Rajsamand: राजसमंद के कांकरोली में प्रज्ञा विहार तेरापंथ भवन युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण की सुशिष्या साध्वी मंजुयशा ने भावो से भव जल तरें इस विषय पर उद्बोधन प्रदान करते हुए कहा कि साधना की पूर्व सफलता के लिए जरूरी है भावों की विशुद्धि. व्यक्ति ज्ञान के क्षेत्र में आगे बढ़ता है, कला के क्षेत्र में विकास करता है. व्यवसाय के क्षेत्र में नये नये कार्य करता है.


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भौतिकता के साथ धार्मिकता के क्षेत्र में भी विकासशील रहता है. हर क्षेत्र में वह विकास की ऊंचाइयों को छूने का दीवास्वप्न लेता रहता है. स्वप्न लेना कोई बुरा नहीं होता है. किन्तु उसे साकार रूप देने के लिए श्रम करता है समय लगाता, तपता है खपता है सब कुछ करता है किन्तु स्वप्न पूरा करने के लिए वह अन्याय करता है धोखाधडी करता है. बईमानी करता है, भ्रष्टाचार करता है, अपना स्वार्थ पूरा करने हेतु ऊपर से मीठा बोलता है और अन्दर छुरिया चलाता है. उस मानव का जीवन कभी- श्रेष्ठ नहीं हो सकता है. भगवान ने कहा- मानव चाहे किसी क्षेत्र में आगे बढ़ता है उसका आचार, उसका व्यवहार उच्च होना चाहिए.


उन्होंने आगे कहा कि एक महात्मा अपनी साधना को सफल बनाने के लिए लम्बी लम्बी तपस्या करता है कितने कष्टों को सहता है. भूख प्यास को सहन करता है किन्तु जबतक भावों की पवित्रता नहीं होती है तो उसकी साधना कभी सफल नहीं हो सकती है. प्रसन्नचंद्र राजर्षि बुरे भाव आते ही नरक के द्वार पहुंच गए. इसलिए व्यक्ति को ज्यादा से ज्यादा भाव विशुद्धि पर ध्यान देना चाहिए.


अध्यात्म क्षेत्र में भी ज्यादा भाव विशुद्धि पर ही बल दिया गया है इस अवसर साध्वी श्रीजी ने एक सुमधुर गीत प्रस्तुत किया. कैलाश बाई तलेसरा के 9 की तपस्या, जयश्री मालु ने 11 आयम्बिल का तप एवं मधु पगारिया ने 11 की तपस्या की. इस दौरान सभी का तेरापंथ सभा की ओर से हार्दिक अभिनंदन किया गया.


Reporter-Devendra Sharma


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