Same-Sex Marriage: केंद्र सरकार ने समलैंगिक विवाह (Same-Sex Marriage) को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से मान्यता देने की मांग को लेकर दायर याचिकाओं को खारिज करने की मांग की है. केंद्र सरकार ने नई एप्लीकेशन सुप्रीम कोर्ट में दाखिल कर इस बारे में दायर याचिकाओं की मेंटेनेबिलिटी पर सवाल उठाए है और कहा है कि इस पर कोई फैसला लेना विधायिका का काम है, कोर्ट का नहीं.


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लोकतांत्रिक इच्छा को नकारा नहीं जाना चाहिए: सरकार


केंद्र सरकार (Centre Govt) ने कहा है कि विधायिका की अंततः जवाबदेही नागरिकों के प्रति है. पर्सनल लॉ के मामलों में भी विधायिका जनता की इच्छा के अनुसार कार्य करने के लिए बाध्य है. सामाजिक सहमति विवाह की जिस विशेष परिभाषा का समर्थन करती है, विधायिका विवाह के उसी रूप को स्वीकृति देकर लोगों की इच्छा का पालन करने के अपने कर्तव्य को पूरा कर रही है. किसी अदालती आदेश द्वारा इस स्पष्ट लोकतांत्रिक इच्छा को नकारा नहीं जाना चाहिए.


मौजूदा स्थिति में नहीं किया जा सकता परिवर्तन: केंद्र


केंद्र सरकार (Centre Govt) का कहना है कि यह माना जाता है कि कानून बनाने के मामले में संसद को पता होता है कि लोगों के सर्वोत्तम हित में क्या है और पर्सनल लॉ के मामले में यह बात और ज्यादा लागू होती है. कोई भी नया फैसला कितना भी नेकनीयत से क्यों न लिया गया हो, ऐसा नहीं लगना चाहिए कि वह इस मूल सिद्धांत का उल्लंघन कर रहा है. न्यायिक आदेश से मौजूदा स्थिति में परिवर्तन नहीं किया जा सकता है और किसी भी बदलाव का सबसे उचित तरीका विधायिका द्वारा लिया गया निर्णय होगा.


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