नई दिल्ली: भारतीय स्कूली बच्चों (Indian School Children) ने 18 नए ऐस्टरॉइड (Asteroids) की खोज करके सबको चौंका दिया है. अंतरराष्ट्रीय खगोलीय संघ (IAU) के अनुसार, एक वैश्विक विज्ञान कार्यक्रम के दौरान भारतीय बच्चों ने इन ऐस्टरॉइड की खोज की. इस कार्यक्रम का आयोजन STEM एंड Space ने किया था, जो इंटरनेशनल एस्ट्रोनोमिकल सर्च कोलैबरेशन (IASC) के साथ मिलकर भारत में खगोल और अंतरिक्ष विज्ञान के विषय पर काम करती है.


150 बच्चों ने लिया भाग


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STEM एंड Space की सह-संस्थापक मिला मित्रा (Mila Mitra) ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय क्षुद्रग्रह अनुसंधान परियोजना (International Asteroid Discovery Project) में भारत के स्कूली बच्चों ने शानदार प्रदर्शन किया है. उन्होंने 18 नए क्षुद्रग्रह या ऐस्टरॉइड की खोज की है. उन्होंने कहा कि पिछले दो वर्षों में अब तक भारत के 150 बच्चे ऐस्टरॉइड खोजने के इस अभियान में भाग ले चुके हैं. यह अभियान करीब दो महीने तक चला. मित्रा के अनुसार, यह भारत का अब तक का सबसे बड़ा ऐस्टरॉइड डिस्कवरी प्रोजेक्ट है.


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IASC के डेटा का विश्लेषण


मिला मित्रा ने आगे बताया कि इस प्रोजेक्ट के दौरान भारत और दुनियाभर के स्कूली छात्रों ने IASC द्वारा प्रदान किए गए उच्च-गुणवत्ता वाले खगोलीय डेटा का विश्लेषण किया. यह बच्चों के लिए एक ऑनलाइन वैज्ञानिक प्रोग्राम था, जिसमें उन्हें ऐस्टरॉइड और नियर अर्थ ऑब्जेक्ट (NEO) का पता लगाना था. NEO मंगल और बृहस्पति के बीच की कक्षा में मौजूद चट्टानी वस्तुएं हैं, जो पृथ्वी के लिए एक चुनौती हैं. क्योंकि वे अस्थिर होकर गंभीर परिणाम में बदल सकती हैं.


हर दिन 2-3 घंटे काम


मित्रा और उनकी टीम के अनुसार, नासा (NASA) ने नियमित रूप से इस तरह के क्षुद्रग्रहों को ट्रैक करने के लिए IASC जैसे कार्यक्रमों की शुरुआत की है, जो सिटीजन साइंटिस्ट और स्टूडेंट्स के लिए क्षुद्रग्रहों की खोज और उन्हें ट्रैक करने का अवसर उपलब्ध कराते हैं. उन्होंने बताया कि इस प्रोजेक्ट में छात्रों ने ऐस्टरॉइड को खोजने और उनके निष्कर्षों की रिपोर्ट करने के लिए उन्नत सॉफ्टवेयर विश्लेषण पर प्रतिदिन लगभग दो-तीन घंटे बिताए.


‘इस तरह के Program जरूरी’


मित्रा ने बताया कि छात्रों द्वारा चिह्नित 372 प्रारंभिक क्षुद्रग्रहों में से 18 को बाद में अस्थायी या निश्चित खोज घोषित किया गया. उन्होंने कहा कि इस तरह के प्रोग्राम बच्चों में अंतरिक्ष विज्ञान की समझ विकसित करेंगे और उन्हें ज्यादा से ज्यादा शोध के लिए प्रेरित भी करेंगे. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे कार्यक्रमों को ज्यादा प्रमोट किए जाने की जरूरत है.