RSS Chief Mohan Bhagwat Masjid-Madrasa Visit: राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के दूसरे सर संघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर ने वर्ष 1966 में राष्ट्रवाद और एक राष्ट्र के विचार पर बंच ऑफ थॉट नाम से एक पुस्तक लिखी थी. इसमें उन्होंने राष्ट्रवाद से लेकर धर्मसत्ता तक के विषय पर अपने विचार लिखे थे. वो मानते थे कि 'देश को बाहरी दुश्मन से ज्यादा, आंतरिक दुश्मनों से खतरा है. उनके मुताबिक भारत की आतंरिक सुरक्षा को 3 खतरे हैं- पहला है मुस्लिम, दूसरा है ईसाई और तीसरा है कम्युनिस्ट यानी वामपंथी.


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मस्जिद और मदरसे में पहुंचे संघ प्रमुख


संघ की लाइन और लेंथ, इसी किताब में लिखे गए विचारों को इर्द गिर्द रहती है. संघ को आज एक हिंदुत्ववादी संगठन माना जाता है. इस छवि के पीछे भी गोलवलकर की यही किताब है. लेकिन कई सालों बाद आज संघ इस विचारधारा से कुछ अलग करने की कोशिश कर रहा है. संघ प्रमुख मोहन भागवत और डॉ. उमर अहमद इलियासी के बीच गुरुवार को एक खास मुलाकात हुई. मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) दिल्ली के कस्तूरबा गांधी मार्ग पर स्थित एक मस्जिद में पहुंचे, वहां उन्होंने मुस्लिम नेताओं से करीब एक घंटे तक अलग अलग मुद्दों पर बात की. इस मीटिंग में संघ के प्रचारक इंद्रेश कुमार भी थे और इन्होंने इस विजिट का मकसद भी बताया.


ये शायद पहली बार है जब मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने किसी मस्जिद में जाकर, मुस्लिम नेताओं से बात की थी. ये घटना, संघ की उस छवि से बिल्कुल नहीं मिलती, जिसमें उसे इस्लाम विरोधी कहा जाता है. ये गोलवलकर के उस विचार से भी मेल नहीं खाती, जिसमें भारत के तीन आंतरिक दुश्मनों में मुस्लिम समाज को भी गिना जाता है. ये एक ऐसा बदलाव है, जिससे संघ को फॉलो करने वाले भी हैरान हैं.


ये हैरानी तब और बढ़ गई, जब मुस्लिम नेताओं से मुलाकात के बाद मोहन भागवत, पुरानी दिल्ली के एक मदरसे में पहुंच गए. यहां उन्होंने बच्चों से बात की. मोहन भागवत के मदरसा आने के बाद हमने मदरसे के मोहतमिम यानी हेड मास्टर महमूद हसन से बात की.


RSS में आ रहे बदलावों से लोग हैरान


सरसंघचालक मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) के इस दौरे को लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं. लोग ये जानना चाहते हैं कि अचानक ऐसा क्या हुआ, कि मोहन भागवत, मुस्लिम नेताओं के मन की बात जानने पहुंच गए. जिन मदरसों पर सर्वे की बात से मुस्लिम समाज नाराज है, उसी समाज के साथ संघ, दोस्ती की नई पहल करता हुआ नजर आ रहा है. ये कुछ ऐसी विरोधाभासी घटनाएं हैं, जिसने हैरान किया है. हलांकि मोहन भागवत के इस दौरे को लेकर मुस्लिम धर्मगुरुओं और मौलिवियों के विचार अलग हैं, और इसे बदलाव के प्रतीक के तौर पर देख रहे हैं.


मोहन भागवत ने इससे पहले मुस्लिम बुद्धिजीवियों की एक 5 सदस्यीय टीम से भी बात की थी. इस टीम में देश के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई क़ुरैशी, दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल नजीब जंग, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के पूर्व कुलपति ज़मीरुद्दीन शाह, राष्ट्रीय लोक दल के उपाध्यक्ष शाहिद सिद्दिक़ी और कारोबारी सईद शेरवानी शामिल थे. इस बैठक में मुस्लिम समाज के जितने भी प्रतिनिधि थे, वो कई मौकों पर संघ की विचारधारा का विरोध करते रहे हैं.


इस मीटिंग में देश के कुछ खास मुद्दों पर चिंता व्यक्ति की गई. संघ प्रमुख ने क़ाफिर, गोहत्या और जिहाद जैसे मुद्दों पर चिंता जताई, तो वहीं मुस्लिम पक्ष की तरफ़ से देश में बढ़ रहे अविश्वास के माहौल, और मुसलमानों को निशाना बनाए जाने की शिकायत की गई थी. इस मुलाकात, और इसमें हुई बात को लेकर राजनीतिक जमात हैरान है. इस बैठक को लेकर कई तरह की प्रतिक्रियाएं भी सामने आईं. 


