Rajasthan Politics:राजस्थान में भाजपा ने भी उपचुनाव की तैयारियां शुरू कर दी है. भाजपा नेता उपचुनाव की पांचों सीटों पर जीत का दावा कर रहे हैं, लेकिन सीटों की गणित और सियासी मिजाज के आधार पर माना जा सकता है कि पांच सीटों तक विजयद्वार से पहुंचने के लिए भाजपा की डगर मुश्किल है. सीटों पर उपुचनाव को लेकर मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा खुद चुनावी तैयारियों का आगाज कर चुके हैं. वहीं दूसरी ओर भाजपा संगठन से भी चुनावी तैयारियां शुरू की जा रही है. 

COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

ये भी पढ़ें : क्यों बिरले हैं 'बिरला', सोशल मीडिया पर छाने की क्या है वजह ?



राजस्थान के पांच विधायक सांसद बनकर लोकसभा की सदस्यता ग्रहण कर चुके हैं,लेकिन उनके उत्तराधिकारी के रूप में पांच सीटों पर कौन बैठेगा,यह आलाकमान तय करेगा. प्रदेश झुंझुनूं, देवली उनियारा, दौसा, खींवसर और चौरासी इन पांच सीटों पर उपचुनाव की बारी है,,तारीखों का एलान भले ही नहीं हुआ है.पर कांग्रेस के बाद बीजेपी ने भी तैयारियां शुरू कर दी है.



सीएम भजनलाल का झु्ंझूनूं दौरा सामाजिक सुरक्षा पेंशन के लाभार्थियों के खाते में डीबीटी करने से जुड़ा था,पर असली मकसद उपचुनाव ही था.झु्ंझूनूं में भाजपा की झोली बरसों से खाली है.पार्टी यहां एक अदद जीत को तरस रही है.बृजेंद्र ओला के सांसद बन जाने से झु्ंझूनूं की सीट खाली हुई है.दावेदार भी यहां अनेक हैं,पर गुटबाजी के जंजाल में फंसी भाजपा जिताऊ चेहरे की तलाश में है.



इस सीट पर बरसों से ओला परिवार का कब्जा जारी है.सरकार के मंत्रियों का दावा है कि उपचुनाव में कड़ी से कड़ी जुड़ेगी,,जनता विकास के मुददे पर वोट देगी और झुंझुनूं सहित सभी सीटें भाजपा जीतेगी. झुंझुनूं में कांग्रेस के जाट, मुस्लिम और एससी-एसटी के वोट बैंक में बीजेपी किस तरह सेंध लगा सकती है, यह सोचने का विषय है.



प्रदेश की इन पांचों सीटों पर पांच महीने के भीतर उपचुनाव होना है. चुनाव की तारीख जल्द ही सामने आ सकती है,लेकिन यहां बीजेपी के लिए जीत किसी अग्निपरीक्षा से गुजरने के बराबर है. इन सीटों के सियासी समीकरण के तोड़ में बीजेपी छह महीने में भजनलाल सरकार की ओर से कराए गए काम को लेकर जीत की उम्मीद लगाए बैठी है.


दौसा में मुरारीलाल मीणा की क्षेत्र में लोकप्रियता बरकारार है.वर्ष 2013 में बीजेपी के शंकर शर्मा ने यहां से आखिरी बार चुनाव जीता था.शंकर शर्मा दो बार लगातार चुनाव हार गये हैं,उनकी सेहत भी ठीक नहीं चल रही.इसलिए बीजेपी को यहां जीत के नये समीकरण बनाने होंगे.मुरारी सचिन पायलट के नजदीकी नेताओं में शुमार हैं.बीजेपी को यहां ,कांग्रेस के गुर्जर, मीणा, दलित वोट बैंक की काट तलाशनी होगी.



खींवसर सीट पर हनुमान बेनीवाल और उनके परिवार का 2008 से दबदबा है.बीजेपी के टिकट पर बेनीवाल ने यहां से 2008 में चुनाव जीता था,,उसके बाद वो निर्दलीय जीते और फिर RLP के टिकट पर अब उनका इंडिया गठबंधन से नाता बरकरार रहेगा या फिर उनकी पार्टी अकेले मैदान में उतरेगी.


