क्या हट जाएगा राजद्रोह का कानून! किरन रिजिजू ने कही ये बड़ी बात
Sedition Law: केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री किरन रिजिजू ने एक सवाल के जबाव में लोकसभा में कहा कि राजद्रोह से जुड़ी भारतीय दंड संहिता की धारा 124A को हटाने से संबंधित कोई प्रस्ताव गृह मंत्रालय के पास विचाराधीन नहीं है. ये मामला सुप्रीम कोर्ट के पास लंबित है.
नई दिल्ली. केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री किरन रिजिजू ने लोकसभा में राजद्रोह के कानून से जुड़ा बयान दिया है. रिजजू ने शुक्रवार को लोकसभा में कहा कि राजद्रोह से जुड़ी भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए को हटाने से संबंधित कोई प्रस्ताव गृह मंत्रालय के पास विचाराधीन नहीं है.
'सुप्रीम कोर्ट के पास लंबित है मामला'
उन्होंने एक प्रश्न के लिखित उत्तर में कहा कि धारा 124A से संबंधित ‘कानून का सवाल’ सुप्रीम कोर्ट के पास लंबित है. रिजिजू ने कहा कि ‘गृह मंत्रालय ने सूचित किया है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 124A को हटाने का कोई भी प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है.’
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AIUDF नेता ने किया था सवाल
AIUDF नेता बदरुद्दीन अमजल ने सवाल किया कि क्या सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में राजद्रोह से संबंधित कानून को औपनिवेशिक करार दिया है. इसके अलावा उन्होंने सवाल किया कि क्या इस कानून का दुरुपयोग हो रहा है? क्या न्यायालय ने सरकार से इस कानून की जरूरत और वैधता को लेकर सरकार से जवाब मांगा है? इसके जवाब में कानून मंत्री ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के किसी फैसले या आदेश में ऐसी टिप्पणी नहीं है.
क्या है राजद्रोह का कानून
बता दें, राजद्रोह भारत की दंड दंहिता (आईपीसी) की धारा 124A के तहत एक जुर्म है. इसे अंग्रेज अपने शासन के दौरान 1870 में लाए थे. फिर 1898 और 1937 में इसमें संशोधन किए गए. आजादी के बाद 1948, 1950 और 1951 में इसमें और संशोधन किए गए. दशकों पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट और पंजाब हाई कोर्ट ने अलग अलग फैसलों में इसे असंवैधानिक बताया था, लेकिन 1962 में सुप्रीम कोर्ट ने ही अपने ''केदार नाथ सिंह बनाम बिहार राज्य' नाम के फैसले में इसे वापस ला दिया. हालांकि इसी फैसले में अदालत ने कहा कि इस कानून का उपयोग तभी किया जा सकता है जब "हिंसा के लिए भड़काना" साबित हो.
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सुप्रीम कोर्ट कर चुका है ये टिप्पणी
इसी साल जुलाई में एक याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अंग्रेजों के जमाने में बनाया गया राजद्रोह का कानून "कोलोनियल (उपनिवेशीय)" है. कोर्ट ने कहा कि यह सोचने की जरूरत है कि आजादी के 75 साल बाद आज भी इस कानून की जरूरत है या नहीं. अदालत ने इस कानून को संस्थानों के लिए एक गंभीर खतरा बताया और कहा कि ये सरकार को बिना जवाबदेही के इसके गलत इस्तेमाल की "अत्याधिक शक्ति" देता है. सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद से इस कानून पर चर्चा तेज हो गई.
(इनपुट- भाषा)
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