नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सेना को अपनी एक महिला लेफ्टिनेंट कर्नल को भविष्य में परेशान न करने की हिदायत दी. महिला अधिकारी अपने ट्रांसफ़र के ख़िलाफ़ सुप्रीमकोर्ट पहुंची थी और अधिकारी को इस बात का डर था कि सुप्रीम कोर्ट में आने के कारण उनका विभाग कहीं उनके ख़िलाफ़ कोई कार्यवाही न शुरू कर दे. लॉ अधिकारी के पद पर तैनात महिला अधिकारी ने याचिका में कहा कि उनहें कभी-कभी ऐसी जगह की कोर्ट में जाना पड़ता है जहां उनके बच्चे के लिए क्रेच नहीं है.


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सरकार के वकील ने कोर्ट को बताया कि लेफ्टिनेंट कर्नल अन्नू डोगरा अपने बच्चे को वहां से 15 मिनट की दूरी पर बने क्रेच में डाल सकती हैं और अपने आधिकारिक कर्तव्यों का प्रभावी ढंग से निर्वहन कर सकती हैं. याचिकाकर्ता की वकील ने सरकारी वकील के सुझाव को स्वीकार किया लेकिन आशंका जताई कि याचिकाकर्ता सेना की अधिकारी को उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के लिए सेना के अधिकारियों द्वारा निशाना बनाया जा सकता है. वकील ने कहा कि उनके खिलाफ संभावित जांच के संकेत मिले थे.


कोर्ट ने सरकारी वकील को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि महिला अधिकारी ने याचिका दायर कर अपने अधिकारों का इस्तेमाल किया है, वह कोई पीड़ित नहीं है. पिछले हफ्ते, अदालत ने टिप्पणी की थी कि सेना को अपनी महिला अधिकारियों के लिए एक अनुकूल कार्य वातावरण प्रदान करना चाहिए और मानवीय आधार पर एक व्यावहारिक समाधान के लिए दबाव डाला जाना चाहिए. इस पर, न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने एएसजी से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि महिला अधिकारी याचिका दायर करने के लिए पीड़ित नहीं है. 


महिला अधिकारी की याचिका में उनकी अस्थायी पोस्टिंग पर सवाल उठाया गया था, जिससे उन्हें कोर्ट मार्शल की कार्यवाही की पैरवी करने के लिए जोधपुर से नागपुर जाना पड़ता है जिसमें उन्हें अपने बच्चे के साथ रहने के मौलिक अधिकार से वंचित कर दिया. याचिका में कहा गया, कर्तव्य के स्थान पर परिवार और समुदाय आधारित देखभाल की व्यवस्था नहीं है, जिससे उसके बच्चे की उपेक्षा हो रही है. पिछले हफ्ते, अदालत ने टिप्पणी की थी कि सेना को अपनी महिला अधिकारियों के लिए एक अनुकूल कार्य वातावरण प्रदान करना चाहिए, और मानवीय आधार पर एक व्यावहारिक समाधान के लिए दबाव डाला जाना चाहिए.