राम भक्तों के खून से लाल हुए सरयू के घाट पर भव्य मंदिर का संकल्प पूरा हो रहा: शिवसेना
बहुसंख्यक हिंदुओं की छाती पर पैर रखकर कोई राजनीति नहीं कर सकता है. उस मिट्टी में कारसेवकों के त्याग की गंध है. इसे भूलने वाले रामद्रोही साबित होंगे.
मुंबई: शिवसेना (Shivsena) ने अपने मुखपत्र सामना में आज 5 अगस्त को अयोध्या (Ayodhya) में होने वाले श्री राम मंदिर जन्मभूमि पूजन में नहीं बुलाए जाने के लिए बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर श्री राम मंदिर बनाने का श्रेय अकेले लेने का आरोप लगाते हुए हमला बोला. शिवसेना का कहना है कि बहुसंख्यक हिंदुओं की छाती पर पैर रखकर कोई राजनीति नहीं कर सकता है.
सामना की संपादकीय में लिखा गया कि अयोध्या में राम जन्मभूमि की जगह पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज राम मंदिर का भूमि पूजन कर रहे हैं. उस समय राम मंदिर के लिए गोलियां खाने वाले कारसेवकों को सरयू नदी ने अपनी आगोश में ले लिया था. राम भक्तों के खून से लाल हुए सरयू के घाट पर भव्य मंदिर का संकल्प पूर्ण हो रहा है. ये ऐतिहासिक, रोमांचक और हर हिंदुस्थानी का सीना गर्व से चौड़ा कर देने वाला क्षण है. ‘रामायण’ हिंदुस्थानी जनता का प्राण है. राम ‘रामायण’ के प्राण हैं. राम मर्यादा पुरुषोत्तम और एकवचनी हैं. राम अर्थात त्याग, राम अर्थात साहस हैं. राम अर्थात हमारे देश की एकता हैं. ऐसे राम का मंदिर उन्हीं की अयोध्या नगरी में, उन्हीं के जन्म स्थान पर बने इसके लिए हिंदुओं ने बहुत बड़ी लड़ाई लड़ी. इस लड़ाई की आज पूर्णाहुति हो रही है. यह लड़ाई प्रत्यक्ष भूमि पर हुई और कोर्ट में भी हुई.
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राम मंदिर भूमि पूजन का पहला निमंत्रण अयोध्या मामले की न्यायालयीन लड़ाई के मुस्लिम पक्षकार इकबाल अंसारी को भेजा गया. सुप्रीम कोर्ट द्वारा राम मंदिर के पक्ष में ऐतिहासिक आदेश दिए जाने के बाद राम जन्मभूमि का विवाद समाप्त हो चुका है. इकबाल अंसारी ये अकेला नहीं था बल्कि कोर्ट में राम मंदिर विरोधी लड़ाई करने वाली बाबरी एक्शन कमेटी का एक प्रमुख चेहरा था. उसके साथ कई इस्लामी संगठनों की बड़ी ताकत खड़ी थी. अंसारी ने कोर्ट की लड़ाई 30 वर्ष तक खींची. सुप्रीम कोर्ट का सारा मामला तारीखों में उलझ गया लेकिन जस्टिस रंजन गोगोई ने राम को इस उलझन से बाहर निकाला और राम मंदिर के पक्ष में स्पष्ट फैसला सुनाया. जस्टिस रंजन गोगोई का नाम विशेष निमंत्रित लोगों की सूची में कहीं होना चाहिए था. लेकिन ना रंजन गोगोई और ना ही बाबरी ढांचा गिराने वाली शिवसेना सूची में शामिल है. राम मंदिर भूमि पूजन समारोह का श्रेय किसी दूसरे को ना मिलने पाए, ये वैसी जिद है.
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भूमि पूजन समारोह राष्ट्र और तमाम हिंदुओं का है. लेकिन वो अब व्यक्ति-केंद्रित और राजनीतिक दल-केंद्रित हो गया है. हालांकि श्रीराम भी पारिवारिक राजनीति और अंतर्विरोध का शिकार हुए थे तो औरों की क्या बात करें. अयोध्या स्थित राम जन्मभूमि स्थान पर मंदिर बनाने का संकल्प लेकर विश्व हिंदू परिषद, शिवसेना, बजरंग दल और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं ने लाठियों, अश्रु गैस और गोलियों का सामना किया और आगे बढ़े. इस दौरान कई शहीद भी हुए. दुर्दम्य आकांक्षा लिए जब लोग प्राण देने के लिए तैयार हो जाते हैं तो केवल कानून और कोर्ट की बात कम पड़ जाती है. लोकतंत्र में जन-इच्छा को प्रमाण मानना चाहिए.
