राजस्थान का एक ऐसा मेला जहां पुरुषों की एंट्री पर है बैन, महिलाएं हैं यहां अपनी मर्जी की मालिक
इस मेले में पुरुषों की पूरी तरह से नो एंट्री होती है. जी हां हम बात कर रहे हैं उदयपुर में आयोजित होने वाले हरियाली अमावस्या के मेले की. मेले में आने वाली महिलाओं का कहना है कि यहां आकर उन्हें काफी मजा आता है.
Udaipur: आपने देश और दुनिया में आयोजित होने वाले विभिन्न तरह के मेलों के बारे में सुना होगा और उन्हें देखा भी होगा. ये मेले अपने आप में कई खूबियां लिए होते हैं लेकिन आज हम आपको एक ऐसे मेले के बारे में बताएंगे जो अपने आप में इस लिए अनूठा और विचित्र है क्योंकि यह मेला केवल महिलाओं के लिए ही आयोजित होता है. इस मेले में पुरुषों की पूरी तरह से नो एंट्री होती है. जी हां हम बात कर रहे हैं उदयपुर में आयोजित होने वाले हरियाली अमावस्या के मेले की.
इस मेले में पुरुषों की पूरी तरह से नो एंट्री
झीलों का शहर और राजस्थान का कश्मीर उदयपुर जो अपने आप में कई खूबियां लिए हुए हैं. यह खूबियां इसलिए भी है क्योंकि यहां पर आयोजित होने वाले तीज और त्योहार का अलग ही रूप और रंगत देखने को मिलती है. कुछ ऐसी ही रंगत यहां आयोजित होने वाले हरियाली अमावस्या के मेले की भी है जो रियासत काल से आयोजित हो रहा है और उसकी रंगत हर साल बढ़ती जा रही है. इस मेले में मर्दों की एंट्री नहीं होती है. इस मेले में महिलाओं को रोकने टोकने वाला कोई नहीं होता, वो यहां अपनी मर्जी की मालिक होती है.
महाराणा फतेह सिंह ने वर्ष 1899 में इस मेले की शुरुआत की
दरअसल मेवाड़ के तात्कालिक महाराणा फतेह सिंह ने वर्ष 1899 में हरियाली अमावस्या के दिन इस मेले की शुरुआत की थी. यह मेला इसलिए आयोजित किया गया था क्योंकि उस समय फतेहसागर पहली बार छलका था. उस समय बड़ी संख्या में लोग मेले में पहुंचे थे. इसी को लेकर उसकी पत्नी महारानी बख्तावर कुंवर ने महाराणा फतेह सिंह से दूसरे दिन भी इस मेले को आयोजन करने की मंशा जाहिर करते हुए कहा कहा इसमें केवल महिलाओं को ही प्रवेश मिले. महाराणा फतेह सिंह ने बख्तावर कुमार की इस इच्छा पर हामी भर दी. दूसरे दिन ऐतिहासिक सहेलियों की बाड़ी पर केवल सखियों के लिए इस मेले को आयोजित किया गया. इसके बाद से हर साल हरियाली अमावस्या का मेला आयोजित किया जाने लगा और यह मेला मेवाड़ के प्रमुख त्योहारों का हिस्सा बन गया.
मेले में केवल महिलाओं को ही प्रवेश मिलता है
लगभग सवा सौ साल बाद भी रियासत काल से चली आ रही परंपरा बदस्तूर जारी है, और हरियाली अमावस्या के दूसरे दिन यहां आयोजित होने वाले मेले के दूसरे दिन केवल महिलाओं को ही प्रवेश दिया जाता है. समय के साथ साथ इस मेले में कई बदलाव हुए हैं. जिससे इसका आकर्षण बढ़ता गया और इसे बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयास किया जाता है. वर्तमान समय में नगर निगम की ओर से इस मेले का आयोजन किया जाता है. सहेलियों की बाड़ी और फतेहसागर पर आयोजित होने वाले इस मेले में झूले और कई तरह की दुकानें लगाई जाती है. जहां आने वाली महिलाएं झूला झूलने के साथ जमकर खरीदारी करने का लुफ्त उठाती है.
मेले में उदयपुर के अलावा अन्य जिलों से महिलाओं की भारी भीड़ उमड़ती है
हरियाली अमावस्या के मेले की बात करें तो उदयपुर ही नहीं संभाग के अन्य जिलों के महिलाओं को भी इस दिन का खास इंतजार रहता है. यही कारण है कि मेला शुरू होने के साथ ही सुबह से ही यहां पर महिलाओं की भारी भीड़ दिखने लगती हैं जो दिन बढ़ने के साथ ही बढ़ती जाती है. यहां आने वाली महिलाएं मेले में जमकर मस्ती करती है. महिलाओं के जीवन में यह एक ऐसा दिन होता है कि जब वह शहर के दो प्रमुख पर्यटन स्थल सहेलियों की बाड़ी और फतहसागर पर जमकर मौज मस्ती कर सकती हैं. उन्हें रोकने टोकने वाला कोई नहीं होता.
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यहां उन्हें रोकने टोकने वाला कोई नहीं होता
मेले में आने वाली महिलाओं का कहना है कि यहां आकर उन्हें काफी मजा आता है. मेले का आकर्षण बढ़ाने के लिए नगर निगम की ओर से यहां पर विभिन्न प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया जाता है. मेले मेंआने वाली महिलाओं का कहना है कि भले ही आज महिलाओं को बराबरी का दर्जा देने की बात कही जाती हो लेकिन मेवाड़ में तो रियासत काल से ही महिलाओं को बराबरी का दर्जा और उन्हें आगे बढ़ाने के प्रयास किए जाते रहे हैं.
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