यहां चलती है भगवान श्री कृष्ण की सरकार, 6 दशक से निभा रहे `विकास` का जिम्मा
मेवाड़ के कृष्ण धाम श्री सांवलिया सेठ ( Krishna Dham Shri Sanwaliya Seth) की जो अपने क्षेत्र के सीमा से लगे 16 गांवों का पिछले करीब 6 दशक से विकास कार्य कराते हुए गांव की जनता के लिये सरकार बने हुए हैं.
Chittorgarh: गावों में विकास का जिम्मा केंद्र और राज्य सरकार का होता है, जिनके द्वारा ग्रामीण इलाकों में मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराकर वोटबैंक की राजनीति को मजबूत किया जाता है, लेकिन यदि यही जिम्मा भगवान यानी ईश्वर की सरकार निभाएं तो इसे आप क्या कहेंगे.
जी हां, सुनने में कुछ अजीब सा लग रहा है, लेकिन यह सत्य है. हम बात कर रहे है मेवाड़ के कृष्ण धाम श्री सांवलिया सेठ ( Krishna Dham Shri Sanwaliya Seth) की जो अपने क्षेत्र के सीमा से लगे 16 गांवों का पिछले करीब 6 दशक से विकास कार्य कराते हुए गांव की जनता के लिये सरकार बने हुए हैं.
इन गांवों में सड़क, नाली, पेयजल व्यवस्था की भगवान के देखरेख में
जिला मुख्यालय से 45 किमी दूर मंडफिया में स्थित सांवलियाजी (Sanwaliyaji) के मंदिर के द्वारा उसके आस पास के 16 गांवों में विकास कराया जाता है. इन गांवों में सड़क, नाली, पेयजल व्यवस्था, मंदिरों का जीर्णोद्धार, सामुदायिक भवन, शिक्षा सहित कई विकास कार्यों पर हर वर्ष करोड़ों रूपए खर्च किए जाते है. इन गांवों में विकास कार्य एक-दो वर्षों से नहीं बल्कि पिछले छह दशक से भी अधिक समय से किया जा रहा है.
व्यापार में भगवान श्री कृष्ण पार्टनर भी हैं
अब हम बात करते है, सांवलिया जी के दूसरे चमत्कार की. अब तक व्यापारियों को पार्टनरशिप के बारे में सुना होगा लेकिन यदि व्यापार में यदि भगवान को ही बराबर का पार्टनर बना लिया जाये तो इसे आप क्या कहेंगे. जिले के कृष्णधाम मंडफिया स्थित सावरा सेठ (Savra Seth Krishnadham Mandafia) की जिन्हें श्रृद्धालु अपना बिजनस पार्टनर बनाकर व्यापार करते है, जिसके चलते प्रतिमाह उनके भंडार से निकलने वाली करोड़ों की राशि से सांवलिया जी को सेठों का सेठ साबित करने में महत्वपूर्ण साबित हो रहा है.
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जब तोड़ रही थी औरंगजेब की मुगल सेना
किवदंतियों के अनुसार औरंगजेब की मुगल सेना (Aurangzeb Mughal Army) जब मंदिरों को तोड़ रही थी, तब मेवाड़ राज्य में पंहुचने पर मुगल सैनिकों को इन मूर्तियों के बारे में पता लगा. ऐसे में संत दयाराम ने प्रभु प्रेरणा से इन मूर्तियों को बागुंड-भादसौड़ा की छापर में एक वट-वृक्ष के नीचे गड्ढा खोद कर दबा दिया और फिर समय बीतने के साथ संत दयाराम का देवलोकगमन हो गया.
मंडफिया ग्राम निवासी भोलाराम गुर्जर (Bholaram Gurjar) नाम के ग्वाले को एक सपना आया कि भादसोड़ा-बागूंड के छापर में 4 मूर्तियां जमीन में दबी हुई है, जब उस जगह पर खुदाई की गई तो भोलाराम का सपना सही निकला और वहां से एक जैसी 4 मूर्तियां प्रकट हुईं, जो सभी बहुत ही मनोहारी थी.
