Pratapgarh News: जिले के दलोट कस्बे के एक कुएं में गिरे दुर्लभ उल्लू को वाइल्ड लाइफ एंड एनिमल रेस्क्यू सोसायटी टीम ने रेस्क्यू कर सुरक्षित बचाया.


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रेस्क्यूअर लव कुमार जैन का दावा है कि दुर्लभ प्रजाति का यह ब्राउन ऑउल एक वर्ष में 25 हजार चूहे खा सकता है. यहां कस्बे के निकट किसान शंकरलाल कुमावत के कुए में एक उल्लू गिरने की सूचना लवकुमार जैन को मिली.


जिस पर वह संस्था के सदस्य चेनीराम, पवन, साहिल के साथ कुएं पर पहुंचे. जहां गहरे कुएं में उतरे और डूबते हुए उल्लू को सुरक्षित रेस्क्यू कर बचाया गया. रेस्क्यू के बाद उसे वन नाका दलोट लाया गया एवं वन विभाग की निगरानी रखा गया. यहां से उसे सुरक्षित रूप से जंगल में छोड़ दिया.


किसान शंकरलाल ने बताया कि खेत पर कृषि कार्य करने के दौरान कुए के नजदीक गए. तब उन्हें अजीब आवाजें सुनाई दीं. इस तरह की अनजान आवाज सुनकर कुएं में देखा. जहां एक उल्लू पानी में दिखाई दिया. इसके बाद रेस्क्यू टीम को सूचना दी.

ऑउल को लक्ष्मी उल्लूू, खलिहान उल्लू भी कहा जाता है. दिखने में उजले सफेद रंग का यह खूबसूरत उल्लू काफी आकर्षक है तो दुर्लभ भी. यह उल्लू प्रजाति में सबसे शांत और सीधे स्वभाव का होता है, जो प्रतापगढ़ जिले में अब कम ही दिखाई देता है. लेकिन धरियावद इलाके में यह काफी देखने को मिलता है.


बड़े आकार के इस उल्लू का चेहरा भी बड़ा और दिलाकार होता है. इसकी आवाज भी डरावनी होती है और कई तरह की आवाज यह निकालने में सक्षम होता है. यहा उल्लू दिन के मुकाबले रात में अच्छे से देख पाते हैं. उपवन संरक्षक हरिकिशन सारस्वत ने बताया कि इनकी आंखे बड़ी होती हैं. जिससे ये कम रोशनी में भी अच्छे से देख पाते हैं. बल्कि दिन के उजाले में इनकी आंखें चौंधियां जाती है.


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यह उल्लू एक निशाचर शिकारी पक्षी है. इसकी उड़ान बहुत शांत होती है. पंख बहुत मखमली होते हैं. टांगे लंबी और मजबूत होती है. चोंच गुलाबी रंग की, आंखे थोड़ी बड़ी, दृष्टि और श्रवण शक्ति तेज होती है. ऊंचाई 25 सेंटीमीटर से भी अधिक हो सकती है. चेहरे की विशेष बनावट इसे ध्वनि तरंगों को ग्रहण करने में मदद करती है.


इसके पंखों का विस्तार 85 सेंटीमीटर तक हो सकता है. गर्दन 180 डिग्री तक घुमा सकता है. इसका आहार छोटे स्तनधारी जीव, मेंढक, छिपकलियां, कीड़े मकोड़े, छछुंदर, चूहे आदि है. दूसरे पक्षियों का भी शिकार कर लेता हैं. खेत खलिहानों, नदी-नालों के आस-पास पेड़ों की कोटर में खंडहरों आदि में यह रहते हैं. यह पक्षी किसान मित्र है, जो खलिहानों में विशेष कर चूहों का शिकार करता है. पर्यावरण संतुलन की अहम कड़ी है.