इसका फैसला भी चुनाव के दौरान ही होगा.बीजेपी प्रत्याशी रेवंत डांगा ने 2023 के चुनाव में बेनीवाल को कड़ी चुनौती जरूर दी,,मगर नजदीकी मुकाबले में डांगा चुनाव नहीं जीत पाये.अब बीजेपी की टिकट पर ज्योति मिर्धा चुनाव लड़ेगी या फिर से डांगा को मैदान में उतारा जायेगा या कोई नया चेहरा उतरेगा.


देवली उनियारा सीट से बीजेपी 2013 में आखरी बार चुनाव जीती थी.2018 और 2023 में हरीश मीणा यहां से चुनाव जीते हैं.अब हरीश लोकसभा सांसद बन गये हैं माना जा रहा है कि कांग्रेस सचिन पायलट के पंसदीदा नेता को मैदान में उतारेगी, 2023 में गुर्जर नेता किरोड़ी बैंसला के पुत्र विजय बैंसला चुनाव हार गए थे अब बीजेपी यहां पूर्व मंत्री प्रभुलाल सैनी पर दांव खेल सकती है, हालांकि इस सीट पर भी बीजेपी को जीत के लिए बहुत जोर लगाना होगा.


चौरासी में राजकुमार रोत के नाम का तुफान उठा हुआ है.2018 और 2023 में विधानसभा और हाल ही में लोकसभा का चुनाव जीतने के बाद राजकुमार रोत की गिनती अब आदिवासियों के बड़े नेता के रूप में होने लगी है.बीजेपी की टिकट पर यहां आखरी बार 2013 में सुशील कटारा ने चुनाव जीता था.


कटारा को तत्कालीन वसुंधरा सरकार में मंत्री भी बनाया गया था पर इस वक्त बीटीपी की आंधी के आगे बीजेपी को जीत के समीकरण बनाने में खासी मशक्कत करनी पड़ेगी.बहरहाल,बीजेपी के नेता दावा कर रहे हैं कि भजनलाल सरकार की अब तक उपलब्धियां उसकी चुनावी नैया पार लगा देगी.


इसलिए हर मंच से बीजेपी के नेता सरकार की उपलब्धियों का बखान कर रहे हैं.पेपर लीक माफिया के खिलाफ कार्यवाही से लेकर एंटी गेंगस्टर टास्क फोर्स को सरकार बड़ी उपलब्धि बता रहे हैं,तो सामाजिक सुरक्षा पेंशन में बढ़ोत्तरी.


ईआरसीपी और यमुना जल समझौते के लिए किए गए करार को भी वो जनता के बीच उपचुनाव में भुनाना चाहती है.महिलाओं के वोट को हासिल करने के लिए उसके तरकश में कई तीर हैं.पुलिस भर्ती में 33 फीसदी और थर्ड ग्रेड में पचास फीसदी सीटें महिलाओं को देने जैसे बड़े फैसले सरकार उपचुनाव में गिनाएगी पर सवाल यही उठता है इनमें से कई काम तो लोकसभा चुनाव से पहले होने के बावजूद भी बीजेपी को उसी इलाके में करारी हार झेलनी पड़ी है.


जहां उसे जीत का पूरा भरोसा था.इसलिए पार्टी को नये सिरे से रणनीति बनाकर जीत के लिए नये मुददे भी गढने होंगे,तभी वो उसकी कांटों भरी राह थोड़ी बहुत आसान हो सकती है.वहीं लोकसभा चुनाव की तर्ज पर कांग्रेस आरएलपी और बीएपी से गठबंधन करती है तो भाजपा की राह और मुश्किल भरी हो जाएगी.  


यह भी पढ़ें:राजस्थान में फिर धंसी जमीन, अचानक बना गया रहस्यमयी गड्ढा और फिर...