Adhar Devi Temple: नवरात्रि के नौ दिनों तक भक्त मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना करते है. नवरात्री का त्यौहार शुरू होते ही देश और प्रदेश के भक्तों का उत्साह देखते ही बनता है. मां दुर्गा के दरबार में खली झोली लेकर श्रद्धालु आते हैं और मां उनकी झोलियां खुशियों से भर देती है. आज हम आपको राजस्थान के सिरोही जिसे में स्थित एक ऐसे ही मंदिर के बारे बताने जा रहें हैं जहां जाने पर भक्तों के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं.


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यहां गिरे थे माता सती के होंठ 


यह मंदिर है माता सती के 15वें शक्तिपीठ मां अधर देवी का, जो हिल स्टेशन माउन्ट आबू में पहाड़ी पर स्थित है. यहां देवी माता की गुप्त रूप में पूजा की जाती है. आखिर क्या है इस 5000 साल के लगभग पुराने मंदिर की विशेषता.इस मंदिर का प्रसंग माता सती के आत्माहुति से जुड़ा हुआ है, अपने पिता दक्ष की बातों से दुखी होकर सती यज्ञ की अग्नि में कूद गई थी, जिससे क्रोधित महादेव सती के शरीर को लेकर जगह-जगह घूमने लगे. शिव के क्रोध की वजह से संसार में जन्म-मृत्यु की प्रक्रिया रुक गई. जिसके बाद चिंतित देवता भगवान विष्णु के पास गए और उनसे कुछ उपाय करने को कहा. उसके बाद भगवान विष्णु ने अपने चक्र से सती के अंगों का विच्छेद कर दिया, भगवान शंकर ने माता सती के भस्म हुए शरीर को लेकर वियोग में तांडव शुरू किया था. उस समय 51 स्थानों पर माता के अंग गिरे थे, जिसके कारण वें सभी स्थान शक्तिपीठ कहलाये. उसी समय माता सती के के होंठ इस स्थान पर गिरे थे, तभी से ये जगह अधर देवी (अधर मतलब होंठ) के नाम से प्रसिद्ध है. 


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गुप्त रूप में होती है मां कात्यानी की पूजा 


इसकी सबसे बड़ी खासियत है कि यहां मां कात्यानी की गुप्त रूप में पूजा होती है. स्कंद पुराण के अनुसार माता के इस गुफा में छठे स्वरूप कात्यानी के रूप में विराजने का जिक्र है. करीब साढ़े पांच हजार साल पहले इसकी स्थापना की गई थी. अर्बुदा देवी का मंदिर मां कात्यायनी  शक्तिपीठ के रुप में भी जाना जाता है. नवरात्रि में यहां दूर-दूर से श्रद्धालु मां कात्यायनी के दर्शन करने आते हैं. इस मंदिर की कहानी दो बहनों से भी जुड़ी है. आबूरोड़ से सटे गुजरात सीमा में मौजूद अंबाजी से इसका नाता है. वहां मां के आठवें स्वरूप महागौरी की पूजा होती है और वह भी शक्तिपीठ है. देवी का छठा रूप  कात्यायनी है और आंठवां रूप महागौरी है, जिसके चलते ये दोनों स्थान एक दूसरे से संबंधित है. अष्टमी की रात मंदिर परिसर में महायज्ञ होता है, जिसकी नवमी की सुबह पूर्णाहुति होती है. इसके साथ ही नवरात्रि में दिन-रात यहां अखंड पाठ होता है.


मां कात्यायनी ने किया था यहीं पर असुर संहार, चरण पादुका की होती है पूजा


मंदिर के पास ही अर्बुदा देवी का चरण पादुका मंदिर स्थित है, यहां माता की चरण पादुकाओं की पूजा-अर्चना होती है. माता ने चरण पादुकाओं के नीचे बासकली राक्षस का संहार किया था. मां कात्यायनी के द्वारा बासकली वध की कथा भी पुराणों में है और माता की चरण पादुकाओं की पूजा अर्चना करने का उल्लेख स्कंद पुराण में मिलता है. दुर्गा के छठे स्वरूप को कात्यायनी कहते हैं. यह भी मान्यता है कि ऋषियों ने मां भगवती की कठोर तपस्या की थी, जिसके बाद दानव महिषासुर का संहार करने के लिये, त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश ने अपने तेज का एक-एक अंश देकर देवी को उत्पन्न किया था. महर्षि कात्यायन की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर देवी ने उनकी इच्छानुसार उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया. इस जन्म का उद्देश्य ऋषियों के कार्य को सिद्ध करना था. महर्षि ने इनका पालन-पोषण अपनी कन्या के रूप में किया, महर्षि कात्यायन की पुत्री और उन्हीं के द्वारा सर्वप्रथम पूजे जाने के कारण देवी का नाम कात्यायनी पड़ा.


क्या है चरण पादुकाओं की पौराणिक मान्यता


माता की पादुका के पीछे पौराणिक कथा ये है कि दानव राजा कली जिसे बासकली के नाम से भी जाना जाता था, उसने जंगल में हजार साल तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न कर दिया. भगवान शिव ने प्रसन्न दोकर उसे अजेय होने का वरदान दिया. वरदान मिलने का बाद बासकली घमंड में इतना चूर दे गया की, उसने देवलोक में इंद्र सहित स्वर्ग को कब्जे में कर लिया और सभी देवता उसके उत्पात से दुखी होकर जंगलों में छिप गए. इस संकट से पार पाने के लिए देवताओं ने कई सालों तक अर्बुदा देवी को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की. उसके बाद अर्बुदा देवी तीन रूपों में प्रकट हुई और उन्होंने देवताओं से उन्हें प्रसन्न् करने का कारण पूछा, देवताओं ने माता अर्बुदा से बासकली से मुक्ति का वर मांगा. जिसके बाद अर्बुदा देवी ने मां कात्यायनी के रूप में बासकली राक्षस को अपने चरण से दबा कर उसे मुक्ति दी. उसी के बाद से माता की चरण पादुका की यहां पूजा होने लगी. स्कंद पुराण के अर्बुद खंड में माता के चरण पादुका की महिमा खूब गायी गई है. कहते हैं पादुका के दर्शन मात्र से ही मोक्ष प्राप्त हो जाता है. 


नवरात्र में माता दर्शन का है विशेष महत्व 


अर्बुदा देवी मंदिर तक जाने के लिए 365 सीढ़ियों का रास्ता है, रास्ते में सुंदर नजारें हैं, जिसकी वजह से सीढियां कब खत्म होती हैं पता ही नहीं चलता. ऊपर पहुंचने के बाद यहां के सुंदर दृश्य और शान्ति मन मोह लेती है. ऐसी पौराणिक मान्यता है कि नवरात्र के दिनों में माता के दर्शन मात्र से सभी दुखों से मुक्ति मिल जाती है, श्रद्धालुओं की मुराद पूरी हो जाती है और उसे मोक्ष मिल जाता है. पूरे नवरात्र में यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ दर्शन के लिए उमड़ती है. नवरात्र के छठे दिन मां अर्बुदा यानि कात्यायनी के दर्शन के लिए सुबह से ही श्रद्धालु आने लगते हैं. 


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