यहां सुनें पॉडकास्ट:


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING


नई दिल्ली: आज अगर आपसे कोई ये पूछे कि भारत में क्या चल रहा है? तो आपको यही कहना पड़ेगा कि भारत में आज कल अलगाववाद चल रहा है. स्कूलों में चल रहे हिजाब विवाद के पीछे भी अलगाववाद है और पंजाब में खालिस्तान पर जो राजनीति हो रही है, उसके पीछे भी अलगाव-वाद है.


अलगाववाद के बारूद पर भारत


आज पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर ये आरोप लगाया कि वो पंजाब में चुनाव जीतने के लिए खालिस्तानी संगठनों की मदद ले रहे हैं और देश को अलगाववाद की तरफ धकेल रहे हैं. इसके जवाब में केजरीवाल ने कहा है कि वो एक स्वीट आंतकवादी हैं, जो लोगों की भलाई के लिए काम करता है. दूसरी तरफ, ओवैसी ने कहा है कि वो दिन दूर नहीं, जब भारत में एक मुस्लिम महिला हिजाब पहन कर इस देश की प्रधानमंत्री बनेगी. तो भारत इस समय अलगाववाद के बारूद पर बैठा हुआ है, जिसमें अलग-अलग लोगों द्वारा चिंगारी लगाने की कोशिशें हो रही हैं.


हिजाब वाले मामले की आग तो इतनी फैल चुकी है कि कर्नाटक के स्कूलों और कॉलेजों में मुस्लिम छात्राओं के अलग- अलग संगठन बन गए हैं और ये छात्राएं अब पढ़ने की बजाय स्कूलों के बाहर विरोध प्रदर्शनों का आयोजन कर रही हैं. इस समय हमारी टीम कर्नाटक के उडुपि में ग्राउंड जीरो पर मौजूद है और हमें पता चला है कि वहां के ज्यादातर स्कूलों में मुस्लिम छात्र-छात्राओं को ये संदेश भेजे जा रहे हैं कि वो कर्नाटक हाई कोर्ट द्वारा हिजाब पर लगाई गई अंतरिम रोक के खिलाफ प्रदर्शन करें और इसके लिए उन्हें स्कूल तो जाना है, लेकिन Classes अटेंड नहीं करनी है. 


मुस्लिम छात्राओं का हो रहा इस्तेमाल


ये पैटर्न केवल उडुपि तक सीमित नहीं है. कर्नाटक के शिवामोगा से लेकर कोडगु तक ज्यादातर जिलों में मुस्लिम छात्राएं सिर्फ इसीलिए स्कूल और कॉलेज पहुंच रही हैं, ताकि वो अपना विरोध दर्ज करा सकें. आज कोडगु के एक इंटर कॉलेज के बाहर कुछ मुस्लिम छात्राएं धरने पर बैठ गईं और जब कॉलेज प्रबंधन ने इन्हें हिजाब के साथ कॉलेज में प्रवेश देने की इजाजत दे दी, तब भी इन लड़कियों ने अपना प्रदर्शन समाप्त नहीं किया. कुल मिला कर अब ये मामला स्कूलों में हिजाब पहनने का नहीं रह गया है. बल्कि एक खास विचारधारा के लोग इन मुस्लिम छात्राओं को टूल किट की तरह इस्तेमाल करके शिक्षा व्यवस्था पर सीधा हमला कर रहे हैं और उनकी कोशिश तथ्यों को इस तरह से पेश करने की है, जिससे ऐसा लगे कि भारत में मुसलमानों को उनके अधिकारों से वंचित रखा जा रहा है.


आज कर्नाटक सरकार ने हाई कोर्ट को ये बताया कि इस्लाम में हिजाब को महिलाओं के लिए अनिवार्य नहीं माना गया है, इसलिए सरकार चाहती है कि अदालत स्कूलों में धार्मिक परिधान पहनने की इजाजत नहीं दे.


