Jammu Kashmir, Rohingya: जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने केंद्र सरकार से केंद्र शासित प्रदेश में रोहिंग्याओं के भाग्य का निर्धारण करने के लिए एक स्पष्ट नीति बनाने की अपील की है. उन्होंने इस स्थिति को 'मानवीय विवाद' बताया है. अब्दुल्ला ने हाल ही में कहा,'केंद्र सरकार को तय करना चाहिए कि उनके बारे में क्या करना है. अगर उन्हें वापस भेजा जा सकता है, तो उन्हें वापस भेजा जाना चाहिए, लेकिन अगर हम उन्हें वापस नहीं भेज सकते, तो हम उन्हें भूखा या ठंड से मरने नहीं दे सकते.' मुख्यमंत्री ने आगे कहा,'वे इंसान हैं और उनके साथ जानवरों जैसा व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए.' 


साजिश के तहत बदले जा रहे डेमोग्राफिक हालात


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

उमर अब्दुल्ला के ये बयान देश के कई हिस्सों में बसे रोहिंग्या शरणार्थियों पर बढ़ती बहस के बीच आया है. जिसमें कुछ वर्ग उन्हें तत्काल बाहर करने की मांग कर रहे हैं, तो कुछ बसे रहने की बात कह रहे हैं. इसी जिद्दोजहद के बीच इसपर एक्सपर्ट्स के बयान आने शुरू हो गए हैं. डिफेंस एक्सपर्ट्स कैप्टन अनिल ने रोहिंग्याओं को देश के लिए खतरा बताते हुए कहा कि उन्हें प्लान के तहत बसाकर जम्मू-कश्मीर के डेमोग्राफिक हालात को बदलने की कोशिश की जा रही है. 



'एंटी नेशनल एलिमेंट के तौर पर काम कर रहे रोहिंग्या'


कैप्टन अनिल ने कहा,'खास तौर पर जम्मू-कश्मीर के लिए रोहिंग्या का मुद्दा बहुत सीरियस है. म्यामांर से आकर भारत के आखिर में (जम्मू-कश्मीर) में बस रहे हैं, इसका मतलब इनको वेल ऑर्गनाइज तरीके यहां बसाया जा रहा है और डेमोग्राफिक कैरेक्टर बदलने की कोशिश की जा रही है.' उन्होंने आगे कहा,'ये लोग कई एंटी नेशनल एलिमेंट के तौर पर काम कर रहे हैं. पुलिस को भी इनकी शिनाख्त करने में परेशानी हो रही है. कैप्टन अनिल ने कहा कि इन सभी को इकट्ठा करके यहां से डिपोर्ट करना चाहिए.' अनिल ने आगे कहा कि कइयों ने आधार कार्ड बनवा लिए हैं, पानी की केक्शन लगवा लिए और यह बहुत गलत है. ऐसा होना जम्मू संभाग के लिए बड़ा संकट है. 


इन्हें हमारे भारत से कोई सहानुभूति नहीं: एसपी वेद


पूर्व जीजीपी एसपी वेद का कहना है,'इंसान को बुनियादी सुविधाएं देनी लेकिन गैरकानूनी ना हो.' वेद ने आगे कहा,'जो भी गैरकानूनी तौर पर भारत में दाखिल हुए हैं उनकी पहचान करनी चाहिए, चाहे वो रोहिंग्या हों या फिर बांग्लादेशी हों, साथ ही उन्हें उनके देश में वापस भेजना चाहिए.' एसपी वेद ने अमेरिका और यूरोप की मिसाल देते हुए कहा,'जिस तरह आज अमेरिका और यूरोप में घुसपैठियों की पहचान करके देश से निकाला जा रहा है और भारत भी वैसा ही करेगा.' वेद का कहना है कि इन लोगों को आपके देश से कोई सहानुभूति नहीं है. 



