Deedwana: प्रदेश में सहकारी बैंकों के जरिये बुवाई से पहले किसानों को सरकार द्वारा शार्ट टर्म कृषि ऋण सहकारी बैंकों के द्वारा दिया जाता है. इस फसली ऋण में एक मेंडेटरी इन्शुरन्स होती है, जिससे इस शार्ट टर्म के दौरान अगर किसान की मृत्यु हो जाती है तो यह ऋण माफ हो जाता है.


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इस ऋण पर 14.22 रुपये प्रति हजार पर प्रीमियम निर्धारित था. फरवरी 2021 से लेकर फरवरी 2022 में इसके लिए राज्य सरकार और एक निजी इन्शुरन्स कंपनी श्रीराम जनरल इन्शुरन्स के बीच एक एमओयू हुआ, जिसके तहत प्रदेशभर के जिन किसानों ने भी यह ऋण लिया. उनसे कंपनी ने प्रीमियम वसूला लेकिन अक्टूबर 2021 में जब क्लेम देने की बारी आई तो कंपनी ने हाथ खड़े कर दिए.


जानकारी के अनुसार सरकार ने उस वक्त कंपनी को इसके लिए ब्लेक लिस्ट कर दिया, लेकिन फरवरी 2022 में सरकार एक बार फिर टेंडर जारी करती है. केवल एक महीने के लिए फिर उसी इन्शुरन्स कंपनी यानी श्रीराम जनरल इन्शुरन्स से जिसको सरकार ने ब्लैकलिस्ट किया था, उसी कंपनी से फिर एक एमओयू करती है. लेकिन इस बार कंपनी ने जो खेल खेला वो किसानों के साथ कुठाराघात से कम नहीं था.


प्रीमियम के लिए पहले केवल एक ही केटेगरी हुआ करती थी, लेकिन अब प्रीमियम को केटेगाराइज कर दिया गया. अब 18 साल से 60 साल तक के जो ऋणी किसान हैं, उनके लिए प्रीमियम 17.70 रुपये प्रति हजार कर दिया गया. लेकिन 60 साल से ऊपर वाले ऋणी किसानों के लिए प्रीमियम 3 गुना से ज्यादा बढ़ाकर 46.61 रुपये प्रति हजार कर दिया गया. इसके मायने यह हैं कि 50 हजार का ऋण लेने वाले 60 साल से अधिक उम्र वाले जिस किसान को पहले 711 रुपये प्रीमियम अदा करना पड़ता था, अब उसी किसान के खाते से 2331 रुपये काटे जा रहे हैं.
 
सरकार के इस फैसले ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं. सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि जिस कंपनी को सरकार ने ब्लैकलिस्ट कर दिया था तो उसे फिर से टेंडर प्रक्रिया में शामिल ही क्यों किया गया. अगर टेंडर प्रकिर्या में उस कंपनी को शामिल किया गया तो प्रीमियम राशि को 3 गुना से ज्यादा क्यों बढ़ाया गया?


सरकार की ऐसी कौनसी मजबूरी थी जिसके चलते केवल एक महीने के लिए फिर से उसी कम्पनी से एमओयू करना पड़ा जिसको सरकार ब्लैकलिस्ट कर चुकी थी? किसान नेता भागीरथ यादव का कहना है कि यह फैसला निजी कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए लिया गया है, लेकिन यह किसानों के हितों पर कुठाराघात है. अभी भी किसानों के खातों से कटा पैसा कंपनी के खाते में जमा नहीं करवाया है बल्कि सहकारी बैंकों के खाते में है. इसलिए अभी भी वक्त है कि सरकार इस करार को रद्द करें अन्यथा हम इसके खिलाफ बड़ा आंदोलन करेंगे.


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बार-बार मौसम में हुए बदलाव और प्राकृतिक आपदाओं की वजह से फसलों में हुए नुकसान की मार झेल रहे किसान पर बढ़ा हुआ प्रीमियम कोढ़ में खाज के जैसा है. जरूरत इस बात की है कि सरकार इस मामले में दखल दे और किसानों को राहत भी.


REPORTER - HANUMAN TANWAR