नई दिल्ली: आयुर्वेदिक (Ayurvedic) दवा हो या एलोपैथी, किसी दवा को कोरोना (Coronavirus) का शर्तिया इलाज अभी भी नहीं कहा जा सकता. बाबा रामदेव की पतंजलि की दवा को लेकर भी दावा किया जा रहा है कि इससे कोरोना का इलाज हो सकता है. लेकिन ये शर्तिया नहीं कहा जा सकता.


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आयुर्वेद में इम्यूनिटी बढ़ाने वाले तत्व होते हैं ये सबको पता है. कई मरीज तो बिना दवा के घर पर भी ठीक हो रहे हैं. भारत में चुनौती हैं गंभीर मरीज, जिनको बचाने की जद्दोजहद अभी भी चल रही है और तलाश उस दवा की है, उन पर जो काम कर जाए.


अब एक नई दवा का नाम सामने आया है जो मरीजों को दी जाएगी. हालांकि डॉक्टरों ने ये कहकर चेताया भी है कि अभी भी गेम चेंजर दवा का इंतजार है. 


हाल ही में एक दवा कंपनी को कोरोना के इलाज के लिए एक नई दवा फेविपिरावीर को इस्तेमाल करने की मंजूरी मिली. ये खबर वायरल हुई और लोगों ने केमिस्ट के पास जाकर इस दवा को खोजना शुरू कर दिया. 
ज़ी न्यूज की टीम ने इस बात की पड़ताल शुरू कर दी कि कोरोना में दमदार इलाज का दावा करते हुए बाजार में एक के बाद एक जो दवाएं उतारी जा रही हैं, उनमें असल में कितना दम है. ज़ी न्यूज के दर्शकों के लिए ये जानना बेहद जरूरी है कि क्या वाकई कोरोना के इलाज में कोई चमत्कार हो गया है.


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कोरोना के कहर से जूझ रहे भारत में भी दुनिया के बाकी देशों की तरह बेचैनी है कि कब ये जानलेवा वायरस दुनिया से जाएगा कब इसका इलाज करने वाली कोई चमत्कारी दवा मिल जाएगी और कब हर वक्त खतरे के साए में सांस लेने से आजादी मिलेगी.


इसी डर ने भारत को कोरोना की दवाओं का बाजार बना दिया. एक के बाद एक दुनिया भर में मौजूद वो दवाएं भारत के बाजार में उतारी जा रही हैं जिन्हें दुनिया के किसी दूसरे देश में कोरोना के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है.


इसी फेहरिस्त में नया नाम है - फेविपिराविर. वायरल इंफेक्शन के इलाज के लिए ये दवा जापान में 2014 से इस्तेमाल की जा रही है. अब भारत में ग्लेनमार्क ने इस दवा को बनाने और बेचने की मंजूरी ले ली है. कंपनी का दावा है कि ये दवा इस्तेमाल के 4 दिन में वायरल लोड काफी कम कर देती है यानी वायरस कमजोर पड़ जाता है. भारत में ये दवा अब अस्पतालों में पहुंच चुकी है और मरीजों को दी जाने भी लगी है.


फेविपिराविर भारत में फेबीफ्लू के नाम से मिल रही है. एक टेबलेट यानी गोली की कीमत 103 रुपए.  15 दिन के इलाज में दवा की लागत लगभग 14 से 15 हजार की आती है.


इसी फेहरिस्त में हाल ही में अमेरिकी दवा रेमडिसीविर का नाम जुड़ा है. भारत में अब सिप्ला और हीटीरो लैब (Cipla and Hetero Labs) को इसे बनाने की मंजूरी मिली है. ये दवा इंजेक्शन के तौर पर मरीज को दी जाती है. 2014 में ईबोला वायरस के इलाज के लिए बनाई इस दवा को इमरजेंसी यूज के तौर पर रिजर्व रखा गया है.


भारत में कोरोना के मरीजों को हाइड्रोक्सीक्लोरोक्ववीन और आइवरमैक्टीन समेत कई दूसरी दवाएं दी जा रही हैं. ये दोनों दवाएं सस्ती हैं और भारत में पहले से आसानी से उपलब्ध हैं. ऐसे में हेल्थ एक्सपर्ट्स का मानना है कि बाजार में उतारी जा रही नई दवाओं में से कोई भी वंडर ड्रग नहीं है और दुनिया में कहीं भी किसी दवा ने कोई चमत्कारी परिणाम नहीं दिखाए हैं. जहां तक रिसर्च के नतीजों की बात है तो हर दवा के पक्ष में कोई ना कोई रिसर्च मौजूद है. ऐसे में जब तक कोरोना से बचाने के लिए कोई वैक्सीन नहीं बन जाती तब तक सभी दवाओं को परखा ही जा रहा है. और भारत को दवा कंपनियों का बाजार बनने से बचने की जरूरत है.
 


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