बढ़ता दर्शाया गया है.
इसी मेड़ता से कच्ची नहर के जरिए यह जल राशि मात्र 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जसनगर के निकट नदी में छोड़ दिया जाए तो यह पानी कालाउना, झांक होते हुए जोधपुर जिले के सबसे बड़े बांध जसवंत सागर को बारहों महीने भरा रख सकता है। जिससे 50-50 कोस की परिधि में किसानों को सीधा फायदा मिलेगा तथा बांध की रपट पर चादर चलने के जरिए जल राशि लूणी नदी में बहती रहेगी.
प्रोजेक्ट समिति को सौंपी गई इस परियोजना के माध्यम से भूगोलवेत्ता ने यह उम्मीद जताई कि राज्य या केंद्र सरकार इस योजना को व्यवहारिक रूप दे तो राष्ट्रीय स्तर पर सिंचित क्षेत्र एवं खाद्यान्नों में 25 प्रतिशत की वृद्धि होगी. पश्चिमी राजस्थान एवं उत्तरी गुजरात का गोवंश बचाया जा सकता है. इस योजना से लूनी बेसिन तथा उत्तरी गुजरात में मीठे पानी की आपूर्ति बढ़ेगी। चारागाह भूमि में वृद्धि, सूखे और अकाल से स्थाई राहत, पशुपालन से दूध,घी, उन, मांस ,गोबर खाद का उत्पादन के अलावा फल- फूल एवं सब्जियों की खेती बढ़ेगी। रेगिस्तान विस्तार रुकेगा, डार्कजोन व्हाइट जोन में बदलेंगे. सिंचित क्षेत्र में वृद्धि होगी और ऊर्जा क्षेत्र में पानी के पहुंचने से क्षेत्र में नए उद्योग की स्थापना और रोजगार के अवसर निकलेंगे.
मारवाड़ की यह कहावत इस परियोजना पर अक्षरत: खरी उतरती है, कि "मामा रो ब्याव और मां परोसने वाली" यानी कि जल शक्ति मंत्रालय के मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत भी जोधपुर जिले के, मरूक्षेत्र के सांसद और कृषि मंत्री कैलाश चौधरी बाड़मेर जिले से तथा पाली संसदीय क्षेत्र से केंद्र में मंत्री रह चुके और सांसद पी पी चौधरी भी इसी क्षेत्र के प्रतिनिधि यानी कि मारवाड़ के सभी सांसद एकजुट होकर इस परियोजना का बीड़ा उठा ले और प्रधानमंत्री से स्वीकृति प्राप्त कर ले तो पश्चिमी राजस्थान किसी पंजाब ,हरियाणा और गुजरात से उत्पादन में कमतर नहीं रह सकता और सदियों तक इन प्रतिनिधियों को याद रखा जा सकेगा.
आश्वासन मिला परंतु समस्या का समाधान नहीं
मारवाड़ में पेयजल संकट गहराता जा रहा व पशुओं के चारे का संकट जिले का सबसे बड़ा बांध जसवन्त सागर बांध नहीं भरने के बाद मारवाड़ भर पेयजल संकट दिनोंदिन गहराता जा रहा है और कुओं का जलस्तर बहुत नीचे चला गया और कुएं सूख चुके हैं ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले के लिए पेयजल संकट विकराल रूप धारण कर लिया है लोगों को पीने के लिए पानी नसीब नहीं हो रहा है और लोग अपने घरों में महंगे दामों में पानी के टैंकर डलवा रहे हैं और कुएं सूखने के बाद खेती बाड़ी का काम बंद हो गया है और जमीन बंजर पड़ी हुई है.
पशुओं के लिए चारे की समस्या गंभीर बनी हुई है चारा नहीं होने से कई ग्रामीण पशुओं को राम भरोसे छोड़ देते हैं ग्रामीणों ने अनेक बार जनप्रतिनिधियों को पेयजल की समस्याओं के बारे में अवगत कराया परंतु केवल आश्वासन मिला परंतु समस्या का समाधान आज तक नहीं हुआ.