Kota: राजस्थान के एक क्रूर दीवान की क्रूरता के किस्से तो इतिहास में दफन हो गए, लेकिन इसी क्रूर दीवान के सौंदर्यबोध और शिल्पप्रेम ने मरुभूमि को ऐसी विरासत भी दी, जो 20वीं से लेकर 21वीं सदी तक के शिल्पकला के इतिहास का आज भी मील का पत्थर मानी जाती हैं. जिसकी नक्काशी और पत्थर पर की गई बारीक कारीगरी देशी और विदेशी सैलानियों तक के लिये शिल्पकला के किसी अजूबे से कम नहीं हैं.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

हम बात कर रहे हैं 19 वीं शताब्दी में जैसलमेर के दीवान रहे सालिम सिंह मेहता और उनकी बनाई प्रसिद्व सालिसम सिंह जी की हवेली की. जिसका 7 करोड़ से भी अधिक के बजट से कोटा में एक खास हवेली मॉडल तैयार रहा हैं. देखिए इस पर एक खास रिपोर्ट...


राजकीय जानकीदेवी बजाज कन्या महाविद्यालय कोटा के एसोसिएट प्रोफेसर शिवकुमार मिश्रा ने कहा कि चम्बल की गोद में बसे खूबसूरत शहर कोटा की पहचान कोचिंगसिटी के रुप में हैं, लेकिन राजस्थान में इस शहर को आजकल सात अजूबों वाला शहर भी कहते हैं क्योंकि यहां पर दुनिया के सात प्रमुख अजूबों के मॉडल्स वाला फेमस पॉर्क 'सेवन वन्डर्स पॉर्क' स्थित हैं लेकिन अब कोटा शहर में आठवां अजूबा जैसा मॉडल बन रहा हैं, और ये मॉडल हैं कोटा के किशोरसागर तालाब और छत्रविलास उद्दान के बीच बन रहा जैसलमेर की सालिमसिंह की हवेली का शुद्व जैसलमेर स्टोन से बन रहा कोटा संस्करण.


हालांकि इतिहास में जैसलमेर के सालिमसिंह की पहचान एक क्रूर दीवान के रुप में हैं लेकिन इसी क्रूर दीवान का शिल्पप्रेम 5 मंजिल की इस अद्भुत हवेली में झलकता है, जो बरसों बाद भी पर्यटकों का आकर्षण तो हैं ही लेकिन पर्यटन विकास की संभावनाओं वाले इलाकों में भी अब इसी हवेली के मॉडल तैयार किये जा रहे हैं.


कोटा विश्वविद्यालय से हेरिटेज में एमए के गोल्ड मेडलिस्ट चंदनसिंह शक्तावत ने बताया कि कोटा में यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल के निर्देशन में यूआईटी की तरफ से बनवायी जा रही इस मॉडल हवेली की प्रोजेक्ट लागत 7 करोड़ 33 लाख हैं. 17 मीटर ऊंची ये हवेली 9 गुणा 12 के आकार में तैयार हो रही हैं. जिसमें ठेकेदार से लेकर कारीगर सभी जैसलमेर के हैं और जैसलमेर की सबसे प्रसिद्व खदानों से शुद्व हेरिटेज जैसलमेरी स्टोन इसके लिये मंगवाया गया है.


पीले पत्थरों की खुबसूरत और बारीक नक्काशी के साथ हूबहू 5 मंजिला सालिमसिंह हवेली का मॉडल कोटा में भी खङा किया जा रहा हैं. हेरिटेज के रिसर्च स्कॉलर बताते हैं कि जैसलमेर स्टोन रियासतकाल तक तो सिवाय जैसलमेर के किसी अन्य अंचल में इसलिये भी दुर्लभ था क्योंकि जैसलमेर के राजा-महाराजाओं ने इस विशिष्ठ हेरिटेज के महत्व को देखते हुये जैसलमेर स्टोन के जैसलमेर से बाहर निर्यात को प्रतबंधित कर रखा था.


1815 ई. में जैसलमेर में शुद्व जैसलमेर स्टोन के अलावा दुनिया के कई हिस्सों के स्टोन मंगवाकर बनवायी गयी सालिमसिंहजी की हवेली के बारे में कहा जाता हैं कि तब मेहता परिवार का निवास रही इस हवेली में इतने मोती जङे थे कि इसे मोतीमहल भी कहा जाता था. अपने झरोखों,महलों और जहाज से लेकर मोर तक के विशिष्ठ आकार के लिये पहचानी जाने वाली इस हवेली की कभी 7 मंजिलें हुआ करती थी लेकिन तत्कालीन महारावल ने जैसलमेर के प्रसिद्व सोनारदुर्ग के बराबर ऊंचाई पर आ जाने के कारण इसकी दो ऊपरी मंजिलें तुङवा डाली थी.


जो भी हो लेकिन अपनी क्रूरता के लिये मशहूर एक दीवान का शिल्पसौंदर्य और शिल्पप्रेम आज भी जैसलमेर में खङा हैं और अब इसकी तर्ज पर प्रदेश में इसी हवेली के इसी जैसलमेरी स्टोन से मॉडल तैयार हो रहे हैं. देखना होगा कि प्रदेश की प्रमुख पर्यटन साइट में से एक जैसलमेर की हवेली का ये मॉडल कोटा यूआईटी के कोटा को ट्यूरिस्ट सिटी बनाने के प्रयासों में कितने कारगर नतीजे लाता हैं लेकिन इतना तो तय हैं कि अपने निर्माण के दौरान ही इस मॉडल हवेली ने कोटा में खुबसूरत-हेरिटेज स्टोन जैसलमेर स्टोन को जरुर मकबूल कर दिया हैं.