SC के 4 जजों ने नोटबंदी को सही ठहराया, 1 जज ने क्यों उठाए सरकार के फैसले पर सवाल?
Supreme court: जस्टिस अब्दुल नज़ीर की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने 4:1 के बहुमत से माना है कि फैसला लेने की प्रकिया में कोई कानूनी खामी नहीं है. जस्टिस बी आर गवई ने बहुमत का फैसला पढ़ते हुए कहा कि आर्थिक नीति के मामलों में कोर्ट बेहद सीमित दखल दे सकता है.
Supreme court News: 8 नवंबर 2016 में हुई नोटबंदी को सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया है. जस्टिस अब्दुल नज़ीर की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने 4:1 के बहुमत से माना है कि फैसला लेने की प्रकिया में कोई कानूनी खामी नहीं है. जस्टिस बी आर गवई ने अपना, जस्टिस अब्दुल नज़ीर, जस्टिस एएस बोपन्ना ,जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन का फैसला पढ़ा.
जस्टिस गवई ने बहुमत का फैसला पढ़ते हुए कहा कि आर्थिक नीति के मामलों में कोर्ट बेहद सीमित दखल दे सकता है. कोर्ट, एक्सपर्ट की राय की जगह नहीं ले सकता. जो रिकॉर्ड कोर्ट में पेश किया गया है, उसके मुताबिक फैसला लेने की प्रकिया में कोई खामी नहीं थी.
‘6 महीने से चला रहा था RBI और सरकार के बीच विमर्श'
जस्टिस गवई ने चार जजों का फैसला पढ़ते हुए कहा कि आठ नवंबर 2016 को ये फैसला लेने से करीब 6 महीने पहले ही सरकार और आरबीआई के बीच इसको लेकर विचार विमर्श चल रहा था. यानि कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की इस दलील को खारिज कर दिया कि नोटबंदी का फैसला बिना इसके परिणामों पर विचार किए बगैर एकाएक लिया गया.
जस्टिस गवई ने कहा कि नोटबंदी का मकसद ब्लैक मनी, आतंकी फंडिंग पर रोक लगाना था और नोटबंदी के ये निर्धारित लक्ष्य हासिल हुए हैं या नहीं, ये अब अप्रासंगिक है.
'एक्ट के मुताबिक सारे नोट वापस लेने का अधिकार'
जस्टिस गवई ने ये भी कहा कि आरबीआई एक्ट 1934 के सेक्शन 26 (2) के तहत सरकार को सिर्फ कुछ विशेष नोट की सीरीज ही नहीं, बल्कि सारी सीरीज के नोटों को वापस लेने का अधिकार है. याचिकाकर्ताओं की दलील थी कि इस एक्ट के तहत सिर्फ कुछ ख़ास सीरीज के नोट को ही वापस लिया जा सकता है, सभी नोटों को नहीं.
'नोट बदलने के लिए पर्याप्त वक़्त दिया गया'
संविधान पीठ ने बहुमत से याचिकाकर्ताओं की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि 500 और 1000 के पुराने नोटों को नए से बदलने के लिए पर्याप्त वक़्त नहीं दिया गया. जस्टिस गवई ने कहा कि 1978 में सिर्फ तीन का वक़्त दिया गया था, जबकि 2016 में 52 दिन दिए गए. आरबीआई के पास इस समयसीमा को बढ़ाने का कोई स्वतंत्र अधिकार नहीं है.
जस्टिस नागरत्ना ने फैसले की प्रकिया को ग़लत ठहराया
हालांकि बेंच की एक अन्य सदस्य जस्टिस नागरत्ना बहुमत की राय से सहमत नहीं थीं. उन्होंने अपना अलग फैसला पढ़ते हुए नोटबंदी के फैसला लेने की प्रकिया को ग़लत ठहराया. उन्होंने कहा कि भले ही आर्थिक नीति के मामलों में कोर्ट के दखल की गुजाइश कम हो, पर कोर्ट इसकी समीक्षा कर सकता है कि क्या फैसला लेने की प्रकिया ठीक थी या नहीं. इस तरह के फैसले की पहल सरकार के बजाए आरबीआई की तरफ से होनी चाहिए थे. सरकार अगर ऐसा फैसला लेती है तो बिना संसद को विश्वास में लिए ऐसा नहीं किया जा सकता. ऐसा फैसला जिसका सामाजिक -आर्थिक तौर पर गहरा असल पड़ने वाला था, उनमें संसद की राय अहमियत रखती है.
RBI ने अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं किया - जस्टिस नागरत्ना
जस्टिस नागरत्ना ने कहा,'केंद्र सरकार की ओर से भेजे गए प्रस्ताव को आरबीआई ने यूं ही मंजूरी दे दी, अपने विवेक का इस्तेमाल नहीं किया.7 नवंबर से 8 नवंबर के बीच महज 24 घण्टे के अंदर ये फैसला ले लिया गया. महज एक गजट नोटिफिकेशन के जरिये ऐसा फैसला लागू करना गैरकानूनी है.'
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