यूक्रेन में फंसे भारतीयों की आपबीती, खाने-पैसे का संकट; बंकर में रहने को मजबूर
यूक्रेन संकट में भारतीय कई तरह की परेशानी से जूझे रहे हैं. यहां पर भोजन और नकदी की समस्या ने लोगों की दिक्कत बढ़ा दी है. कई लोगों ने फोन पर बातचीत के दौरान बताया कि किन-किन परेशानी का लोगों को सामना करना पड़ रहा है.
नई दिल्ली: रूस द्वारा यूक्रेन पर की जा रही सैन्य कार्रवाई की वजह से वहां (यूक्रेन) में फंसे भारतीय छात्र भोजन और नकदी के संकट से जूझ रहे हैं. खारविक शहर में फंसी केरल की 21 वर्षीय छात्रा शना शाजी ने 'भाषा' को बताया, ‘हमारे पास केवल आज के लिए खाना बचा’ उन्होंने आगे बताया कि उन्होंने मेट्रो बंकर में शरण ली है. शाजी, मेडिकल की छात्रा हैं और रूस द्वारा सैन्य कार्रवाई किए जाने के बाद से उसने और अन्य दोस्तों ने बृहस्पतिवार से ही मेट्रो स्टेशन में शरण ली हुई है.
सड़क पर बाहर निकलने से डरी मेडिकल छात्रा
बाहरी दुनिया से केवल मोबाइल फोन के जरिये जुड़ी शाजी ने बताया कि वह नहीं जानती कि बाहर क्या हो रहा है. उन्होंने बताया कि यह सोचकर की हालात थोड़े बेहतर हुए हैं, उन्होंने मेट्रो स्टेशन से बाहर निकलने की कोशिश की, लेकिन सड़क पर सैन्य वाहनों को देखते के बाद वापस स्टेशन के भीतर चली आईं. उल्लेखनीय है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा अपने पूर्वी पड़ोसी देश के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की घोषणा के बाद से यूक्रेन के शहरों में अफरा-तफरी का माहौल है.
बंकर में मौजूद लोग हो रहे हताश
मेडिकल पाठ्यक्रम में चौथे साल की छात्रा शाजी ने कहा कि खाद्य सामग्री की कमी के बाद ‘बंकर’ में मौजूद लोग हताश हो रहे हैं. उसने बताया, ‘जब मैं मेट्रो स्टेशन में दाखिल हुई तो सोचा जल्द ही मुझे निकाल लिया जाएगा, लेकिन तीन दिन बीत चुके हैं’ शाजी ने बताया, ‘हमे खाने के सामान की आपूर्ति नहीं हो रही है. हम अब क्या करेंगे? एटीएम से नकद की निकासी नहीं हो रही है.’
कई लोग पैदल ही सीमा की और बढ़ रहे
उन्होंने दावा किया कि मेट्रो स्टेशन के भीतर अधिकतर लोग भारतीय नागरिक हैं और प्लेटफार्म पर ही गद्दे और कंबल बिछा कर सो रहे हैं, लोग सुरक्षा के लिहाज से पालियों में बारी-बारी सो रहे हैं. यूक्रेन में कई लोग बंकर में फंसे हैं जबकि कई पैदल ही सीमा की ओर बढ़ रहे हैं. शाजी ने बताया कि उनके कुछ दोस्त पोलैंड के लिए रवाना हुए है. उन्होंने बताया, ‘मेरा उनसे संपर्क टूट गया है. मुझे नहीं पता वे कहा हैं. एक दोस्त ने संदेश भेजा कि वह पोलैंड के लिए रवाना हो रहे हैं, उसके बाद से कोई संपर्क नहीं है.
मदद का इतंजार कर रहे लोग
मदद का इंतजार नहीं करने का फैसला करने वालों में 19 वर्षीय मनोज्ञा बोरा भी है. वह अपने दोस्तों के साथ पश्चिमी यूक्रेन के लविव शहर से सीमा के लिए रवाना हुई. बोरा ने बताया, ‘भारतीय दूतावास के परामर्श के आधार पर शुक्रवार 11 बजे पोलैंड के पहले सीमा प्रवेश मार्ग रवा-रुस्का पहुंची. हम आठ किलोमीटर पैदल चलकर पहुंचे थे, लेकिन उन्होंने सीमा पार करने की अनुमति नहीं दी, जिसके बाद हम लौट आए और दूसरे शहर करीब 18 से 20 किलोमीटर पैदल चलकर गए. उसके बाद हम आश्रय पर रुके. हम अब सीमा पर पहुंच चुके हैं’ बोरा भी चिकित्सा की छात्रा हैं और मूल रूप से उत्तराखंड की हैं.
घबराहट में अधिक खरीदारी कर रहे लोग
बोरा ने बताया कि वह यह देखकर स्तब्ध रह गई कि बड़ी संख्या में लोग सीमा पार करने के लिए वहां मौजूद थे. बोरा के मित्र और मेडिकल पाठ्यक्रम में पहले वर्ष के छात्र कनिष्क ने बताया कि रूसी हमले के पहले दिन शहर में अफरा-तफरी का माहौल था. उसने बताया कि घबराहट में लोग अधिक खरीदारी कर रहे हैं जिससे सुपरमार्केट में सामान खत्म है. विदेशी नागरिक ज्यादा समस्या का सामना कर रहे हैं, क्योंकि एटीएम से नकद निकासी नहीं हो रही. कनिष्क ने कहा कि अन्य शहरों के मुकाबले यहां स्थिति थोड़ी सी बेहतर है.
(इनपुट-भाषा)
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