Sharia Keyowrds Trend: चुनावी शब्दावली में रोज़ाना एक से एक नये शब्द ट्रेंड कर रहे हैं. आज का शब्द है- शरिया...जो सुबह से बहस में नंबर-वन चल रहा है. ..शरिया यानी इस्लाम को मानने वालों के लिये Way Of Life'...लेकिन चुनाव में शरिया शब्द कैसे आया, पहले ये देखिये. इसे लेकर आए देश के गृह मंत्री अमित शाह. ...अमित शाह तीसरे चरण के चुनाव प्रचार के लिये मध्य प्रदेश में थे...कांग्रेस और उसके घोषणा पत्र को लेकर बहुत गुस्से में थे. 


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उन्होंने कांग्रेस से पूछा कि उसके पर्सनल लॉ को आगे बढ़ाने के वादे का क्या मतलब है?..क्या कांग्रेस देश को शरिया से चलाना चाहती है?. अमित शाह ने कांग्रेस को तुष्टीकरण की आदत से मजबूर बताया. ..और साफ़-साफ़ कहा कि देश में कोई क़ानून धर्म के आधार पर नहीं बन सकता...बीजेपी तीसरी बार सत्ता में आएगी, तो समान नागरिक संहिता यानी UCC ज़रूर लेकर आएगी....देश में एक समान क़ानून ही चलेगा. 


बहुत ज़रूरी है कि शरिया पर बात करने से पहले आपको ये बता दें कि
शरिया है क्या?
अरबी में शरिया का अर्थ है- 'रास्ता'
शरिया इस्लामिक जीवन जीने की एक शैली है.
शरिया इस्लामिक क़ानून नहीं है, बल्कि सिद्धांत है.
शरिया कुरान, सुन्नत और हदीस की एक व्याख्या है.
इसे इस्लामी जीवन का कोड ऑफ कंडक्ट मान सकते हैं.
शरिया में 2 दंड संहिता भी हैं. इन्हें 'हद्द' और 'ताज़ीर' कहते हैं.


दरअसल इस्लामी सिद्धांतों के 5 अलग-अलग स्कूल हैं. इनमें 4 सुन्नी स्कूल हैं- हनबली, मलिकी, शफीई और हनफ़ी. ..और पांचवा शिया स्कूल है- ज़ाफरी. इस्लामिक रूल पर इन पांचों के अपने-अपने सिलेबस हैं. इस्लाम में क्या सही है और क्या ग़लत है, इसे ये अपनी समझ से एक्सप्लेन करते हैं.


ये जो आप अक्सर फ़तवे सुनते हैं कि लड़के-लड़कियां साथ नहीं पढ़ें, उनके स्कूल अलग हों, लड़कियां हिजाब या बुर्के में ही बाहर निकलें, ये सब इन्हीं अलग-अलग स्कूलों की थॉट प्रोसेस है. इसीलिये आप देखते हैं कि एक इस्लामिक मुल्क में जिन चीज़ों की मनाही होती है, उसी पर दूसरे मुस्लिम देश में कोई रोकटोक नहीं होती है...जहां भी बंदिशें होती हैं वहां एक ही रेफरेंस दिया जाता है कि शरिया में ये लिखा है, वो लिखा है.


इन्हीं चीज़ों को शरिया लॉ और पर्सनल लॉ से जोडकर पेश किया जाता है. गृह मंत्री अमित शाह ने क्यों पूछा कि कांग्रेस क्या देश में शरिया लागू करना चाहती है? असल में ये पूछने का मौक़ा खुद कांग्रेस ने दिया है. कांग्रेस मेनिफेस्टो के पेज नंबर-8 पर एक पैरा है. इसमें कांग्रेस ने लिखा है-
- कांग्रेस यह सुनिश्चित करेगी कि प्रत्येक नागरिक की तरह अल्पसंख्यकों को भी पोशाक, खान-पान, भाषा और व्यक्तिगत क़ानूनों की स्वतंत्रता हो'


यहां पर आप 2 शब्दों पर गौर करें. 'व्यक्तिगत क़ानूनों की स्वतंत्रता'...तो क्या इसे पर्सनल लॉ की स्वतंत्रता ना माना जाए, जिसका आधार ही शरिया है? दूसरा शब्द है पोशाक की स्वतंत्रता. ...क्या इसे इस तरह ना देखा जाए कि हिजाब और बुर्के को कांग्रेस हठ नहीं, बल्कि हक़ के तौर पर मान्यता देने का वादा कर रही है?


