Nagaur News: राजस्थान का इतिहास भीषण अकालों का गवाह रहा है. अकाल में असंख्य गौवंश काल के गाल में समा जाता था. दूधारू गायें भूख से तड़प तड़प कर मर जाती थी. ऐसे में ग्रामीण इलाकों में हड़बूजी देवता को लोग आज भी याद करते है. जिन्होंने अकाल में अपनी बेलगाड़ी से हरा चारा भरकर गांव गांव जाते थे. और जहां भी कोई गाय या दूसरा पशु भूखा दिखता. उसको चारा देते थे.


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भूखे लोगों को कटोरा भर बाजरा देते थे. लेकिन चमत्कार ऐसा कि न बैलगाड़ी का चारा खत्म होता था. और न ही बोरी में भरा बाजरा. लेकिन आज जब राजस्थान में गांवों के चोहटे गायों के कब्रगाह बन गए है. हजारों गायें तड़प तड़प कर मर गई है. लेकिन सरकार ने आंखें मूंद ली है. सामाजिक संगठन भी औपचारिकता मात्र पूरी कर घर बैठ गए है. ऐसे में लोग आज फिर हड़बूजी को याद कर रहे है. कोई हड़बूजी बन आए. और अकाल मौत मर रही गायों को बचाए.


कौन है हड़बूजी


लोकदेवता हड़बूजी सांखला पंचपीरों में से एक हैं. ये शकुन शास्त्र के ज्ञाता थे. और रामदेवजी के समकालीन थे और उनके मौसेरे भाई थे. रामदेवजी इन्हें अपना दूसरा रूप ही बताते थे. हड़बूजी सांखला गोत्र के राजपूत थे. सांखला राजपूत पंवार राजपूतों की ही एक शाखा है.  हड़बूजी के पिता का नाम मेहराजजी सांखला था.मेहराजजी भुण्डेल गांव के जागीरदार थे. यह गांव वर्तमान में नागौर जिले में आता है.इनकी माता का नाम सौभाग था. ये लोकदेवता रामदेवजी के मौसेरे भाई थे. इन्होंने रामदेवजी के गुरु योगी बालीनाथ को अपना गुरु बनाया था। 


रामदेवजी ने भेंट किया प्याला और छड़ी


रामदेवजी अपने समय के सर्वाधिक लोकप्रिय लोकदेवता थे. वे हड़बूजी को अपना ही दूसरा रूप कहते थे. कहते हैं जब रामदेवजी ने जीवित समाधि ली तब वे अपना प्याला और छड़ी अपने साथ समाधि में ले गए थे. मान्यता है बाद में प्रकट होकर रामदेवजी ने ये प्याला और छड़ी हड़बूजी को प्रदान की थीं. रामदेवजी को यह प्याला और छड़ी मक्का-मदीना से आये पीरों ने दीं थीं. रामदेवजी के प्याले का नाम रतन कटोरा तथा छड़ी का नाम सोवन चिरिया था. 


अकाल के समय गौसेवा


एक बार मारवाड़ में भीषण अकाल पड़ा. उन दिनों हड़बूजी अपनी बैलगाड़ी पर एक बोरी बाजरा लेकर गांव गांव जाते थे.  और हर बेसाहारा और भूखी गायों  और अन्य पशुओं  को बाजरे की बारी से प्याला भर भरकर बाजरा देते थे. कहते हैं कि रामदेवजी के दिव्य प्याले का ऐसा चमत्कार था कि बाजरे की बारी कभी खाली नहीं होती थी. इसी तरह अकाल के दौरान पशुओं के खाने के लिए घास भी बैलगाड़ी पर रखकर गांव गांव में पशुओं को ले जाकर देते थे. इस तरह के परोपकार के कार्य हड़बूजी आजीवन करते रहे. 


हड़बूजी का मंदिर


लोकदेवता हड़बूजी सांखला का मुख्य मंदिर जोधपुर के बेंगटी गांव में बना हुआ है. हड़बूजी ने अपने जीवन का अधिकांश समय यहीं बिताया था. हड़बूजी ने यहीं समाधि ली थी.यहां पर उनका मन्दिर बनाया गया. इस मंदिर में किसी मूर्ति की पूजा नहीं होती है। यहां मन्दिर में हड़बूजी की बैलगाड़ी की पूजा की जाती है। यह वही बैलगाड़ी है जिस पर बाजरा और घास रखकर हड़बूजी लोगों की मदद किया करते थे. इस बैलगाड़ी को हड़बूजी का वाहन भी माना जाता है. इस बैलगाड़ी का नाम सिया था. इस मंदिर का पुजारी सांखला राजपूत होता है.


भयावह स्थिति में गायें


देश के कई राज्यों सहित राजस्थान में बीते करीब दो महीने से गायों में लंपी डिजीज कहर बरपा रहा है.  यह बीमारी अचानक गायों के लिए प्राण घातक साबित हो रही है. इस बीमारी  की जद में आने से अब तक राजस्थान में  तकरीबन 29 लाख 24 हजार 157 गायें संक्रमित हुईं हैं, जिनमें से 50 हजार 366 गायों की मौत हो चुकी है. प्रदेशभर में इस समय आंकड़े दिल दहला रहें है. 


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शुरुआत में इस बीमारी पर किसी ने ध्यान नहीं दिया जिसका नतीजा ये हुआ कि जो गाय देश की आर्थिक व्यवस्था में मजबूती प्रदान कर रहीं थी, आज उन्हें सांसे लेने के लिए मोहताज होना पड़ रहा है. जिसकी वजह से आज यह बेजूबान जानवर असहनीय पीड़ा से गुजरते हुए दम तोड़ रहा है. आज जब इनके जीवन पर संकट छाया है तो सरकारों ने इनके जीवनदान की जगह इनके मरने के ज्यादा इंतजाम कर रखे है. जिस तरह से गौशालाओं,पशुचिकित्सालयों में इनके इलाज की व्यवस्था की गई है, उसकी विभित्सा को देखते ही रूह कांप उठती है. गौशालों में मर रहीं गायों की दरूण व्यथा को देखकर दिल दहल उठता है. अपनी मौत के इंतजार में शायद ये भी इतिहास के वीर गायों के रक्षक तेजाजी , बिग्गाजी , हड़बूजी जी जैसे महान गौरक्षकों की बांट जोह रही है, जो उन्हें इनकी दयनीय स्थिति को देखकर सेवा के लिए आगे आएं.


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