देखते ही देखते ये खबर सब तरफ फैल गई और आस-पास के लोग प्राकट्य स्थल पर पहुंचने लगे. फिर सर्वसम्मति से चार में से सबसे बड़ी मूर्ति को भादसोड़ा ग्राम (Bhadsoda Village) ले जाई गई, भादसोड़ा में प्रसिद्ध गृहस्थ संत पुराजी भगत के निर्देशन में उदयपुर मेवाड़ राज-परिवार के भींडर ठिकाने की ओर से सांवलिया जी का मंदिर बनवाया गया.
भक्त की हर मनोकामना पूर्ण होती हैं यहां
यह मंदिर सबसे पुराना मंदिर है इसलिए यह सांवलिया सेठ (Sanwaliya Seth) प्राचीन मंदिर के नाम से जाना जाता है. सांवलिया जी के बारे में यह मान्यता है कि वे अपने हर भक्त की मनोकामना पूर्ण करते है. शायद इसी कारण छोटे से गांव का यह मंदिर राष्ट्रीय स्तर पर अपनी विशिष्ठ पहचान बना चुका है. कालांतर में सभी जगह भव्य मंदिर बनते गए. तीनों मंदिरों की ख्याति भी दूर-दूर तक फैलती चली गई, जहां आज भी दूर-दूर से लाखों यात्री प्रति वर्ष श्री सांवलिया सेठ दर्शन करने आते हैं.
सांवलिया सेठ की महिमा बढ़ने पर भंडार से अपेक्षा से कई अधिक धनराशि निकलने पर मंदिर विस्तार पर ध्यान दिया गया. जिसके फलस्वरूप पुराने मंदिर के स्थान पर अहमदाबाद के अक्षरधाम की तर्ज पर इस मंदिर का विस्तार किया गया. जहां आज प्रतिमाह लाखों श्रृद्धालु मेवाड़, मालवा, गुजरात सहित देश के विभिन्न क्षेत्रों से दर्शनार्थी यहां आते है.
धनराशि का उपयोग जनहित में करने की व्यवस्था
इस मंदिर की व्यवस्था के लिये मंदिर मंडल का गठन किया हुआ है, जिसमें प्रशासनिक अधिकारी के रूप में स्थाई रूप से अतिरिक्त कलेक्टर को प्रभार दिया हुआ है. मंदिर मंडल के विधान के अनुसार मंदिर क्षेत्र के 16 गांवों में चढ़ावे के रूप में प्राप्त धनराशि का जनहित में उपयोग करने की व्यवस्था है, तथापि यात्रियों की सुविधा और मंदिर विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता देने से इस मंदिर में छोटे से गांव को कृष्ण धाम के रूप में प्रसिद्धि प्रदान कर दी है.
पांच वर्ष पूर्व तक इस मंदिर में औसतन दो करोड़ रूपये की राशि भंडार से निकला करती थी, लेकिन व्यापारियों के पार्टनरशिप और भक्तों की अगाध श्रृद्धा के फलस्वरूप भंडार की राशि में अचानक वृद्धि होने लगी, जिसके बारे में कहा जाता है कि चढावे से चौगुना देते है.
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कोरोना काल में भी मंदिर की राशि निरंतर बढ़ती रही
यही कारण है कि कोरोना काल (Covid Period) में जहां देश और प्रदेश के अन्य मंदिरों में चढ़ावे की राशि काफी घट गई थी, वही इस मंदिर में चढ़ावे की राशि निरंतर बढ़ती चली गई. प्रतिमाह अमावस्या पूर्व खोले जाने वाले भंडार से इस माह मंदिर स्थापना से लेकर अब तक सर्वाधिक लगभग 8 करोड़ की राशि चढावे के रूप में निकली वही श्रृद्धालुओं द्वारा अपेक्षा से कई अधिक स्वर्ण और रजत आभूषण भी भेंट किये गये. भेंट राशि का आलम यह रहा कि तीन दिनों तक भंडार की राशि की गणना चलती रही.
देश के कोने-कोने से आते हैं श्रद्धालु
सांवलिया सेठ का मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था और विश्वास का प्रतीक है, जहां देश के कोने-कोने से श्रद्धालु आकर न केवल नतमस्तक होते हैं वरन् अपनी मनोकामना पूर्ण होने पर भंडार भरने के साथ ही कई उपहार भेंट कर सांवलिया सेठ का आभार भी जताते हैं.
Report- Deepak Vyas