बीजेपी जिस विचारधारा से आती है, उसके तीन ही प्रमुख वचन थे- राम मंदिर, धारा 370 हटाना और UCC यानी समान नागरिक संहिता लागू करना. इनमें से दो वचन पूरे हो चुके हैं, और तीसरे यानी UCC पर बीजेपी का वादा है कि सत्ता की हैट्रिक लगाते ही उसे भी पूरा करेगी. 'एक देश, एक विधान' की दिशा में वो किस्तों में काम शुरू भी कर चुकी है. ..कुछ उदाहरण देखिये-


- उत्तराखंड में UCC मॉडल लागू करना
- ट्रिपल तलाक़ के खिलाफ़ क़ानून बनाना
- असम में मुस्लिम मैरिज एंड तलाक़ एक्ट खत्म करना
- संस्थानों में हिजाब पर प्रतिबंध लगाना
- मदरसों को सामान्य स्कूलों में बदलना


ये सब सैंपल हैं कि देश में धर्म के नाम पर पर्सनल लॉ के लिये अब कोई स्पेस नहीं है. ..अधिकार बराबर हैं तो क़ानून भी एक समान होगा. उसमें कोई मज़हबी डिस्काउंट नहीं होगा. इसीलिये जब कांग्रेस पर्सनल लॉ को प्रोटेक्शन देने का वादा करती है...इस पर्सनल लॉ को रोकने वाले क़ानून को ही रद्द करने का वादा करती है, ..तो सवाल उठते हैं कि कहीं ये जिन्ना का एजेंडा थोपने की कोशिश तो नहीं है?
आप कुछ दिनों से सुन रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कांग्रेस के घोषणा पत्र को लगातार मुस्लिम लीग का मेनिफेस्टो बता रहे हैं. कांग्रेस की सोच को मोहम्मद अली जिन्ना की विभाजनकारी सोच जैसा बता रहे हैं. 


अब आपको जानना चाहिये कि कांग्रेस के मेनिफेस्टो के वो कौन से हिस्से हैं, जनकी वजह से प्रधानमंत्री मोदी उसपर मुस्लिम लीग की छाप बता रहे हैं. ..चुनाव से कई दिनों पहले कांग्रेस ने एक नारा दिया था- 'जिसकी जितनी हिस्सेदारी, उसकी उतनी भागीदारी'. ..राहुल गांधी के मुंह से ये नारा आपने कई बार सुना होगा. कांग्रेस के घोषणा पत्र में इसी हिस्सेदारी वाली बात को अलग-अलग बिंदुओं में समझाया गया है. अगर कांग्रेस के नारों और चुनावी वादों को जोड़ा जाए तो जो क्रम बनता है, वो कुछ ऐसा दिखता है-



- 'बहुसंख्यकवाद' की देश में कोई जगह नहीं है
- कांग्रेस आई तो 'पर्सनल लॉ' को संरक्षण देगी
- कांग्रेस की नज़र में मुसलमान 'कमज़ोर वर्ग' है
- कांग्रेस का विचार 'संपत्ति का समान बंटवारा' है
- कांग्रेस की सोच 'जितनी संख्या, उतना हिस्सा' है



आप इसे संयोग कह सकते हैं कि भारत विभाजन की जड़ में, उसके मूल में मोहम्मद अली जिन्ना के जो 14 सूत्र थे, उनमें से भी कई सूत्र इसी 'हिस्सेदारी' के सिद्धांत पर थे. ...
1928 में मोहम्मद अली जिन्ना ने ये 14 सूत्र मोतीलाल नेहरू कमेटी में रखे थे. इसमें वही 'हिस्सेदारी' वाला तत्व था, जो बाद में देश के बंटवारे का आधार बना. कांग्रेस और नेहरू कमेटी ने जिन्ना के 14 सूत्र सिरे से खारिज कर दिये. जवाहरलाल नेहरू ने तो इन्हें Funny Ideas तक कहा. ..लेकिन 1929 में मुस्लिम लीग का दिल्ली अधिवेशन हुआ तो जिन्ना के ये 14 सूत्र सिर माथे पर रखे गये, और फिर यही 14 सूत्र ऑल इंडिया मुस्लिम लीग का घोषणा पत्र बन गये.


आपको बताते हैं उन 14 सूत्रों में क्या था?
- 'धर्म, संस्कृति, शिक्षा, भाषा में मुस्लिम अधिकारों की सुरक्षा'
- 'पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता, पर्सनल लॉ में कोई दखलंदाज़ी नहीं'
- 'केंद्रीय विधानमंडल में मुस्लिमों के लिये एक तिहाई सीटें'
- 'राज्य विधान परिषदों में एक तिहाई मुस्लिम सीटें रिज़र्व'
- 'सर्विस और निकायों में मुस्लिमों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व'
- 'मुस्लिम आबादी के लिये अलग से निर्वाचन क्षेत्र रिज़र्व'
- 'किसी प्रस्ताव पर तीन चौथाई मुस्लिम खिलाफ़ हों, तो रद्द'
- 'पंजाब, बंगाल, NWFP में मुस्लिम बहुमत का संरक्षण हो'


आपने देखा, जिन्ना के हर सूत्र का सार था- 'हिस्सा'...नेहरू कमेटी ने जब जिन्ना के ये सूत्र ठुकराए तो जानते हैं उस रिपोर्ट को मुस्लिम लीग ने क्या कहा था?.. उसे कहा था- 'मुसलमानों का डेथ वारंट'. ..रिपोर्ट को नहीं माना, और आखिर देश को बांट दिया. तो शरिया और पर्सनल लॉ से लेकर कांग्रेस मेनिफेस्टो और जिन्ना के 14 सूत्रों तक...ये पूरा क्रम आपने देखा... कहीं ना कहीं, इन्हें ही जोड़कर आज गृह मंत्री अमित शाह ने पूछा कि- क्या कांग्रेस भारत में शरिया लागू करना चाहती है?