नई दिल्ली: राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने शुक्रवार को कहा कि न्यायपालिका निहित स्वार्थ वाले उन लोगों के प्रयासों से बचाव कर रही है जो जनहित याचिका का दुरुपयोग कर निर्णय लेने की वैध प्रक्रिया में अड़चन लाने की कोशिश करते है. 


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राष्ट्रपति ने मुकदमों में देरी करने के लिए अक्सर बार बार मांगे जाने वाले स्थगन पर भी चिंता प्रकट की क्योंकि इससे ‘गरीबों और निर्धन वादियों पर न्याय कर’ के रुप में असुविधा पैदा होती है.


‘लॉ, जस्टिस एंड ज्यूडिसियल पावर: जस्टिस पी एन भगवती एप्रोच’ नामक पुस्तक के विमोचन के मौके पर राष्ट्रपति ने कहा कि जनहित याचिका की परंपरा कानून की प्रैक्टिस और न्याय देने की व्यवस्था के प्रति भारतीय योगदान है जिसके लिए ‘न्यायमूर्ति भगवती के प्रति एक हद तक हमारा आभार बनता है.’ 


उन्होंने कहा कि ऐसा अकारण नहीं है कि 12 जुलाई, 1985 से 20 दिसंबर, 1986 तक देश के प्रधान न्यायाधीश रहे न्यायमूर्ति भगवती को भारत में जनहित याचिका वाद का जनक कहा जाता है.


राष्ट्रपति ने कहा कि पोस्टकार्ड पर भी लिखकर दायर की गयी याचिका का संज्ञान लेने में देश के शीर्ष न्यायालय के आदर्शवाद और सरलता प्रशंसा के पात्र हैं. उन्होंने कहा, ‘इस प्रथा के दूरगामी प्रभाव हुए. उसने अदालतों को सुने जाने के अधिकार की संकीर्ण परिभाषा में बंधने से नहीं रोका और उसे प्रभावित व्यक्ति के मित्र, किसी अन्य संबंधित व्यक्ति या संस्थान को उस नागिरक की ओर से अदालत की ओर रुख करने की अनुमति दी जिसे इंसाफ से वंचित कर दिया गया है. ’


राष्ट्रपति ने कहा,‘(लेकिन) ऐसे भी मौके आते हैं जब जनहित याचिका पेशेवर निहित स्वार्थ के लिए या निर्णय लेने की प्रक्रिया में अड़चन पैदा करने के लिए ऐसे प्रावधानों का दुरूपयोग कर सकते हैं. मैं खुश हूं कि न्यायपालिका ऐसे प्रयासों से बचा रही है.’


(इनपुट - भाषा)