रोहिंग्याओं से मिले UNHCR के अफसर


अवैध रूप से बसे प्रवासियों को बिजली और पानी उपलब्ध कराया जाए या नहीं इसे लेकर हो रही बहस के बीच संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (UNHCR) के दो सदस्यीय दल ने यहां एक झुग्गी बस्ती में रोहिंग्या मुसलमानों से मुलाकात की. एक अधिकारी ने बुधवार को बताया कि वरिष्ठ संरक्षण अधिकारी तोमोको फुकुमुरा ने संरक्षण सहयोगी रागिनी त्राक्रू जुत्शी के साथ सोमवार को नरवाल के किरयानी तालाब इलाके में रोहिंग्या मुसलमानों और कुछ स्थानीय लोगों से मुलाकात की. 


'हम जान बचाने यहां आए हैं...'


रोहिंग्या शरणार्थी दिल मोहम्मद ने आईएएनएस से बात करते हुए एक सवाल के जवाब में कहा,'हम पढ़े-लिखे लोग नहीं हैं. हम अपनी जान बचाने के लिए यहां आए हैं. जो सरकार पानी और बिजली काटती है, वही सरकार पानी और बिजली देती भी है. जब यूएनएचसीआर ने हमें यहां बसाया था, तो हमारा इरादा किसी के लिए परेशानी बनने का नहीं था. हम ऐसा नहीं चाहते. हम अपने देश लौटने के लिए तैयार हैं और हम सरकार से इस मामले में कोई फैसला लेने की अपील करते हैं.



'हम यहां से चले जाएंगे...'


एक अन्य रोहिंग्या शरणार्थी मोहम्मद अमीन ने पानी और बिजली मुहैया कराने के लिए मुख्यमंत्री को धन्यवाद दिया. उन्होंने कहा,'हम यहां परेशानी खड़ी करने नहीं आए हैं, बल्कि परेशानी से बचने आए हैं. हम यहां स्थायी रूप से रहने के लिए नहीं आए हैं. जैसे ही हमारे वतन में हालात सामान्य हो जाएंगे, हम वापस जाने के लिए तैयार हैं.'


भारत में रोहिंग्याओं की तादाद कितनी है?


भारतीय गृह मंत्रालय के अंदाजे के मुताबिक भारत के लगभग 40,000 रोहिंग्या मुसलमान बिना किसी दस्तावेज के शरणार्थी के तौर पर रह रहे हैं. सरकार का दावा है कि उनमें से लगभग 10,000 जम्मू और कश्मीर में रहते हैं. जबकि बाकी दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान आदि में फैले हुए हैं. 


भारत में क्या शरणार्थियों को लेकर कानून?


भारतीय संविधान के अनुच्छेद- 21 में शरणार्थियों को उनके मूल देश में वापस नहीं भेजे जाने यानी ‘नॉन-रिफाउलमेंट’ (Non-Refoulement) का अधिकार शामिल है. नॉन-रिफाउलमेंट, अंतर्राष्ट्रीय कानून के अंतर्गत एक सिद्धांत है, जिसके अनुसार अपने देश से उत्पीड़न की वजह से भागने वाले लोगों को उसी देश में वापस जाने के लिये मजबूर नहीं किया जाना चाहिये. हालांकि यह सिर्फ शरणार्थियों को लेकर है, जबकि घुसपैठ करने वालों के खिलाफ अलग कार्रवाई होती है. 


घुसपैठियों को लेकर अलग है कानून


एक जानकारी के मुताबिक विदेशी अधिनियम 1946 के और पासपोर्ट (भारत में एंट्री) एक्ट 1920 में घुसपैठियों के लिए सजा का भी प्रावधान है. अगर कोई शख्स विदेशी एक्ट 1946 के तहत फर्जी पासपोर्ट पर हिंदुस्तान में रहता पाया जाता है तो उसे 2-8 वर्ष तक की सजा हो सकती है. साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है.