इसके अलावा कर्नाटक सरकार ने 5 फरवरी के अपने उस सर्कुलर पर भी कोर्ट को स्पष्टीकरण दिया है, जिसमें उसने राज्य के सभी स्कूलों और कॉलेजों में हिजाब और भगवा गमछा पहनने पर रोक लगा दी थी. कर्नाटक सरकार की दलील है कि अगर वो इस फैसले में देरी करती तो स्कूलों में धार्मिक तनाव काफी बढ़ जाता, जिससे हालात बिगड़ सकते थे.


कोर्ट पहुंचा हिजाब विवाद


एक दिन पहले कर्नाटक हाई कोर्ट में मुस्लिम छात्राओं द्वारा ये मांग की गई थी कि इस मामले में अंतिम फैसला आने तक कर्नाटक के स्कूलों में उन्हें शुक्रवार को जुमे की नमाज के दिन और रमजान के महीने में हिजाब पहन कर Classes अटेंड करने की इजाजत दी जाए. फिलहाल हाई कोर्ट ने कहा है कि वो इस मांग की समीक्षा करेगा. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि अगर मुस्लिम छात्राओं की इस मांग को मान लिया गया तो फिर भविष्य में और क्या क्या होगा?


इसके बाद स्कूलों में नमाज पढ़ने की मांग की जाएगी. आपको याद होगा, कर्नाटक के कोलार में 21 जनवरी को कुछ मुस्लिम छात्रों ने नमाज भी पढ़ी थी. कल्पना कीजिए कि अगर इस मांग को भी मान लिया गया तो फिर क्या होगा. फिर ये मुस्लिम छात्र स्कूलों में नमाज पढ़ने के लिए अलग से जगह देने की मांग करेंगे और नमाज के दौरान क्लास और पढ़ाई से छूट मांगी जाएगी.


सोचिए अगर ये मांगें भी मांग ली गईं तो फिर रविवार की जगह, शुक्रवार को जुमे की नमाज के दिन छुट्टी के लिए मुहिम चलाई जाएगी. ये सिलसिला ऐसे ही चलता रहेगा, ये खत्म नहीं होगा.


कैसे समाप्त होगा ये विवाद?


स्कूलों में अप्रैल और मई महीने की जगह रमजान के महीने में छुट्टियां देने के लिए कहा जाएगा, कॉलेज की Canteens में अलग से हलाल काउंटर लगाने की मांग होगी और पाठ्यक्रम से अलग अलग भगवान के नाम हटाने के लिए कहा जाएगा. मुस्लिम छात्र ये कहेंगे कि वो तो अल्लाह को मानते हैं, फिर श्री राम और श्री कृष्ण के बारे में वो क्यों पढ़ेंगे? इसलिए ये मत सोचिए कि ये मामला हिजाब की मांग को मान लेने से समाप्त हो जाएगा.


इस स्थिति का अन्दाजा आप असदुद्दीन औवैसी की बातों से भी लगा सकते हैं, जिन्होंने आज झांसी में अपनी एक रैली के दौरान ये कहा कि वो दिन दूर नहीं, जब भारत की प्रधानमंत्री एक मुस्लिम महिला बनेगी और उसने हिजाब पहना होगा. उन्होंने ये भी कहा कि, जब इस देश में सिख धर्म का एक व्यक्ति पगड़ी पहन कर प्रधानमंत्री बन सकता है तो फिर हिजाब पहन कर एक मुस्लिम महिला प्रधानमंत्री क्यों नहीं बन सकती.


खालिस्तान पर हो रही सियासत


हिजाब विवाद की तरह, पंजाब में खालिस्तान पर हो रही राजनीति के पीछे भी अलगाववाद ही है. आज दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने दुनिया का परिचय एक नए किस्म के आतंकवादी से कराया है. उन्होंने पंजाब के चुनाव में, खालिस्तानी संगठनों से मदद लेने के आरोप पर खुद को एक स्वीट आतंकवादी कहा है, जो लोगों की भलाई के लिए काम करता है.


