Luna 25 Crashed Reason: 11 अगस्त को रूस के लूना 25 ने चांद की सतह पर लैंडिंग के लिए उड़ान भरी थी. अगर सब कुछ सही रहा होता तो भारत के चंद्रयान-3 की लैंडिंग से एक दो दिन पहले उसे चांद की सतह पर उतरना था लेकिन वो क्रैश हो गया. लुना 25 के क्रैश होने की खबर ने 2019 के उस वाक्ये को याद दिलाया जब भारत का चंद्रयान 2 मिशन का कामयाब नहीं हो पाया था. चांद की सतह पर विक्रम लैंडर की हार्ड लैंडिंग हुई थी. अब सवाल यह है कि रूस जिसे अंतरिक्ष साइंस का मास्टर माना जाता है उसके मिशन में कब, कैसे और कौन सी खामी आई कि लूना-25 चांद की सतह तक पहुंच ही नहीं पाया. बता दें कि चांद के करीब पहुंच कर लुना 25 अपने रास्ते से भटका और क्रैश हो गया. 


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रास्ते से भटका और लूना 25 हो गया क्रैश


रूसी स्पेस एजेंसी का मानना था कि अत्याधुनिक तकनीक से लैस लूना अपने मकसद को हासिल करने में कामयाब होगा. अब जबकि लूना-25 क्रैश हो चुका है तो सबके मन में सवाल उठा कि क्रैश के पीछे की वजह क्या है. रूसी स्पेस एजेंसी रोसकॉसमॉस ने उस खास वजह का जिक्र भी किया है. रोसकॉसमॉस के मुताबिक मानवरहित रोबोट लैंडर चांद के बेहद करीब पहुंच कर अनियंत्रित हो गया और उसकी वजह से चांद की सतह से टकरा गया. लूना 25 के बारे में बताया जा रहा था कि वो चंद्रयान 3 की लैंडिंग से दो दिन पहले यानी कि 21 अगस्त को चांद की सतह पर उतरता लेकिन 19 अगस्त को हादसा हो गया. इस तरह से चंद्रयान 3 से लूना 25 हार गया.


रूस को बड़ा झटका


चांद की सतह पर पहुंचने के लिए 47 साल बाद रूस ने लूना 25 को लांच किया था. कई मायनों में लूना 25 को चंद्रयान 3 से बेहतर बताया जा रहा था. जैसे कि लूना का वजन महज 1750 किलो था. कम वजह होना ही इसकी बड़ी खासियत बताई जा रही थी. कम वजन की वजह से यह चांद की तरफ सीधे बढ़ रहा था जबकि चंद्रयान 3 वजन की वजह से घुमावदार रास्तों के जरिए अपने सफर को तय कर रहा था. लूना 25 का क्रैश होना ना सिर्फ रूस की तकनीकी दक्षता पर सवाल खड़ा कर रहा है बल्कि आर्थिक तौर पर बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है.


23 अगस्त को चंद्रयान-3 की होनी है लैंडिंग


लूना 25 के क्रैश होने के बाद सामान्य सी शंका हर किसी के मन में है चंद्रयान-3 का क्या होगा लेकिन सभी शंकाओं को इसरो ने दूर किया है. इसरो का मानना है कि हमारा मिशन सही दिशा में सही तरीके से आगे बढ़ रहा है. अब तक के सभी सफल चरणों के बाद यह कहा जा सकता है कि हमारे मिशन को किसी तरह का खतरा नहीं है. चंद्रयान को चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतारा जाना है. चांद का यह जगह हमेशा अंधेरे में डूबा रहता है और गड्ढों की वजह से पानी होने की संभावना है. इसरो का कहना है कि हमारे मिशन से चांद की सतह के बारे में और जानकारी मिलेगी और उसका फायदा आने वाले समय में हो सकता है.