Jodhpur: प्रकृति ने हर जीवमात्र को इस धरती पर जीवन यापन करने का समान अधिकार दिया है, लेकिन बढ़ते विकास और पर्यावरण प्रदूषण के चलते वन्य क्षेत्र में कमी होने के साथ ही वन्य जीवों पर संकट के बादल मंडराने लगे है. पर्यवरण व वन्यजीवों के सरंक्षण को लेकर सरकारी और गैर सरकारी संगठन और समाज के लोग आगे आए है. कुछ ऐसा ही काम वन्यजीवों के सरंक्षण को लेकर जोधपुर के जाजीवाल धोरा गांव में विश्नोई समाज ने शुरू किया. यह समाज हिरणों के संरक्षण के लिए विशेष कार्य कर रहा है.  


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जोधपुर का जाजीवाल धोरा अपने नाम के अनुरूप इसका आस पास का क्षेत्र भी रेगिस्तान से गिरा है. दूर-दूर तक रेगिस्तान होने  और पानी की कमी होने के कारण यहां वन्य जीवों की कमी तो है ही, लेकिन बढ़ते विकास यानि आबादी और बढ़ते तापमान के चलते जो वन्य जिव इस क्षेत्र में है वे भी विलुप्ति की कगार पर है. दिनों दिन वन्य जीवों के लिए जीवन यापन का संकट गहराता जा रहा है. ऐसा देखा गया है की पिछले दशक के मुकाबले वर्ष प्रतिवर्ष इनकी संख्या में कमी आयी है. 


कई समाज और संगठन इन वन्य जीवों के लिए देवदूत बन सामने आए है और इनके संरक्षण के लिए प्रयास कर रहे है. ऐसा ही एक है विश्नोई समाज जिन्होंने हिरणों के सरक्षण के लिए न सिर्फ प्रयास किए. साथ ही उन्हें एक परिवार के सदस्य के रूप में पालन पोषण भी कर रहे है. जोधपुर के जाजीवाल गांव में बने विश्नोई समाज के स्थानक में आज भी हिरन खरगोश इत्यादि अनेक वन्य जीव बिना किसी डर परिवार के सदस्य की तरह विचरण करते है. जाजीवाल धोरा गांव स्थित जंभेश्वर भगवान के मंदिर में जा कर देखते हैं तो हैरान रह जाते हैं कि किस तरह बेखौफ होकर मंदिर परिसर में ही विचरण करने वाले हिरण परिवार के सदस्य की तरह कुलांचे भर रहे थे और बड़े ही प्यार और चाव से चने खाते पीते अपनी मस्ती में मस्त घूमते रहते हैं. विश्नोई समाज के लोक बकायदा इन जीव जंतुओं से ना केवल अपार प्रेम करते हैं. 


आस पास के जंगली जीव इन हिरणों का शिकार कर लेते है. साथ ही साथ वनस्पतियों की कमी और पानी की उपलब्धता नहीं होने के कारण भी ये हिरन मृत्यु को प्राप्त हो जाते है. ऐसे में इस मंदिर में ये अपने को सुरक्षित महसूस करते हैं. साथ ही पानी भोजन इत्यादि की भी व्यवस्था भी इनके लिए की जाती है. जब इन हिरणों का शिकार हो जाता है, ऐसे में उन हिरणों के बच्चे के लिए उन शिकारियों से बचे रहना बहुत मुश्किल हो जाता है, तो आस पास के गांव के लोग भी इन नवजात हिरणों को इस मंदिर में छोड़ देते है ताकि उनके भरण पोषण और सुरक्षा को लेकर चिंता न करनी पड़े. 


प्रायः यह देखा गया है की हिरण जैसे वन्य जीव मनुष्यों से दूरी बनाए रखते है, लेकिन यहां इसका विपरीत देखने को मिलता है, वे सभी के साथ सहज रूप से रहते भी है और साथ में खेलते भी है. इन्हे देख लगता है मानव हो या जीव जंतु सभी को जीने का सामान अधिकार है. 


पर्यावरण सरक्षण की दिशा में विश्नोई समाज के लोगों के इस योगदान से सभी को सीख लेने की आवश्यकता है. अगर हमने प्राकृतिक धरोहर को समय पर सरक्षित नहीं किया तो कई वन्य जीव आने वाली पीढ़ी के लिए किताबो में चित्र के रूप ही रह जायेंगे. 


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Report- Bhawani Bhati