राम मंदिर की राजनीति पर अलग दृष्टिकोण होने के बावजूद कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और वाम दलों के कई लोगों का मानना था कि मंदिर बनना चाहिए. उन लोगों की भावनाओं की कद्र करनी चाहिए. डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी ने राम मंदिर का श्रेय पी. वी. नरसिम्हा राव और राजीव गांधी को दिया ही है. वो प्रधानमंत्री मोदी को राम मंदिर का श्रेय देने को तैयार नहीं हैं. लेकिन मोदी के कार्यकाल में ही न्यायालयीन दांव-पेंच से राम मंदिर का मामला सुलझा और आज ये स्वर्णिम क्षण आ गया. इसे स्वीकार करना ही पड़ेगा. ऐसा न होता तो राम मंदिर के पक्ष में निर्णय देने वाले चीफ जस्टिस रंजन गोगोई रिटायर होने के बाद तत्काल राज्यसभा के सदस्य नहीं बने होते. राम मंदिर निर्माण के लिए कई लोगों ने कई प्रकार की कीमतें चुकार्इं और योगदान दिया.
नरसिम्हा राव जब प्रधानमंत्री थे, उसी दौरान बाबरी गिरी. उन्होंने बाबरी को पूरी तरह से गिरने दिया. उस समय राष्ट्रपति भवन में शंकरदयाल शर्मा थे. शर्मा और राव 6 दिसंबर को मानो बाबरी का कलंक मिटने की प्रार्थना करते हुए ही बैठे थे. उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह थे. बाबरी ढांचा पूरी तरह से जमींदोज होते ही कल्याण सिंह ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. राम मंदिर के लिए कल्याण सिंह ने अपनी सरकार का ही त्याग कर दिया. वो कल्याण सिंह आज के स्वर्ण समारोह के मंच पर नहीं हैं लेकिन निमंत्रितों की सूची में हों, ऐसी अपेक्षा है.
राम मंदिर की लड़ाई से देश को हिंदुत्व का असली सुर मिल गया और उसके सहारे बीजेपी और शिवसेना ने राजनीतिक शिखर पार किया. इस बात को स्वीकार करना चाहिए. लालकृष्ण आडवाणी और शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे, इन दो प्रमुख नेताओं ने हिंदुत्व की ज्वाला जलाए रखी. देश के बहुसंख्यक हिंदुओं की छाती पर पैर रखकर कोई राजनीति नहीं कर सकता. धर्मनिरपेक्षता मतलब सिर्फ एक धर्म का पालन करने का मामला नहीं है. हिंदू समाज की श्रद्धा से कोई जोड़-तोड़ नहीं कर सकता और उनकी भावनाओं को कुचलकर आगे नहीं बढ़ा जा सकता. ‘बाबरी गिरी. उसे गिराने वाले शिवसैनिकों पर मुझे गर्व है!’ इस एक गर्जना से बालासाहेब ठाकरे हिंदू हृदय सम्राट के रूप में करोड़ों हिंदुओं के दिल के राजा बन गए. आज भी वो स्थान कायम है. इन सभी के त्याग, संघर्ष, रक्त और बलिदान से आज का राम मंदिर अयोध्या में साकार रूप ले रहा है.
प्रधानमंत्री राम मंदिर के लिए पहली कुदाल चलाएंगे. उस मिट्टी में कारसेवकों के त्याग की गंध है. इसे भूलने वाले रामद्रोही साबित होंगे. बाबरी के पतन से संघर्ष समाप्त हो गया. राम मंदिर भूमि पूजन से इस मुद्दे की राजनीति भी हमेशा के लिए समाप्त हो. श्रीराम की यही इच्छा होगी! सारा देश आज एक ही सुर में गरज रहा है, जय श्रीराम! जय श्रीराम!!