Untold Story Of Ramayana Jatayu : कुछ दिन पहले ही अयोध्या(Ayodhya) में राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा (Ramlala Pran Pratistha) के सपहले गिद्धों (Vulture) का झुंड दिखायी दिया था. जिसे लोगों ने गिद्धराज जटायु से जोड़कर देखा और शुभ संकेत बताया. यहां के लोग मानते हैं कि 20 सालों से हमने इस इलाके में गिद्धों को नहीं देखा.

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रावण के पास थी मिसाइल तकनीक, श्रीराम के साथ युद्ध में किया था प्रयोग


ShriRaam Ka Janm Kaise Hua : श्रीराम के जन्म की अद्भुत कहानी, वो आप नहीं जानते


क्योंकि रामायण में पक्षियों की भूमिका बेहद खास रही थी. काक भुशुण्डी जो एक कौआ था,  तो वहीं श्रीराम को नागपाश से मुक्त कराने वाले देव पक्षी गरूड़ और अरुण थे. साथ ही सम्पाती और जटायु भी रामायण में विशेष स्थान रखते हैं. इन सबमें जटायु को रामायण में श्रीराम के लिए शहीद होने वाला पहला सैनिक कहा गया है.


लेकिन आज हम आपको जटायु की उन 10 बातों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे सुनकर आपके पैरो तले जमीन खिसक सकती है, ऐसी हैरान करने वाली बातें, जो कि आपने कहीं नहीं सुनी होगी. तो चलिए शुरू करते हैं- जब रावण , माता सीता का अपहरण कर आकाश मार्ग से लंका की तरफ पुष्पक विमान में बैठकर जा रहा था तब जटायु ने उसे चुनौती दी थी.


रावण ने अपनी तलवार से जटायु के दोनों पंख काद दिए थे. जब श्रीराम को घायल जटायु मिले, तो उन्होनें ही बताया था कि रावण माता सीता का हरण कर उन्हे दक्षिण दिशा में ले जा रहा है. फिर जटायु ने श्रीराम की गोद में ही प्राण त्याग दिया. जटायु की मृत्यु के बाद श्रीराम के हाथों ही उनका पिंडदान और अंतिम संस्कार हुआ था.


रामायण में जटायु को गृद्धराज कहा गया है और वो ऋषि ताक्षर्य कश्यप और विनीता के पुत्र थे. गृद्धरा एक गिद्ध जैसे आकार का पर्वत था. राम के काम में ही सम्पाती और जटायु नाम के गरूड़ पक्षी थे. ये देव पक्षी अरुण के पुत्र थे. गुरूढ़ भगवान के भाई अरुण थे. प्रजापति कश्यप की पत्नी विनता के दो पुत्र थे गरूड़ और अरुण.  गरूड़ जी प्रभु विष्णु के शरण में और अरुण जी सूर्य देव के सारथी बन गये. सम्पाती और जटायु इन्हीं अरुण के पुत्र थे.


सम्पाती बड़े भाई थे और जटायु छोटे. दोनों विध्याचल पर्वत की तलहटी में निशाकर ऋषि की सेवा किया करते थे और दंडकारण्य में विचरण करते थे. एक बार दोनों के बीच सूर्य को छूने की दौड़ लगी. लेकिन सूर्य के तेज से जब जटायु जलने लगे तब सम्पाती ने उन्हें बना लिया और उनके पंख जल गये.


सम्पाती समुद्र में गिर गये. जहां से चंद्रमा नाम के एक मुनि ने उन्हे निकाला और इलाज किया. और त्रेता युग में सीताजी की खोज करने वाले वानरों के दर्शन से फिर से पंख मिलने का आशीर्वाद दिया. नासिक में जटायु पंचवटी में रहते थे और एक दिन आखेट पर आए महाराज दशरथ से उनकी मुलाकात, मित्रता में बदल गयी थी. वनवास के समय श्रीराम से, जटायु का परिचय हुआ था.


जब जामवंत, अंगद और हनुमान समेत वानर सेना माता सीता को ढूंढने जा रहे थे. तो रास्ते में उन्हे बिना पंख का विशालकाय पक्षी सम्पाति मिला था. सम्पाति ने उन पर हमला किया था. लेकिन जब रामव्यथा और जटायु की मृत्यु का समाचार सुना था. तो सम्पाती को बहुत दुख हुआ था.


मध्यप्रदेश के देवास में बागली तहसील में जहाशंकर नाम की जगह पर जटायु तपस्या करते थे. ऋषियों की तपोभूमि में पहाड़ के ऊपर से शिवलिंग पर अनवरत जलधारा बहती है. माना जाता है कि यहां हजारों गिद्ध रहा करते थे.