Kargil Vijay Diwas: तोलोलिंग फतह कर राज रिफ ने दुश्मन को था भगाया, जानें नागौर कनेक्शन
भारतीय सेना को जब इस बात की भनक लगी तब तक बहुत देर हो चुकी थी लेकिन भारत के लिए टाइगर हिल्स और तोलोलिंग जैसी पहाड़ियां बहुत ही महत्वपूर्ण थी और पीओके के बाद भारत नहीं चाहता था कि उसको कश्मीर का एक और हिस्सा गंवाना पड़े.
Deedwana: कारगिल युद्ध पाकिस्तान की नापाक हरकत का करारा जवाब था. तकरीबन तीन महीने चला यह युद्ध जम्मू कश्मीर के दुर्गम पहाड़ियों पर लड़ा गया था. 3 मई 1999 को शुरू हुआ यह युद्ध 26 जुलाई को समाप्त हुआ था और इसी दिन को विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है.
बर्फबारी और सर्दी के मौसम का फायदा उठाकर पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर की कई सामरिक महत्व वाली चोटियों पर कब्जा जमा लिया था. पाकिस्तान के नापाक मंसूबों को केवल इसी बात से समझा जा सकता है कि आतंकवादियों के भेष में खुद पाकिस्तान की सेना के जवान भी शामिल थे और इन पाकिस्तानी सैनिकों ने आतंकवादियों के साथ मिलकर लगभग सभी चौकियों पर ना केवल अपने अड्डे बना लिए बल्कि वहां अपने बंकर भी बना लिए थे.
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भारतीय सेना को जब इस बात की भनक लगी तब तक बहुत देर हो चुकी थी लेकिन भारत के लिए टाइगर हिल्स और तोलोलिंग जैसी पहाड़ियां बहुत ही महत्वपूर्ण थी और पीओके के बाद भारत नहीं चाहता था कि उसको कश्मीर का एक और हिस्सा गंवाना पड़े. भारत सरकार के निर्देश पर ऑपरेशन विजय की शुरुआत की गई, जिसमें भारतीय सेना के कई जवान शहीद हुए लेकिन अपने प्राणों की आहुति देकर भी भारतीय सेना के जवानों ने पाकिस्तान के मंसूबों पर पानी फेर दिया और पाकिस्तानी सैनिकों और आतंकियों को पीठ दिखाकर वहां से भागना पड़ा.
तोलोलिंग की पहाड़ियां बहुत ही दुर्गम पहाड़ियां हैं लेकिन यह पहाड़ियां भारत के लिए एक तरह से कवच का काम करती है. इन पहाड़ियों से दुश्मन की हर हरकत पर नजर रखी जा सकती है. पाकिस्तान की सरपरस्ती में आतंकियों ने इन पहाड़ियों पर कब्जा जमा लिया था और इसे मुक्त करवाना बहुत ही महत्वपूर्ण था. तोलोलिंग को दुबारा अपने कब्जे में लेने के लिए भारतीय सेना ने काफी प्रयास किया लेकिन ऊंचाई पर पूरी तैयारी से बेटा दुश्मन सेना के हर वार पर भारी पड़ रहा था. इस चोटी पर फतह हासिल करने के लिए सेना की कई यूनिट प्रयास कर चुकी थी लेकिन किसी को इसमें सफलता नहीं मिली. यह जिम्मेदारी राज रिफ को सौंपी को सौंपी गई. राज रिफ 2 को 12 जून को तोलोलिंग पर अटैक करने का टास्क दिया गया था लेकिन यह इतना आसान नहीं था. टास्क पूरा करने से पहले पूरे एरिया की रेकी की गई लेकिन यह भी इतना आसान नहीं था.
दुश्मन को भनक लगते ही वहां से फायरिंग हो रही थी लेकिन जैसे तैसे दुश्मनों की लोकेशन पता करके ऑपरेशन की शुरुआत की गई. 17 हजार फीट की ऊंचाई पर बैठे दुश्मन से लोहा लेने के लिए पहले सेना के जवानों ने अपनी पीठ पर रखकर एक ट्रक से ज्यादा गोला बारूद और आयुध ऊपर चढ़ाया गया. 15 हजार फीट पर चढ़ने के बाद 12 जून को रात 12 बजे हमला करना था इसलिए धीरे-धीरे सेना आगे बढ़ते हुए दुश्मन से बहुत कम दूरी पर सतर्कता से गोलीबारी के बीच पहुंची. भारतीय सेना की तरफ से इस दौरान जबरदस्त गोलाबारी की गई सेना को यह लगा की शायद ही कोई दुश्मन अब बचा होगा लेकिन घात लगाए बैठा दुश्मन सेना का इंतजार कर रहा था.
जैसे ही सेना के जवान नजदीक पहुंचे तो दुश्मन द्वारा एक बार फिर जबरदस्त फायरिंग की गई. इसमें कई सैनिक शहीद हुए, जिसमें नागौर जिले के शहीद भंवरलाल भी शामिल थे लेकिन भारतीय सेना ने इसका मुंह तोड़ जवाब दिया और दुश्मन को जान बचाकर भागने के लिए मजबूर कर दिया. राज रिफ ने 12 जून की आधी रात को इस पहाड़ी पर फिर से तिरंगा फहरा दिया. लेकिन जाते जाते पाकिस्तानी सेना और आतंकी वहां माइंस बिछा गए, जिसकी वजह से कई भारतीय सैनिक घायल हुए. दिन निकलने पर सेना के जवानों ने पूरी पहाड़ी से माइंस हटाई और घायलों और शहीद हुए सैनिकों की बॉडी को बेस पर भेजा गया.
इस ऑपरेशन में शामिल रहे हवलदार तेजाराम ने बताया कि यह बहुत ही मुश्किल टास्क थी लेकिन हमारी यूनिट ने इस टास्क को पूरा किया जो हमारे लिए गर्व की बात है. तेजाराम को अपने कई साथियों के शहीद होने का मलाल तो जरूर है लेकिन खुशी इसलिए है कि दुश्मन देश को उसके नापाक मंसूबों में कामयाब होने से रोकने में उनकी यूनिट की महत्वपूर्ण भूमिका थी.
Reporter- Hanuman Tanwar
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