हालांकि अरविंद केजरीवाल के पुराने दोस्त कुमार विश्वास ने आज एक और बड़ा खुलासा करते हुए दावा किया कि जब पिछली बार 2017 में पंजाब के विधान सभा चुनाव हो रहे थे, तब अरविंद केजरीवाल के घर पर खालिस्तान संगठनों और उनके नेताओं की बैठक हुई थी. जब कुमार विश्वास ने इस बैठक का विरोध किया तो उन पर दबाव बना कर उन्हें पंजाब के चुनाव से बाहर कर दिया गया.


AAP का खालिस्तानी कनेक्शन!


आज पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह को एक चिट्ठी लिख कर ये आरोप लगाया है कि आम आदमी पार्टी ने 2017 के पंजाब विधान सभा चुनाव में खालिस्तानी संगठन, Sikhs For Justice की मदद ली थी और आम आदमी पार्टी के कई नेता इस बार के चुनावों में भी इस संगठन के प्रमुख नेता, गुरपतवंत सिंह पन्नू के सम्पर्क में हैं. हालांकि गुरपतवंत सिंह पन्नू ने अपने एक नए वीडियो में इन आरोपों को गलत बताया है और लोगों से केजरीवाल को वोट नहीं देने की बात कही है. जानिए चन्नी ने इस चिट्ठी में क्या लिखा है और अमित शाह ने इस पर अपने जवाब में क्या कहा है।


Sikhs For Justice, वही खालिस्तानी संगठन है, जिसने किसान आन्दोलन के दौरान पिछले साल गणतंत्र दिवस के मौके पर इंडिया गेट पर खालिस्तान का झंडा फहराने वाले को ढाई लाख डॉलर यानी एक करोड़ 82 लाख रुपये का इनाम देने का ऐलान किया था. उस दिन इंडिया गेट पर तो ऐसा कुछ नहीं हुआ था, लेकिन लाल किले पर कुछ लोगों ने एक खास धर्म का झंडा फहरा दिया था. भारत सरकार ने जुलाई 2019 में Unlawful Activities Prevention Act तहत इस संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया था और अभी ये संगठन NIA के भी रडार पर है.


कैसे बदल गए एक शब्द के मायने


खालिस्तान का अर्थ है The Land Of Khalsa, हिन्दी में इसका अर्थ है खालसा के लिए एक अलग राष्ट्र या सिखों के लिए अलग राष्ट्र. खालसा की स्थापना सिखों के 10वें गुरु गोबिंद सिंह ने वर्ष 1699 में की थी. खालसा का अर्थ होता है प्योर यानी शुद्ध. लेकिन समय के साथ इस विचार के उद्देश्य बदल गए और इसका राजनीतिकरण हो गया. वर्ष 1980 के दशक में पंजाब में अलगाववादी विचारधारा मजबूत होनी शुरू हुई थी और सिखों के लिए खालिस्तान नाम का अलग देश बनाने की मांग ने जोर पकड़ लिया था. ये वही दौर था, जब पंजाब में आतंकवाद शुरू हुआ और जरनैल सिंह भिंडरावाला, इसका Posterboy बन गया. भिंडरावाला भी एक आतंकवादी था, जो भारत को तोड़कर खालिस्तान नाम का देश बनाना चाहता था. लेकिन अरविंद केजरीवाल ने अब आतंकवादी शब्द के मायने ही बदल दिए हैं और वो ये कह रहे हैं कि वो अलग किस्म के Sweet Terrorist हैं.


पंजाब में वोटिंग से दो दिन पहले आज प्रधानमंत्री मोदी ने भी एक बड़ा सरप्राइज़ दिया. आज उन्होंने सिख धर्म गुरुओं और उनके नेताओं से मुलाकात की और इस मुलाकात के दौरान उन्होंने सिख नेताओं से क्या संवाद किया है.