नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court )  ने कहा कि लॉकडाउन (Lockdown) के दौरान निजी कंपनियों व फैक्टरियों आदि के कर्मचारियों को पूरा वेतन देने के मसले पर वो 12 जून को आदेश सुनाएगा, लेकिन आदेश आने तक कर्मचारियों को पूरा वेतन देने में असमर्थ रहे कम्पनी मालिकों के खिलाफ कोई कार्रवाई न की जाए.


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सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने कहा कि जब लॉकडाउन शुरू हुआ था, तब कर्मचारियों के काम वाली जगह को छोड़कर अपने गृहराज्यों की ओर पलायन करने से रोकने के मंशा के तहत तब अधिसूचना जारी की गई थी. लेकिन अंततः ये मामला कर्मचारियों और कंपनी के बीच का है और सरकार इसमें दखल नहीं देगी.


पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार से एक सप्ताह में जवाब मांगा था. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी जो अपने स्टाफ को वेतन देने में असमर्थता जता रहे कुछ उद्योगों ने दायर की थी. सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि लॉकडाउन से जुड़े सरकार के नए नोटिफिकेशन में लॉकडाउन के दौरान कर्मचारियों को पूरा वेतन देने की शर्त को हटा दिया गया है.


सरकार ने कहा कि निजी कंपनियां लॉकडाउन के दौरान अपने श्रमिकों की वेतन कटौती के लिए स्वतंत्र हैं.  लेकिन उद्योगों के वकीलों ने सरकार के इस कदम को नाकाफी कहा. कुछ याचिकाकर्ताओं ने पूरा वेतन न देने के आदेश का विरोध किया. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई एक हफ्ता टाल और सरकार से जवाब देने कहा.


याचिकाकर्ता का कहना है कि लॉकडाउन में कामकाज बिलकुल ठप पड़ा है, कोई कमाई नहीं है, जेबें खाली पड़ी हैं, कारोबार चला पाना संभव नहीं है, ऐसे में स्टाफ की सैलरी कहां से दें.


इसके अलावा अन्य याचिका कई उद्योगों की तरफ से दाखिल गई है, जिसमें कहा गया था कि आवश्यक सेवा से जुड़े उद्योगों को लॉकडाउन में काम करने की इजाजत दी गई, लेकिन सभी कर्मचारियों को पूरा वेतन देने के केंद्र सरकार के आदेश का फायदा उठाकर ज्यादातर कर्मचारी काम पर नहीं आ रहे हैं. ऐसे में कोरोना के दौरान पहले से संकट का सामना कर रहे उद्योगों को उन्हें पूरा वेतन देने के लिए बाध्य नहीं किया जाना चाहिए.


राजस्थान में जिंक खनन से जुड़े निर्माण कार्य करने वाली कंपनी ने कहा है, 'जो मजदूर ड्यूटी कर रहे हैं और जो मजदूर काम पर नहीं आ रहे हैं, उन्हें एक बराबर दर्जा कैसे दिया जा सकता है? ऐसा करना काम करने वाले मजदूरों के साथ भेदभाव होगा.'


कंपनी की तरफ से यह दलील रखी गई कि उद्योग, काम बंद हो जाने के चलते पहले ही संकट का सामना कर रहे हैं. ऐसे में जिन उद्योगों ने विशेष अनुमति के बाद काम करना शुरू कर दिया है. उन्हें सभी कर्मचारियों का वेतन देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता.


काम पर न आने वालों के वेतन में कटौती का आदेश बॉम्बे हाई कोर्ट ने दिया है. उसे पूरे देश में लागू करना चाहिए. कंपनी ने दलील दी कि जो कर्मचारी काम कर रहे हैं, वह पूरे वेतन के हकदार हैं. लेकिन जो काम नहीं कर रहे, कंपनी को उनको 30 फीसदी वेतन देने को ही कहा जाना चाहिए. अगर सरकार चाहे तो बाकी 70 फीसदी कर्मचारी बीमा निगम या पीएम केयर्स फंड के पैसों से दे. ऐसे ही याचिका कुछ और उद्योगों की तरफ से भी दाखिल की गई थी.


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