सभी भारतीयों को एक वंशज मानता है संघ


किसी भी बड़े मंच पर मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने हमेशा ही राष्ट्रवाद और भारतीयता का जिक्र किया है. यही नहीं वो सभी भारतीयों को एक ही पूर्वज के वशंज बताते रहे हैं. जुलाई 2021 में उन्होंने अपने एक संबोधन में कहा था कि भारत में रहने वाले सभी लोगों का DNA एक ही है. उनका इशारा यही था कि भारत में रहने वाला नागरिक, चाहे मुस्लिम हो, ईसाई हो या फिर किसी और धर्म का हो, उसका डीएनए एक ही है. 


मोहन भागवत ने कई बार संघ के विचारों से अलग, अपने विचार दिए हैं. जून 2022 में उन्होंने एक ऐसा बयान दिया था, जिसके बाद हिंदू समाज में भी उनका खूब विरोध हुआ. उन्होंने ज्ञानवापी और मथुरा मस्जिद विवाद को लेकर एक बड़ा बयान दिया था. हिंदू समुदाय इन दोनों जगहों पर मंदिर होने का दावा कर रहा है. लेकिन मोहन भागवत ने कह दिया था कि 'संघ अब आगे से मंदिरों को लेकर कोई आंदोलन नहीं करेगा.'


संघ प्रमुख (Mohan Bhagwat) के इन विचारों को लेकर ये कहा गया कि संघ की नीतियों में बदलाव आ रहा है. इन बयानों का काफी विश्लेषण भी किया गया, अलग-अलग मायने निकाले गए. लेकिन इन बयान से ही स्पष्ट था कि संघ अब खुद को किसी वैचारिक दायरे में सीमित नहीं रखना चाहता है.


अलग-अलग समुदायों से मिलने का पुराना इतिहास


संघ का दूसरे समुदाय के लोगों से मिलने का इतिहास पुराना है. करीब ढाई दशक पहले पूर्व सर संघकार्यवाह के.एस सुदर्शन के नेतृत्व में ये फैसला लिया था. उस वक्त दूसरे समुदाय के प्रमुख लोगों और संस्थानों के साथ संवाद स्थापित किए गए थे. वर्ष 2000 में संघ प्रमुख बनने के बाद के.एस सुदर्शन खुद भी अलग अलग समुदाय के लोगों से मिलते रहे थे.


ये वो दौर था जब संघ ने राष्ट्रीय मुस्लिम मंच का भी गठन किया था. इंद्रेश कुमार को उसका संयोजक बनाया गया था. ये मंच, संघ और मुस्लिम समुदाय के बीच किसी ब्रिज का काम करता है. अब संघ प्रमुख मोहन भागवत की ये मुलाकातें भी उसी प्रक्रिया का ही हिस्सा मानी जा रही हैं. अब आपके मन में भी ये प्रश्न जरूर उठ रहा होगा कि आखिर RSS के इस तरह के कार्यक्रमों का मकसद क्या है.


- इसके जरिए संघ अपने खिलाफ प्रचारित किए गए प्रोपेगेंडा और भ्रम को दूर करना चाहता है.


- संघ ये स्पष्ट करना चाहता है कि वो कोई धार्मिक संगठन नहीं है, बल्कि वो एक सांस्कृतिक और राष्ट्रवादी संगठन है, जिसके लिए राष्ट्र, धर्म से ऊपर है.


- इसीलिए मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) इन मुलाकातों में हिन्दू, हिंदुस्तान और हिंदुत्व को लेकर फैलाई जा रही ग़लतफ़हमियों को दूर करते नजर आते हैं.


- उनके पिछले कई भाषणों का सार यही रहा है कि भारत ने सभी सभी धर्मों को स्वीकार किया. उनके प्रतीकों को स्वीकार किया और इसलिए दूसरे समुदायों को भी हिन्दुओ की भावनाओं और हिंदुस्तान की अपेक्षाओं को समझना चाहिए.


अब सबको साथ लेकर चलने की कोशिश?


गुरुवार की उनकी मुलाकात बताती है कि संघ अब गोलवलकर के 'बंच ऑफ़ थॉट' से आगे बढ़ चुका है और अब वो दूसरे समुदायों को खतरा मानकर उन्हे अलग थलग करने की जगह उन्हे साथ लेकर चलना चाहता है. आज तरक्की की रेस में दौड़ रहे भारत को इसी सहयोग और साझेदारी की जरूरत है. लेकिन इसके लिए कट्टरपंथ और चरमपंथ का रास्ता छोड़कर हर किसी को भारत के लिए एकजुट होना होगा.


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