Raksha Bandhan Festival: गाजियाबाद से 30 किलोमीटर दूर स्थित मुरादनगर के सुराना गांव में 12वीं सदी से ही लोग रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाते हैं. इस गांव की बहू तो अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं, लेकिन इस गांव की लड़कियां रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाती. इतना ही नहीं इस गांव के लोग अगर कहीं दूसरी जगह भी जाकर बस जाते हैं तो भी रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाते. गांव के लोग इस दिन को काला दिन भी मानते हैं. 


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छाबड़िया गोत्र के चंद्रवंशी अहीर क्षत्रियों का है गांव


सुराना गांव पहले सोनगढ़ के नाम से जाना जाता था. सुराना छाबड़िया गोत्र के चंद्रवंशी अहीर क्षत्रियों का एक विशाल ठिकाना है. राजस्थान के अलवर से निकलकर छाबड़िया गोत्र के अहीरों ने सुराना में छोटी सी जागीर स्थापित कर गांव बसाया. ग्राम का नाम सुराना यानी 'सौ' 'राणा' शब्द से मिलकर बना है. ऐसा माना जाता है कि, जब अहीरों ने इस गांव को आबाद किया तब वे संख्या में सौ थे और राणा का अर्थ होता है योद्धा, इसीलिए उन सौ क्षत्रीय अहीर राणाओं के नाम पर ही इस ठिकाने का नाम सुराना पड़ गया. 


करीब 22 हजार है आबादी


गांव की कुल आबादी 22 हजार के करीब है, इसमें अधिकतर निवासी रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाते. क्यूंकि वह छाबड़िया गौत्र से हैं और वह इस दिन को अपशगुन मानते हैं. हालांकि जो लोग बाद में यहां निवास करने आए वह भी गांव की इस परंपरा को मानने लगे हैं. इसके साथ ही गांव में हर घर से एक व्यक्ति सेना या पुलिस में अपनी सेवा दे रहा है और हर साल उनके हाथों की कलाई सुनी रह जाती है.


पूरा गांव नहीं मनाता रक्षाबंधन


गांव निवासी छाबड़िया राहुल सुराना ने बताया कि, छाबड़िया गौत्र के कोई भी व्यक्ति रक्षाबंधन का त्योहार नहीं मनाता है. सैकड़ों साल पहले राजस्थान से आए पृथ्वीराज चौहान के वंशज सोन सिंह राणा ने हिंडन नदी के किनारे डेरा डाला था. जब मोहम्मद गौरी को पता चला कि सोहनगढ़ में पृथ्वीराज चौहान के वंशज रहते हैं, तो उसने रक्षाबंधन वाले दिन सोहनगढ़ पर हमला कर औरतों, बच्चों, बुजुर्ग और जवान युवकों को हाथियों के पैरों तले जिंदा कुचलवा दिया.


मोहम्मद गोरी ने कई बार किए आक्रमण


गांव के लोगों के मुताबिक, इस गांव में मोहम्मद गोरी ने कई बार आक्रमण किए, लेकिन हर बार उसकी सेना गांव में घुसने के दौरान अंधी हो जाती थी. क्योंकि देवता इस गांव की रक्षा करते थे. वहीं रक्षाबंधन के दिन देवता गंगा स्नान करने चले गए थे, जिसकी सूचना मोहम्मद गौरी को लग गई और उसी का फायदा उठाकर मोहम्मद गोरी ने इस गांव पर हमला बोल दिया था.


दोबारा ऐसा बसा गांव


एक अन्य गांव निवासी महावीर सिंह यादव ने बताया, सन 1206 में रक्षाबंधन के दिन हाथियों द्वारा मोहम्मद गौरी ने गांव में आक्रमण किया था. आक्रमण के बाद यह गांव फिर बसा. क्योंकि गांव की रहने वाली एक महिला 'जसकौर' उस दिन अपने पीहर (अपने घर) गई हुई थी, इस दौरान जसकौर गर्भवती थी, जो कि गांव में मौजूद न होने के चलते बच गई. बाद में जसकौर ने दो बच्चों 'लकी' और 'चुंडा' को जन्म दिया और दोनों बच्चे ने बड़े होकर वापस सोनगढ़ को बसाया.


त्योहार मनाने पर हो जाता है अपशगुन


हालांकि गांव के कुछ लोग ऐसे हैं जिनके घर रक्षाबंधन के दिन बेटा या उनके घर में पल रही गाय को बछड़ा हुआ. इसके बाद उन्होंने फिर त्योहार को मनाने का प्रयास किया, लेकिन घर में हुई दुर्घटना के चलते फिर कभी किसी ने रक्षाबंधन नहीं मनाया. गांव की प्रधान रेनू यादव बताती हैं कि, गांव में पुरानी परंपरा है कि यहां रक्षाबंधन नहीं मनाया जाता. छाबड़िया गौत्र की कुल आबादी करीब 8 हजार है जो यह रक्षाबंधन नहीं मनाते. इसके अलावा बाहर से बसी कुछ अन्य गौत्र उस त्योहार को मना लेते हैं.


(इनपुट- आईएएनएस)


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