Jaipur Royal Family and Politics: जयपुर राजघराने की दिलचस्प राजनीति है. राजपरिवार की तीन पीढ़ियों ने तीन पार्टियों का दामन थामा, दो में विजय मिली, एक में हार. जयपुर राजघराने की महारानी गायत्री देवी ने पहली बार 1962 में राजपरिवार से चुनाव लड़ने का सफर शुरू किया. इसके बाद आज तक राजपरिवार का राजनीतिक सफर जारी है. चलिए आज आपको बताते है कि राजपरिवार के राजनीति के दिलचस्प सियासी दांव.!


तीन पीढ़ियों का तीन पार्टियों के साथ दांव पैच


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जयपुर को राजा रजवाड़ों का शहर कहा जाता है, जहां खूबसूरत महल, सुंदर किले और राजघराने के सियासी दांव. राजपरिवार के राजनीति की सबसे दिलचस्प बात ये है कि तीन पीढ़ियों ने तीन पार्टियों पर दांव खेला. पहली स्वतंत्र पार्टी, दूसरी कांग्रेस और तीसरी बीजेपी.


पहली पीढ़ी-महारानी गायत्री देवी, स्वतंत्र पार्टी


जयपुर राजपरिवार के राजनीति की शुरुआत 1962 से महारानी गायत्री देवी से हुई. गायत्री देवी ने उस समय जयपुर की लोकसभा सीट से स्वतंत्र पार्टी से चनुाव लडा. महारानी गायत्री देवी ने ये लोकसभा चुनाव भारी मतों से जीता. गायत्री देवी ने 246,516 वोटों में से 192,909 वोट हासिल किए. सबसे खास बात ये है कि महारानी गायत्री देवी का ने पहला चुनाव गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में दर्ज हुआ.


दूसरी पीढ़ी-भवानी सिंह, कांग्रेस पार्टी 


दूसरी पीढ़ी में राजपरिवार ने पार्टी बदल ली. 1989 में गायत्री देवी के बेटे भवानी सिंह ने कांग्रेस पार्टी से लोकसभा का चुनाव लडा, लेकिन बीजेपी के गिरधारी लाल भार्गव से वे चुनाव हार गए. गिरधारी लाल भार्गव एक सामान्य परिवार से आते थे.


तीसरी पीढ़ी-दीया कुमारी, भाजपा पार्टी


राजपरिवार की तीसरी पीढ़ी में फिर पार्टी बदली. भवानी सिंह की बेटी दीया ने 2013 में बीजेपी ज्वाईन की. विधानसभा चुनाव 2013 में बीजेपी ने दीया कुमारी को सवाईमाधोपुर की विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया. उनके सामने थे राजपा के कद्दावर नेता किरोडीलाल मीणा. दीया कुमारी ने किरोडीलाल का हराया और पहली बार विधायक बनी. इसके बाद दीया कुमारी को 2019 में लोकसभा चुनाव में उतारा. अबकी बार उन्हें राजसमंद भेजा. दीया कुमारी ने वहां से भी चुनाव जीता. अबकी बार विधाघर नगर से विधानसभा चुनाव में पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोसिंह शेखावत के दामाद नरपत सिंह राजवी का टिकट काटकर दीया कुमारी को दिया गया. विद्याधर नगर सीट को दीया कुमारी के लिए सुरक्षित माना जा रहा है. इस तरह से तीन पीढ़ियों ने तीन पार्टियों का दामन थामा.


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