Chittorgarh: तीनों रूपों में समिद्धेश्वर महादेव हैं विराजमान, पूरी करते हैं हर इच्छा
विजय स्तम्भ परिसर स्थित समिद्धेश्वर महादेव मंदिर (Sammideshwar Temple), जहां इनके तीनों स्वरूप ब्रह्मा, विष्णु, महेश त्रिमूर्ति के रूप में विराजमान हैं.
Chittorgarh: महाराष्ट्र के मुम्बई एलिफेंटा गुफा (Elephanta Cave) के बाद विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक (World famous Historical Temple) चित्तौड़गढ दुर्ग (Chittorgarh fort) में ही भगवान शिव के एक साथ तीनों स्वरूप को देखा जा सकता है.
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यहां एक साथ ब्रह्मा, विष्णु, महेश त्रिमूर्ति स्वरूप में विराजमान हैं. माना जाता है कि इनके तीनों स्वरूपों को एक साथ दर्शन करने मात्र से ही जन्म-जन्मांतर के पाप मुक्त हो जाते हैं. ऐसे में पवित्र सावन मास में हर कोई श्रद्धालु मनचाहा वरदान पाने के लिए यहां दूर-दूर से आते हैं. यहां आने वाले में विदेशी सैलानियों की भी लंबी कतार देखने को मिल रही हैं. हर-हर महादेव के नारों से पूरा शहर भक्तिमय हो रहा है.
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समिद्धेश्वर महादेव मंदिर में मनोकामना होती हैं पूर्ण
विजय स्तम्भ परिसर स्थित समिद्धेश्वर महादेव मंदिर (Sammideshwar Temple), जहां इनके तीनों स्वरूप ब्रह्मा, विष्णु, महेश त्रिमूर्ति के रूप में विराजमान है. जहां वर्षभर और सावन में बड़ी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटकों सहित श्रृद्धालु दर्शन के लिये आते हैं. मंदिर के प्रवेश द्वार पर काला पत्थर लगाया गया है. देश में इस प्रकार के दो ही मंदिर है. पहला महाराष्ट्र के एलिफेंटा (Elephanta Camp) और दूसरा चित्तौड़ दुर्ग पर. तीन प्रवेश द्वारों युक्त इस मंदिर में अर्ध मंडप, अलंकृत सभा मंडप, अंतराल और विशाल गर्भगृह है. मंदिर के गर्भगृह में शिव जी की विशाल त्रिमुखी मूर्ति स्थापित है, जो त्रिगुणों का उनके तीन रूपों का प्रतीक है. मुख्य द्वार के सामने नंदी विराजित हैं. मंदिर के बाहर अलौकिक मूर्तिया शिल्पांकित की गई हैं, जिन्हें देख कर यहां आने वाले पर्यटक अभिभूत रह जाते हैं. कहा जाता है कि सच्चे मन से यहां जो भी पूजा करता है भगवान शिव उसकी मनोकामना अवश्य पूरी करते हैं.
महाराणा मोकल ने 1428 ई. में मंदिर का करवाया जीर्णोद्धार
मध्यप्रदेश के परमार वंश (Parmar Vansh) के राजा भोज (Rajabhoj) ने यह मंदिर 11वीं शताब्दी (Eleventh Century) में बनवाया था. चालुक्य राजा कुमार पाल ने अजमेर में राजा अरण पर विजय प्राप्त कर इस मंदिर में पूजा अर्चना की. यह मंदिर वास्तुशास्त्र के हिसाब से बना हुआ है. मंदिर की नींव कमल के फूल की भांति नक्शे पर रखी गई हैं. मूर्ति की स्थापना पहले, जबकि मंदिर निर्माण बाद में हुआ. गर्भगृह की दीवार नौ फीट आकार के एक ही पत्थर में बनी है. भगवान शंकर की त्रिमूर्ति का निर्माण किया गया है. 1303 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी ने दुर्ग को जीत कर इसे अपने बेटे खिज्रखा़न को सौंप दिया था. जिसने दुर्ग के मंदिरों की प्रतिमाएं खंडित कर दी थी, जिसमें समिद्धेश्वर महादेव मंदिर भी था. बाद में महाराणा मोकल ने 1428 में मंदिर का जीर्णोद्धार करवाकर प्राण प्रतिष्ठा की. इसके बाद से ही मंदिर की सेवा पूजा होती आ रही है. मंदिर के अंदर पश्चिम द्वार के दोनों और दो शिलालेख हैं, जिनसे इस मंदिर के 11वीं शताब्दी के होने की पुष्टि होती है.
दुनिया में मात्र दो जगहों पर स्थापित हैं ये मंदिर
विश्व में सभी जगह भगवान शिव की प्रतिमा शिवलिंग के रूप में स्थापित है, लेकिन मात्र दो ही जगह त्रिमूर्ति के रूप में भगवान शिव की प्रतिमाएं स्थापित हैं, जिसमें से एक चित्तौड़ दुर्ग पर सिद्धेश्वर महादेव के नाम से विश्व प्रसिद्ध होने के साथ ही आलौकिक और अद्भुत प्रतिमा सभी को आकर्षित करती है.
Reporter- Deepak vyas