Swami Vivekanand : देश भर के साथ विश्व भर में हम आज स्वामी विवेकानंद जी की जयंती मना रहे. स्वामी जी के बताए हुए मार्गो, आदर्शों व विचारों से प्रेरणा लेने की लंबी चौड़ी बातें हमारे माननीय नेता मंच पर मौजूद अतिथि मुख्य अतिथि सभी लोग कह रहे हैं. लेकिन विडंबना देखिए कि माउंट आबू की चम्पा गुफ़ा जहाँ स्वामी विवेकानंद जी ने सन 1891 में 3 महीने का प्रवास किया था उस जगह के हाल-व-हालात कितने जीर्ण - शीर्ण व दयनीय स्थिति में है. सबसे पहले देखते हैं, विवेकानंद उद्यान का हाल, किस तरह से अस्त-व्यस्त बदहाल स्थिति. दीवारें टूटी हुई,चारों ओर बिखरे हुए पत्थर, बिखरी मिट्टी कीचड़. यह दृश्य विवेकानंद उद्यान के है ,जिनकी जयन्ती आज देश मना रहा है.


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इसके बाद के दृश्य चंपा गुफा के हैं ,जो नक्की झील से ही टॉड रॉक जाने वाले मार्ग के बीच में आती है. यही चंपा गुफा है जहां पर सन 1891 में स्वामी विवेकानंद स्वयं माउंट आबू आए थे. और यहीं इसी स्थान पर तीन महीने का अपना प्रवास किया था. ऐसा बताया जाता है कि यहां पर रहकर विवेकानंद माउंट आबू के खेतड़ी महाराजा के संपर्क में आए थे उसके बाद उनके शिकागो में होने वाली 1893 धर्म संसद में जाने की भूमिका बनी थी. कई इतिहासकार तो यह भी मानते हैं कि खेतड़ी महाराजा अजीत सिंह के संपर्क में आने के बाद माउंट आबू में ही हुई एक धर्म सभा में स्वामी विवेकानंद जी का नामकरण हुआ था इससे पहले उन्हें नरेन्द्र के नाम से जाना पहचाना जाता था.


अब तस्वीरों से समझा जा सकता है कि जो चंपा गुफा इस समय दिखाई दे रही है वह उस महापुरुष के प्रवास से संदर्भ रखने वाले ऐतिहासिक महत्व की विरासत के संरक्षण के प्रति राजस्थान की सरकार एवम देश की सरकार किस स्तर तक कर पाने में सक्षम है. ऐसे में प्रश्न खड़ा होता है क्या हम महापुरुषों की जयंती केवल नाम मात्र की रस्म अदायगी के लिए ही मनाते हैं ? या उनके नाम पर हम अपना राजनीतिक हित व लाभ के पद सहित सत्ता प्राप्ति के लिए इस्तेमाल करते है ?


यहां पर प्रतिवर्ष 12 जनवरी को कुछ ना कुछ आयोजन तो स्वामी विवेकानंद जयंती के नाम पर होता ही था लेकिन आज तो मात्र औपचारिकता निभाने की इतिश्री होकर ही रह गया. उल्लेखनीय है कि इस जगह को बहुत सुंदर बहुत आकर्षक राष्ट्रीय स्मारक बनाने की बातें वर्षों से की जाती रही है लेकिन आज तक असल रूप में कही गई उन सभी बातों का वास्तविक चेहरा इन तस्वीरों में दिखाई दे रहा है.


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