Saurabh Kirpal: क्या देश को मिलेगा पहला समलैंगिक जज? SC कॉलेजियम ने दोबारा भेजी सिफारिश
Supreme Court Gay Judge: अगर केंद्र सरकार कॉलेजियम की सिफारिश को मंजूरी दे देती है तो देश के संवैधानिक इतिहास में पहली बार ऐसा होगा, जब कोई समलैंगिक जज बनेंगे. समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चली हुई सुनवाई में भी सौरभ कृपाल कई याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए थे
Supreme Court Collegium: सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने केंद्र सरकार की आपत्ति को खारिज करते हुए फिर से वरिष्ठ वकील सौरभ कृपाल की दिल्ली हाईकोर्ट के जज के तौर पर नियुक्ति के लिए सिफारिश भेजी है. पूर्व चीफ जस्टिस बीएन कृपाल के बेटे सौरभ कृपाल गे ( समलैंगिक) हैं और उनके पार्टनर स्विस नागरिक हैं.
अगर केंद्र सरकार कॉलेजियम की सिफारिश को मंजूरी दे देती है तो देश के संवैधानिक इतिहास में पहली बार ऐसा होगा, जब कोई समलैंगिक जज बनेंगे. समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चली हुई सुनवाई में भी सौरभ कृपाल कई याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए थे
सरकार के ऐतराज की वजह क्या थी?
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की ओर से जारी बयान ये भी साफ हो गया कि आखिर सरकार को सौरभ कृपाल की जज के तौर पर नियुक्ति को लेकर ऐतराज क्यों है. बयान में कहा गया कि 11 अप्रैल 2019 और 18 मार्च 2021 के रॉ की ओर से भेजे गए पत्र से जाहिर होता है कि सौरभ कृपाल की जज के तौर पर नियुक्ति की सिफारिश को मंजूरी देने में सरकार की दो आपत्तियां हैं. पहली आपत्ति उनके स्विस पार्टनर को लेकर है. दूसरी ये है कि वो अपने सेक्सुअल ओरियंटेशन को सरेआम स्वीकारते हैं. बयान में 1 अप्रैल 2021 के क़ानून मंत्री के पत्र का हवाला दिया है जिसके मुताबिक भले ही समलैंगिकता को अपराध के दायरे से बाहर भले ही कर दिया हो, पर समलैंगिक शादी को अभी तक मान्यता नहीं मिल पाई है, ऐसे में सौरभ कृपाल के समलैंगिक लोगों के अधिकारों के प्रति उत्साह को देखते हुए उनकी ओर से पक्षपात होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.
कॉलेजियम का क्या कहना है?
कॉलेजियम ने सरकार की दोनों आपत्तियों को खारिज किया है. कॉलेजियम का कहना है कि हर एक व्यक्ति को अपने मन मुताबिक सेक्सुअल ओरिएंटेशन रखने का अधिकार हासिल है. सौरभ कृपाल के अपने सेक्सुअल ओरिएंटेशन को लेकर खुलेपन के चलते उनकी जज के तौर पर उम्मीदवारी को खारिज नहीं किया जा सकता. उनका व्यवहार हमेशा अच्छा रहा है और जज के तौर पर उनकी नियुक्ति बेंच में विविधता लाएगी. कॉलेजियम का ये भी कहना है कि संवैधानिक पदों पर मौजूद बहुत से लोगों के पार्टनर विदेशी नागरिक रहे हैं. ऐसे में विदेशी पार्टनर होने की वजह से उनका नाम खारिज करने का कोई औचित्य नहीं है.
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