प्रतापगढ़ में अनोखी परंपरा, शरद पूर्णिमा पर रावण को मारते है गोलियां
Pratapgarh: चुनाव आचार संहिता के कारण प्रतापगढ़ में इस बार रावण के पुतले पर गोलियां नहीं चल सकी है. इस बार बरसों से चली आ रहीं परंपरा के तहत शरद पूर्णिमा पर रावण का दहन होता है.पहले रावण के पुतले को लाइसेंसी बंदूको से छलनी किया जाता है.
Pratapgarh: चुनाव आचार संहिता के कारण प्रतापगढ़ में इस बार रावण के पुतले पर गोलियां नहीं चल सकी . इसी कारण इस बार दशहरे पर रावण के पुतले का पारंपरिक तरीके से ही दहन किया गया . इस दौरान राम रावण सेना के बीच जमकर युद्ध हुआ .
दरअसल, प्रतापगढ़ की बरोठा ग्राम पंचायत में दशहरे पर रावण का दहन नहीं किया जाता है. यहां बरसों से चली आ रही परंपरा के तहत शरद पूर्णिमा पर रावण का दहन होता है. पहले रावण के पुतले को लाइसेंसी बंदूको से छलनी किया जाता है. आसपास के इलाकों से लाइसेंसी बंदूकधारी यहां पर आते हैं लेकिन इस बार चुनावी आचार संहिता होने के कारण सभी के हथियार थानों में जमा हो गए और रावण के पुतले का सामान्य तरीके से दहन किया गया.
दहन से पहले राम जानकी मंदिर से भव्य शोभायात्रा निकाली गई, जो देवनारायण मंदिर परिसर पहुंची. यहां पर राम और रावण की सेना के बीच जोरदार युद्ध हुआ .उपसरपंच रामेश्वरलाल ने बताया कि रावण दहन के दौरान भव्य आतिशबाजी भी की गई ,रात्रि में यहां पर आर्केस्ट्रा का भी आयोजन किया जाएगा.
रावण और शरद पूर्णिमा का संबंध
पौराणिक कथाओं के अनुसार, रावण शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की किरणों को दर्पण की सहायता से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था. रावण की नाभि में अमृत था और वह इस अमृत की वृद्धि के लिए पूर्णिमा की रात्रि को दर्पण लगाकर चंद्रमा की रोशनी को नाभि पर केंद्रित करता था. इस प्रक्रिया से उसे पुनर्योवन शक्ति प्राप्त होती थी.
ये भी पढ़ें-
राजस्थान: अवैध सामग्री जब्त करने के मामले में हर दिन नए रिकॉर्ड,17 दिन में 300 करोड़ का आंकड़ा पार
डूंगरपुर: भयमुक्त माहौल में चुनाव करवाने के लिए पुलिस मुस्तेद, किया जा रहा फ्लैगमार्च
Rajasthan Weather Update: नया पश्चिमी विक्षोभ हो रहा सक्रिय, जानिए मौसम पर कैसा पड़ेगा प्रभाव