Pratapgarh: लंपी वायरस ने बढ़ाई पशुपालकों की चिंता, हर रोज इलाज के लिए खर्च हो रहे 3 हजार रुपये
Pratapgarh: राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले में लंपी स्किन बिमारी ने छोटे पशुपालकों की कमर तोड़ दी है. खासतौर पर पीपलखूंट और छोटीसादड़ी क्षेत्र में इसका संक्रमण काफी तेजी से फैल रहा है. जिले में मौत का आकड़ा अभी 41 ही है लेकिन संक्रमण का आकड़ा 3606 हो चुका है.
Pratapgarh: राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले में लंपी स्किन बिमारी ने छोटे पशुपालकों की कमर तोड़ दी है. खासतौर पर पीपलखूंट और छोटीसादड़ी क्षेत्र में इसका संक्रमण काफी तेजी से फैल रहा है. जिले में मौत का आकड़ा अभी 41 ही है लेकिन संक्रमण का आकड़ा 3606 हो चुका है. इसमें भी हजारों संक्रमित पशु केवल पीपलखूंट और छोटीसादड़ी क्षेत्र के है. आज आई रिपोर्ट में 519 पशु संक्रमित मिले है जबकि 5 की मौत हो गई है.
पशु चिकित्सा महकमे खुद रिक्त पदों के अभाव में जूझ रहा है, उनके पास जिले में करीब एक लाख गायों पर 16 पशु चिकित्सक 120 पशुधन सहायक और 14 पशु चिकित्सा सहायक है. ऐसे में लोग निजी पशु चिकित्सालय से उपचार करवाने को मजबूर है. पशुपालकों का कहना है कि प्रतिदिन का खर्च 8000 रुपये तक आ रहा है. जिन लोगों के पास तीन से चार गाय हैं और इसी के भरोसे परिवार चल रहा है उनके लिए परेशानी बढ़ गई है. एक भी पशु के संक्रमण होने के चलते एक तरफ रोजाना उनकी दवाई का खर्चा तो दूसरी तरफ गाय का दूध बिकना भी बंद हो गया है. गाय की मौत हो जाने पर उसे दफनाने में जेसीबी की मदद लेनी पड़ती है उसका खर्च अलग से है.
पशुपालकों की हालत बदहाल होती जा रही है. लगातार पशुधन का उपचार और मौत होने पर उनको दफनाने तक का खर्च कितना भारी है, जितनी उनकी आई भी नहीं है. ऐसे में सरकार की ओर से किसी भी प्रकार की कोई मदद नहीं करना पशुपालकों के साथ अत्याचार की तरह ही देखा जा रहा है. छोटीसादड़ी नगर सहित उपखंड क्षेत्र के कई गांव में वायरस तेजी से फैल रहा है. धरियावद क्षेत्र में 707 पशु इस बीमारी के संक्रमण की चपेट में आए हुए है. 4 में से 3 पशु बीमार है प्रतिदिन बाजार से इनके इलाज के लिए 1 से 3000 रुपये तक की दवा लानी पड़ रही है.
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कलेक्टर सौरव स्वामी ने अपने स्तर पर आपदा प्रबंधन के सभी वाहन और कर्मचारी पशु चिकित्सा विभाग की मदद के लिए उपलब्ध करवाए हैं. पशुपालन विभाग के संयुक्त निदेशक श्रीनिवास ने बताया कि यह बीमारी फिलहाल महामारी घोषित नहीं की गई है, इसलिए पशुपालकों को मुआवजा नहीं मिल रहा है. खुले में मृत पशु डालने से रोकने को लेकर ग्राम पंचायत को जिम्मेदारी सौंपी गई है. रिक्त पदों की स्थिति में एनजीओ से मदद ली जा रही है.
Reporter: Vivek Upadhyay
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